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शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

1938 ...क़िस्मत मौक़े मुहैया कराएगी यक़ीनन

सादर अभिवादन
अपरिहार्य कारणो से सखी आज नही है
उनके आग्रह पर आज हमारी पसंद

एक दिन
मौत की घण्टी बजी...
हड़बड़ा कर उठ बैठा —
मैं हूँ... मैं हूँ... मैं हूँ..

मौत ने कहा —
करवट बदल कर सो जाओ।


शब्द तुम्हारी आँखों से ....राजेश कुमार राय

शब्द तुम्हारी आँखों से कुछ रोज पिये थे मैंने भी
शब्दों की वो प्यास अभी भी रग रग को तड़पाती है ।

किसमत की कमजोरी है या नाविक ही कमजोर हूँ मैं
लोग गुजरते जाते हैं बस नाव मेरी टकराती है ।




सुलगाई चिंगारी, जलाया उसने ही देश मेरा! 
ये तैमूर, बाबर, चंगेज, अंग्रेज, 
लूटे थे, उसने ही देश, 
ना फिर से हो, उनका प्रवेश, 
हो नाकाम, वो ताकतें, 
हों वो, निस्तेज! 


क़िस्मत मौक़े मुहैया कराएगी यक़ीनन 
अगर तुम ख़ुद को बार-बार आज़माओगे। 

दूरियाँ देखना कभी मुद्दा नहीं होंगी 
जब भी सोचोगे, ‘विर्क’ क़रीब पाओगे। 


हाँ तो हम कह रहे थे, कि हम अपना रूटीन वॉक कर रहे थे, तभी परली सड़क से एक आवाज आई, “आप हमको चुराने आए हो।” उस तरफ देखा, दो प्यारी प्यारी बच्चियों किलकारियों मारती हुई फुटपाथ पर नाइट सूट पहने  दौड़ लगा रहीं थीं। उम्र यही कोई 4 या 5 साल। उन्हीं के पीछे पीछे एक सज्जन बाइक पर धीरे धीरे चले आ रहे थे। ज़ाहिर है, उन्हें टहलाने लाए थे। वह बच्चियाँ थोड़ा दौड़तीं, फिर रुक जातीं, हँसती, पलटकर उस व्यक्ति से पूछती , “ आप हमें चुराने आए हो, वह इंसान जो उनका साथ था, हँसकर कहता “हाँ”, और वह फिर खिल खिलाकर दौड़ जातीं। आगे जाकर फिर रुक जातीं। हमारा ध्यान उन्हीं पर लगा था।


ज़िन्दगी ने कल यूँ ही चलते चलते रोकी थी मेरी राह 
आँखों में डाल आँखें पूछ डाली थी मेरी चाह 

ठिठके हुए कदमों से मैंने भी दुधारी शमशीर चलाई 
क्या तुम्हें सुनाई नहीं देती किसी की बेबस मासूम कराह 

ज़िंदगी कुछ ठिठक कर शर्मिंदा सी होकर मुस्कराई 
सुनते सुनते सबकी बन गई हूं कठपुतली रहती हूं बेपरवाह 

आज बस
फिर मिलते तो रहते ही हैं
सादर




11 टिप्‍पणियां:

  1. सस्नेहशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

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  2. खूबसूरत लिंक्स से सजाया आपने ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं
  3. विश्व हिंदी दिवस पर शुभकामनाएंं। सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति ,सादर नमस्कार दी
    आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  5. हिंदी छा जाए विश्व में यही कामना है !

    जवाब देंहटाएं
  6. हिंदी छा जाए विश्व में यही कामना है !

    जवाब देंहटाएं
  7. ज़िन्दगी ने कल यूँ ही चलते चलते रोकी थी मेरी राह
    आँखों में डाल आँखें पूछ डाली थी मेरी चाह

    ठिठके हुए कदमों से मैंने भी दुधारी शमशीर चलाई
    क्या तुम्हें सुनाई नहीं देती किसी की बेबस मासूम कराह

    इतनी सुन्दर रचना ... इसकी जितनी भी तारीफ करें कम है।

    यह है हिन्दी का जादू। हमारी प्यारी हिन्दी....

    हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं ।।।।।।

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