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मंगलवार, 10 मार्च 2020

1698..होली के बहाने

पाँच लिंक परिवार की ओर से
सभी पाठकों को
रंगों के पावन त्योहार पर
होलीयाना नमस्कार
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रस में तैरते मालपुए,दही भल्लों की चटखारे हैं
रंगों की बरसात हो रही,उल्लास में डूबे सारे हैं,
हमजोली,हँसी-ठिठोली,टोलियों की मस्ती हो ली,
 बहाने होली के, मिटे फासले ऐसे भी नज़ारे हैं

★★★★★
 आइये आज के विशेष अंक में आनंद लेते हैं कुछ
कालजयी रचनाओं का।
★★★★★★

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
मार दी तुझे पिचकारी,
कौन री, रँगी छबि यारी ?

   फूल -सी देह,-द्युति सारी,
   हल्की तूल-सी सँवारी,
   रेणुओं-मली सुकुमारी,
   कौन री, रँगी छबि वारी ?

मुसका दी, आभा ला दी,
उर-उर में गूँज उठा दी,
   फिर रही लाज की मारी,
   मौन री रँगी छबि प्यारी।



हरिवंशराय बच्चन

तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
अंबर ने ओढ़ी है तन पर
चादर नीली-नीली,
हरित धरित्री के आँगन में
सरसों पीली-पीली,
सिंदूरी मंजरियों से है
अंबा शीश सजाए,
रोलीमय संध्या ऊषा की चोली है।
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।

भारतेंदु हरिश्चंद्र
गले मुझको लगा लो ऐ दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ यार होली में

नहीं ये है गुलाले-सुर्ख उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक की है उमड़ी आहें आतिशबार होली में

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझको भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जानेमन त्योहार होली में

है रंगत जाफ़रानी रुख अबीरी कुमकुम कुछ है
बने हो ख़ुद ही होली तुम ऐ दिलदार होली में

रस गर जामे-मय गैरों को देते हो तो मुझको भी
नशीली आँख दिखाकर करो सरशार होली में

केदारनाथ अग्रवाल
फूलों ने
होली
फूलों से खेली

लाल
गुलाबी
पीत-परागी
रंगों की रँगरेली पेली

काम्य कपोली
कुंज किलोली
अंगों की अठखेली ठेली

मत्त मतंगी
मोद मृदंगी
प्राकृत कंठ कुलेली रेली



नज़ीर अकबराबादी

 फागुन रंग झमकते हों तब
देख बहारें होली की।


और दफ़ के शोर खड़कते हों 
तब देख बहारें होली की।


परियों के रंग दमकते हों 
तब देख बहारें होली की।

ख़म शीश-ए-जाम छलकते हों
जब तब देख बहारें होली की।


महबूब नशे में छकते हो 
तब देख बहारें होली की।

गुलज़ार खिलें हों परियों के 
और मजलिस की तैयारी हो।


कपड़ों पर रंग के छीटों से 
खुश रंग अजब गुलकारी हो।

मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो 
और हाथों में पिचकारी हो।


उस रंग भरी पिचकारी को 
अंगिया पर तक कर मारी हो।

सीनों से रंग ढलकते हों 
तब देख बहारें होली की।
....
आज का विशेष अंक
आनन्द आएगा आपको


अब बारी है विषय की
एक सौ ग्यारहवां विषय

दिलदार
उदाहरण हेतु
इसी अंक से
भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी की
रचना पढ़ें।

सादर..
#श्वेता


7 टिप्‍पणियां:

  1. सुख, शान्ति एवम समृद्धि की मंगलमयी कामनाओं के साथ आप एवं आप के समस्त परिजनों को पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
    शुभ प्रभात

    जवाब देंहटाएं
  2. होली की शुभकामनाएँ..
    तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
    देखी मैंने बहुत दिनों तक
    दुनिया की रंगीनी,
    किंतु रही कोरी की कोरी
    मेरी चादर झीनी,
    तन के तार छूए बहुतों ने
    मन का तार न भीगा,
    तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति, होली की हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह वाह वाह
    धमाकेदार
    जबरदस्त।
    रचनाएँ हो ऐसी हो वरना ना हों।

    जवाब देंहटाएं
  5. होली की मंगलकामना 💐💐💐💐
    खूबसूरत प्रस्तुति श्वेता ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति श्वेता। होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं

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