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बुधवार, 22 जनवरी 2020

1650...अर्से तक रह जाती हूँ पेशोपेश में ..

।।भोर वंदन।।

"शुभ्र आनन्द आकाश पर छा गया,
रवि गा गया किरण गीत ।
श्वेत शत दल कमल के अमल खुल गये,
विहग-कुल-कंठ उपवीत ।

चरण की ध्वनि सुनी, सहज शंका गुनी,
छिप गये जंतु भयभीत ।
बालुका की चुनी पुरलुगी सुरधुनी;
हो गये नहाकर प्रीत..!!"

-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कुछ सहज, साकार और सास्वत की कामनाओं के संग 
आज की लिंकों पर नज़र डालें..

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ब्लॉग  मेरी भावनायें 

ऐसे वैसे के पेशोपेश में भी । ...


मैं ही क्यों अर्से तक

रह जाती हूँ पेशोपेश में !
बिना किसी जवाब के
बड़बड़ाती जाती हूँ,
बिना किसी उचित प्रसंग के
मुस्कुराती जाती हूँ
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पुनर्वास का हो प्रयास अब, अब अपनाओ हे दिल्ली।

हत्या ब्रह्म दोष की गुत्थी, कुछ सुलझाओ हे दिल्ली॥

कश्मीरी का विप्र पलायन, दर्द बना कब सीने में।
बाध्य रहे चुप्पी से तेरी, नित मर मर के जीने में॥
“सत्यमेव जयते, अहिंसा परमो धर्म:”
भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त ‘विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार’ हमारी सनातन परम्परा के मूल से नि:सृत है। प्रारम्भ से ही हमारा सनातन दृष्टिकोण जीवन के एक ऐसे दर्शन की तलाश में रहा है जो ‘आत्मवत सर्व भूतेषु य: पश्यति स: पंडित:’ के भाव में पगा हो और जिससे ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना का प्रवाह होता है।
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ब्लॉग व्याकुल पथिक.. ख़्वाहिश


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(जीवन की पाठशाला )



मस्ती भरी दुनिया में, छेड़ो तराना
 जो नहीं हैं , उनको भूल जाना ।

था छोटा-सा घर,अब न ठिकाना
 मुसाफ़िर हो तुम, बढ़ते ही जाना।

मन की उदासी से,खुद को बहलाना
ग़ैरों की महफ़िल ,खुशियाँ न चाहना।


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तुमसे मिलने को जी चाहता है ,कभी कभी इतनी तलब उठती है की सोचती हूँ कोई बीमारी तो नहीं है। एक शख्स की इतनी तलब ठीक नहीं है। इतनी दफे तुम्हे फोन करती हूँ के अपनी हरकत अहमकाना लगती है। कंप्यूटर पर बेवजह स्क्रीन सेवर बदलती हूँ एक दफे किसी ने कहा था उससे मूड बदलता है

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इस सप्ताह का विषय
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍


8 टिप्‍पणियां:

  1. अनगिनत ठेस के बाद
    कई बार सन्देह में पड़ जाती हूँ,
    क्या सच में पैसा हर सोच की हत्या कर देता है !
    क्या हर भावना से ऊपर पैसा है !
    फिर सोचती हूँ,
    ना,
    प्यार तो नियंता है !
    अणु के जैसा
    प्यार का एक छोटा सा ख्याल भी
    सौ मौतों पर भारी पड़ता है...

    आज की प्रस्तुति की भूमिका जितनी ही सकारात्मक उर्जा से भरी हुई है, उतनी ही सुंदर और सशक्त रचनाएँँ भी हैं, जो परिस्थितिजन्य कारणों से मानव हृदय में उठ रहे दुर्बल विचारों का खंडन कर उसे आशा रूपी अमृतरस से सराबोर कर रही हैंं।
    आज की प्रस्तुति में मेरी अनुभूति को स्थान देने केलिए आपका हृदय से अत्यंत आभारी हूँँ पम्मी जी। सभी को प्रणाम ,सुप्रभात।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा लिंकों से सजी शानदार प्रस्तुति....।

    जवाब देंहटाएं

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