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रविवार, 19 जनवरी 2020

1647.....फिजाँ कैसी मीठी मीठी हो रही है मक्खियाँ ही मक्खियाँ हर तरफ हो रही हैं मधुमक्खियाँ नजर अब आती नहीं हैं ना जाने कहाँ सब लापता हो रही हैं

जय मां हाटेशवरी......
मेरी प्रस्तुती का दिन आते-आते.....
मौसम फिर बरफीला हो जाता है.....
आज भी बर्फ की संभावना है.....
लाइट तो कल से ही गुल है......
कुछ बैकप से ही काम चलाते हुए....
पेश है....मेरी पसंद.....

विरोध का चेहरा या महिलाएं बनीं मोहरा ?दिलों में विरोध की आग गली -गली शाहीन बाग़ ?अधिकार तो चाहिए लेकिन कर्तव्य कौन निभाएगा ?
इसी के परिणाम स्वरूप हिन्दुओं की कुलाबादी जहां १९५१ में पाकिस्तान की कुलाबादी का मात्र तीन आशारीया चार चार (३. ४ ४ फीसद )वह वर्तमान में घट के १. ५ फीसद
रह गई है।  मुस्लिम बहुल पाक ने तो इसके बाद अहमदिया सम्प्रदाय के साथ साथ शियाओं को भी मुसलमान मानने से इंकार कर दिया। अहमदिया और शियाओं को पनाह  देने की
तरफ़दारी  कथित शाहीन बाग़  ने भी नहीं की है।
भारत ने सोच के धरातल पर ऐसा कुछ भी नहीं किया है जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ हो।तमिल  टाइगर्स के २००९ में सफाये के बाद से ही हालात सामान्य हैं वहां
से भारत चले आये तमिल भाई वहां स्थिति सामान्य होने के कारणलौट जाना चाहता है वापस

फिजाँ कैसी मीठी मीठी हो रही है मक्खियाँ ही मक्खियाँ हर तरफ हो रही हैं मधुमक्खियाँ नजर अब आती नहीं हैं ना जाने कहाँ सब लापता हो रही हैं
 इधर
कुछ
सालों से
क्यों
लापता
सी
हो रही हैं
लिखने लिखाने
की
जगह सारी
भरी भरी
सी
हो रही हैंं
कैसे लिखे
कोई
कुछ
पता ही
नहीं
चल रहा है

एहसास का चादर
एहसास का चादर
जीवन को अगर समझना था तो,
इसमें उलझना शायद
बहुत जरूरी था।

तुम आईना फेंक कर..
तो देखो,
तुम्हें दिल के टूकड़े
गिनने नही पड़ेगे।

कमाल है ...
तो क्या अब हमें यह गद्दार काटेंगे नहीं?
नहीं, अब आपस में ही काटम काट चल रहा है ...
पर इनके फ़ितरत की फिक्र है, बंधु !!
बाकमाल यह,
कभी भी किसी करवट बैठ सकतें हैं, बंधु !!!

दोहा गीत
  जगत करम का खेत है , जो बोए सो पाय,
 प्रेम भाव से सींच ले , नाही तो पछताय।
अपनेपन का लोप है , रिश्ते कहाँ पुनीत।
कहता मन भौरा बनूं , गाऊँ मीठे गीत ।

प्रेम
दूसरे को प्रीतिकर हों ऐसे वचन ही मुख से निकलें
इस सजगता का नाम ही प्रेम है
सब कुछ साझा है इस जहाँ में
हर कोई जुड़ा है अनजान धागों से,
धरा, गगन, पवन, अनल और सलिल के साथ
जुड़ाव महसूस करने का नाम ही प्रेम है
रक्त पिपासा
 वो देखो बैठा है रक्त-पिपासायुक्त मानव चारों ओर
जो रक्त की तेज़ धार देखकर
मन ही मन में शैतानी हँसी  हँसता है
और अपने ही भ्रमजाल में खुद को लपेटे सोचता है
इंसान नहीं दानव बन रहा हूँ

एक व्यक्ति का रक्त नहीं रक्त की नदियाँ बहाने को तैयार हूँ
इस बदलते दौर में
मनुष्य होने के लिये शर्मिंदा हूँ

धन्यवाद।

6 टिप्‍पणियां:

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