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रविवार, 22 दिसंबर 2019

1619....सांता क्लॉज कौन हैं और क्रिसमस डे से वे कैसे जुड़ गए?


जय मां हाटेशवरी......
नागरिकता संशोधन  बिल संसद से पास होने पर इतनी हाय-हाय क्यों?.....
क्या ये सत्य नहीं कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश मे  अल्पसंख्यक हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन प्रताड़ना झेल रहे हैं......
ऐसे लोगों को भारत की नागरिकता  की राह आसान करके,   संसद ने उचित निर्णय ही लिया है.....
ये सभी देश मुस्लिम बहुलता वाले देश होने के कारण यहां मुस्लिम बिलकुल सुरक्षित है.....
ये भी सत्य है कि ऊपरोक्त देशों से आये मुस्लिम ही भारत में आंतकवादी गतिविधियों को अंजाम देते हैं.....
इस लिये इन्हे प्रावधान से बाहर रखना राष्ट्र के हित में ही तो है.....
इस से यहां रह रहे अल्प संख्यकों को तो किसी प्रकार का खतरा नहीं है.....
फिर इतनी तोड़-फोड़ क्यों?.....
राष्ट्रीय संपती को क्षती पहुंचाना विरोध करने का कौनसा तरीका है......
अब पेश है.....आज के लिये मेरी पसंद.....
 

संस्कार,सभ्यता,संकल्प
3-सभ्यता
लुप्त हो रही सभ्यता , बदल रहा परिवेश।
छायी है भय की घटा , ये कैसा अब देश।।



सांता क्लॉज कौन हैं और क्रिसमस डे से वे कैसे जुड़ गए?
आज से डेढ़ हजार साल पहले जन्मे संत निकोलस को ही असली सांता माना जाता हैं। जबकि संत निकोलस और ईसा मसीह के जन्म का कोई सीधा संबंध नहीं हैं। फ़िर भी पूरी दुनिया
में सांता क्लॉज क्रिसमस का एक अहम हिस्सा हैं। सांता क्लॉज के बिना क्रिसमस की कल्पना भी नहीं कर सकते। संत निकोलस का जन्म तीसरी सदी में जीसस की मौत के 280
साल बाद तुर्किस्तान के मायरा नाम के शहर में एक रईस परिवार में हुआ था। बचपन में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। उनकी प्रभु यीशु में बहुत आस्था थी।
उन्हें लोगों की मदद करना बहुत पसंद था। ईसा मसीह के जन्मदिन पर वे किसी को दुखी नहीं देख सकते थे। यही वजह हैं कि वो यीशु के जन्मदिन के मौके पर रात के अंधेरे
में लोगों को तोहफे के तौर पर ख़ुशियाँ बांटने निकलते थे। इसलिए आज भी बच्चे सांता का इंतजार करते हैं। वो रात के अंधेरे में ही गिफ़्ट दिया करते थे क्योंकि
वे नहीं चाहते थे कि उनकी पहचान लोगों के सामने आए। 17 साल की उम्र में ही वे ईसाई धर्म के पादरी (पुजारी) बने और बाद में बिशप बने।

बिखरे हुए अक्षरों का संगठन
 हाँ कोई नया
झुनझुना मिला होगा
उसने समेट लिया
मन को मन से
तभी सब कुछ
भुलाकर गुमसुम हो।
बस लड़ रही हैं!
अपने सुकून के लिए
हम और हमारी यादें। 
हमें चाहिए आज़ादी
मातृभूमि का छलनी सीना
बँटता मन अब कैसे सीना?
द्वेष दिलों के भीड़ हो चीखे
हमें चाहिए आज़ादी...!
दर्द गुलामी का झेलते काश!
बंदियों, बंधुओं के दंश संत्रास
५७ से ४७ महसूसते,फिर कहते
हमें चाहिए आज़ादी....!
कि दाग अच्छे होते हैं

भारी
बहीखातों
के
बोझ से
दबे
झुँझलाये
कुमह्लाये
देव के
कोने कोने
स्थापित
देवदूतों में
काल
और
महाकाल
के
दर्शन
पा कर
तृप्त
हो लेने में
भलाई है

अभी नहीं तो कभी नहीं
आशाओं के दीप जला,
दूर भगा दें अँधियारो को।
अभी नहीं तो कभी नहीं,
चलो झुका लें आसमान को।
न्याय अन्याय
कोई लगा कर  आग दूर तमाशा देखे
अपना घर फूंक कर कौन रोटियां सेके
समय रहते संभल जाओ वर्ना होगा पछताना
स्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना।














धन्यवाद।

9 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति...
    आभार आपका...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना को अपने ब्लॉग पर स्थान देने हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय। 💐🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार कुलदीप जी आज के सुन्दर अंक में जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुंदर प्रस्तूति। मेरी रचना को "पांच लिंकों का आनंद" में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, कुलदीप भाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. सशक्त भूमिका सार्थक व्यक्तव्य,
    अंधा अंधे ठेलिये जैसा वातावरण हो रहा है बस अपने नेता के दिग्भ्रमित करने वाले कथन को पकड़कर देश को और शांति प्रिय नागरिकों को नुक्सान पहुंचा रहे हैं।
    देश ऐसे ही आर्थिक मंदी से गुजर रहा है ऐसे हालात में सब कुछ ठप पड़ा है देश फिर 20साल पीछे पहुंच गया है ।
    सार्थक भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति सुंदर लिंक चयन।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन भूमिका और बेहतरीन रचनाओं का समन्वय है आज के अंक में...आभारी हूँ कुलदीप जी मेरी रचना भी शामिल करने के लिए।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं

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