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गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

1665...मिथ्या रटते-रटते सच हो सकता है?


सादर अभिवादन। 

मिथ्या रटते-रटते 
सच हो सकता है?
शिक्षा-नीति में 
खोट हो तो हो सकता है। 
 -रवीन्द्र 
 आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
  

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काश! रिश्तों में आये पतझड़ के
पत्तो सी आई सिकुड़न को भी

उबलते पानी पर

चलनी में रखकर
भाप से सीधे किये जा सकते
बुनावट में निखार जाता।



 

सजते द्वार वंदनवार,
बसंत की बहार में।
उत्सव छटाएं ले आया,
ऋतुराज संग साथ में।
लहर-लहर पुरवाई चले,
प्रिय संदेशे ला रही।
सुवास सुमन उमंग भरी,
पवन बसंत डोल रही।।


My photo 
 अदद करारी खुशबू शर्मा जी अपने काम में मस्त  सुबह सुबह मिठाई की दुकान को साफ़ स्वच्छ करके करीने से सजा रहे थे ।  दुकान में बनते गरमा गरम पोहे जलेबी की खुशबु नथुने में भरकर जिह्वा को ललचा ललचा रही थी। अब खुशबु होती ही है 



चितेरा कागा सुनाये बेसुरा आलाप
कोयल पपीहा बुलबुल लगाये उसे डाँट
फूलों के गुच्छे में सहेजकर ख़त
पाहुन का संदेशा लेकर आये बसंत


 

लेखक ने यात्रा संस्मरण में मीराँबाई के जन्मस्थल से लेकर अंतिम पड़ाव तक तथ्यों की खोज की। अब तक ना जाने कितने लोग मीराँबाई को भक्ति काल की एक कवयित्री ही मानते रहे होंगे। लेकिन आप इस विशेषांक को पढ़ेंगे तो समझ पाएंगे मीराँबाई एक कवयित्री ही नहीं एक समाज सुधारक, एक विद्रोही स्वर थी। वह जानती थी कि सीधे-सीधे किसी भी सामाजिक प्रथा का विरोध करना मुश्किल होगा, अशिक्षित धर्मांध जनता ऊंच-नीच के फेर से निकल नहीं पाएगीसबको एक ही जगह एकत्र करने का एक मात्र तरीका कृष्ण भक्ति ही थी। अतः मीराँबाई ने बहुत सोच समझ कर भक्ति मार्ग को चुना था।


                       हम-क़दम का नया विषय

                                                               
                                   यहाँँ देखिए



आज बस यहीं तक 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


8 टिप्‍पणियां:

  1. हार्दिक आभार संग सस्नेहाशीष भाई
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण
    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  2. हार्दिक आभार रविंद्र जी.. सत्य कहा मिथ्या रटते रटते सच हो जाता है गलत बातों का हमेशा समर्थन करते रहने से एक दिन वो गलत बातें सच को भी मात दे देती है... सभी चयनित रचनाएं बहुत अच्छी है ... शशि पुरवार जी की करारी खुशबू को पढ़ने का एक अलग ही आनंद मिला ..👌मेरी कविता बसंत को भी चयनित करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार..🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात....
    मिथ्या मिथ्या रटते-रटते
    बीती रे उमरिया..
    पुराना गुरुकुल हो तो
    शिक्षा-नीति में
    खोट नहीं हो तो सकता
    जल्द बाजी में बनी
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  4. चार पंक्तियों में किसी भी गंभीर विषय पर ध्यान आकृष्ट करना, सार कह देने की रचनात्मकता एक विशेष गुण है।
    पठनीय सूत्रों से सजी बहुत सुंदर प्रस्तुति रवींद्र जी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. मिथ्या ही रटाई जा रही है। सुन्दर अंक।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं
  7. शिक्षा नीति में खोट नहीं, पूरी शिक्षा नीति ही खोटी है। इसके दूरगामी परिणाम इतने भयानक होने वाले हैं कि हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते। प्राचीन काल में विषकन्याएँ बनाई जाती थीं। उन्हें बचपन से ही अत्यंत किंचित मात्रा में जहर हर रोज दिया जाता था। आज विषमानव बनाए जा रहे हैं। बचपन से ही स्पर्धा, दिखावा, अभिमान, शिक्षकों के प्रति दुराग्रह, सहनशक्ति और सहानुभूति का अभाव, शिक्षकों और स्कूल प्रशासन में राजनीति, काइयाँपन .....अधिकतर शिक्षा संस्थानों में यही सब सच है। बाकी सब मिथ्या है।
    सुंदर अंक देने हेतु सादर आभार रवींद्रजी।

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर प्रस्तुति है हमारी लिंक शामिल करने हेतु हृदय से धन्यवाद आपका , मिथ्या रटते-रटते
    सच हो सकता है?
    शिक्षा-नीति में
    खोट हो तो सकता है।
    -रवीन्द्र सही कहा आपने

    जवाब देंहटाएं

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