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बुधवार, 11 दिसंबर 2019

1608.. ‎हमें पत्थरों से भी टकराना आगया..





।।अगहनी सुप्रभात।।

"जगत भर की रोशनी के लिये..
करोड़ों की ज़िंदगी के लिये..
सूरज रे! जलते रहना..
जगत कल्याण की खातिर तू जन्मा है,
तू जग के वास्ते हर दुःख उठा रे,
भले ही अंग तेरा भस्म हो जाये
तू जल जल के यहाँ किरणें लुटा रे।
सूरज रे! तू जलते रहना..!!"



कवि प्रदीप



हादसाओं के शहर में हम सभी रहते हैं, पर कहीं भी कुछ रूकता नहीं..कर्मपथ को प्रतिविम्बित करती रचना के साथ आज के लिंकों में शामिल है..✍
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हमें भी लबों से मुस्कुराना आगया शायद!

नफ़रतों से रिस्ता निभाना आगया शायद!!


दोस्ती गुलशन हैं फूलों का जाना था हमने!

खार से भी दामन सजाना आगया शायद!!


 दिखाते आईना जो ,खुद को खुदा समझते!

 ‎हमें पत्थरों से भी टकराना आगया शायद..

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यादों की इक छाँव में बैठा रहता हूँ 

अक्सर दर्द के गाँव में बैठा रहता हूँ
तुमने मुझसे हाल जहाँ पूछा था मेरा..

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नेता
नेता कुर्सी पूजते, जैसे चारों धाम
जनता ऐसे पिस रही,भली करें अब राम
भली करे अब राम,  कि कैसा कलयुग आया..

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सर्द हवाएँ चली कुबेला में,  
 ओस से आँचल सजाने को,   
ललिता-सी लहरायी निशा संग, 
शीतल चाँदनी छिटकाने को |


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जो भी सुना है
जो भी अनसुना रह गया है
जो भी जाना है
जो भी अजाना रह गया है
जो भी कहा है
जो भी अनकहा रह गया है
जो भी लखा है
जो भी अदेखा रह गया है
वह इन सबसे जुदा है..


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रही जो कहानी अधूरी तो क्या !
नहीं और कुछ भी ज़रूरी तो क्या ?
सलामत रहे इश्क़ वाला ज़ुनूं
गुज़र गर  गई  उम्र पूरी तो क्या..

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हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए

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।।इति शम।।

धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍


7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा संकलन, सुंदर रचनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया पम्मी जी. मेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति कवि प्रदीप की बहुत सुंदर बंध के साथ अच्छी भुमिका।
    सभी रचनाएं सार्थक सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन...
    सूरज रे जलते रहना..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं

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