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शनिवार, 1 फ़रवरी 2020

1660... गुलमोहर


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

सबका प्यारा मौसम वसंत आ गया
इश्क इज़हारे प्रेम दिवस सीखा गया


होठोंहोठों चुप्पियाँ, आँखों, आँखों बात,
गुलमोहर के ख्वाब में, सड़क हँसी कल रात।
अनायास टूटे सभी, संयम के प्रतिबन्ध,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीदे छंद।
अंखियों से जादू करे, नजरों मारे मूंठ,
गुदना गोदे प्रीत के, बोले सौ सौ झूठ।


पेड़ों के नए पत्ते निकलते हैं और एक ही महीने में कई रंग बदलते हैं।
हल्के रंग के पत्ते निकलते हैं और कच्ची धूप के साथ रंग बदलते रहते हैं।
हर रोज़ सडकों का रंग बदला हुआ मिलता है।
रोज़ एक ही सड़क से गुजरकर जाने वाले भी हैरान होते हैं
कि कल यहाँ किसी और रंग का पेड़ था,
आज यह कहाँ से आ गया?



गुलमोहर
सच सच बताना
क्या मेरा प्यार
खरा नही था?
क्या उस वक़्त तुम्हारा
तन हरा नही था,
क्या तब आकाश का सावन
तुम पर झरा नही था ?



इस देश का बुद्धिवादी सही करता है।
वह महंगाई की तरफ पीठ करके पड़ोसी के
गुलमोहर पर कविता ठोंकता है।इसके दो फायदे हैं।
एक तो महंगाई पर बेकार के विधवा विलाप से बच जाता है।
और दूसरे गुलमोहर हरा भरा बना रहता है सो मुफ़्त में।
पडोसी का ही सही फूल तो खिलते हैं। कि गलत कह रहा हूँ।



हैख़ामोश तन्हा इस सफ़र में
 एक हमसफ़र से हो तुम
जुगनू की चमक, तितली सी रंगत,
फूलों की महक से हो तुम
बेरंग, अँधेरी ज़िन्दगी में,
चाँद की रोशनी से हो तुम

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पुनः मिलेंगे
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विषय है106 वें अंक के लिए
अभी न होगा मेरा अन्त
ये पंक्ति निराला जी की है
इन पंक्ति के भाव को पकड़ कर
रचना लिखिए


अंतिम तिथिः 01 फरवरी 2020
संपर्क फार्म चालू हो गया है
शाम तीन बजे तक


3 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात।
    प्रणाम दी।
    बेहद खूबसूरत प्रस्तुति...सभी रचनाएँ बेहद अच्छी लगी ।
    रंग गुलमोहर ने
    मौसम के गालों पर मल दिये।
    लिहाफ़ से निकला सूरज,
    कुहासे क्षिति के गाँव चल दिये।

    जवाब देंहटाएं
  2. हमेशा की तरह सदाबहार..
    सादर नमन..

    जवाब देंहटाएं

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