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शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

1554..फूटती है कोपलें ठूँठ में और ताकत देती है

स्नेहिल अभिवादन
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आज सबसे पहले हम बात करेंगे
हमक़दम के संदर्भ में।
इस बार का विषय है
दीवाली
और रचनाएँ संपर्क फॉर्म की बजाय
यशोदा दी के ई-मेल पर भेजनी है।
मेल आई डी दाहिनी ओर है
★★★★★★
फेसबुक से एक तस्वीर मुझे मिली है
आप भी देखिये और अगर संभव हो तो
इस तस्वीर के संदर्भ में अपने विचार अवश्य लिखें-
यह तस्वीर देश की राजधानी दिल्ली के
दरियागंज इलाके की है।
हो सकता है यह बहुत छोटी सी बात हो
परंतु इस तस्वीर ने मुझे बेहद उद्वेलित कर रखा है।

★★★★★★
अब आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं।

★★★

चाँँद के विविध रुपों का अद्भुत काव्यात्मक सृजन
करवा चौथ का चाँद

टप टप टपकते मेह सा
सिला सा -अधजगा सा
तन्हाई में लिपटा
धीरे धीरे दस्तक देता रहा
नज़रो से बरसता रहा

★★★★★★
एक बेहद शानदार गज़ल 
दिल की भी एक ज़ुबान है

कैसे याद रहा तुझे वर्षों तक 
इस गली में मेरा मकान है। 

इसे बेज़ुबां न समझो लोगो 
दिल की भी एक ज़ुबान है। 

दुआएँ असर करती हैं आख़िर 
या रब ! तू कितना मेहरबान है।

★★★★★★

जीवन-संगिनी की खूबसूरत व्याख्या
  अर्धांगिनी

हाथों की छाप लगा द्वारे
आँखो मे नए सपने सजाए
तुम संग आई ,तुम्हारे घर सजना ।
सामाजिक बंधन रीति रिवाज़ों में
तुम्हारी जीवनसाथी ,तुम्हारी अर्धांगिनी ।
अर्धागिनी.....अर्थ   क्या....
अपना घर छोड़ के आने से
तुम्हारे घर  तक आने का सफर 
बन गया हमारा घर...


★★★★★★
ज़िंदगी का फ़लसफा शब्दों और भावों का सुंदर मिश्रण
बचत

झीलों के किनारों पर
उग रही हैं अनुभव की लताएं,
आओ कल के हिसाब में
जोड़ दें हमारा प्यार,
और फिक्स कर दें
रिटायरमेंट के प्लान में
हमारे झगड़ों की लंबी फ़ेहरिस्त,
कल जब खाली हो घर,
उदास हो जेब,
★★★★★★

एक दार्शनिक रचना जीवन का सत्य।
जिन्दा जड़ें

फूटती है कोपलें ठूँठ में  
और ताकत देती है 
तेजी से उठने की पेड़ों को 
पर पेड़ के मरने पर भी 
जिन्दा जड़ों को धरती के गर्भ में 
रहता है  

★★★★★★

सामान्य से हटकर
एक अलग दृष्टिकोण जो वैचारिकी मंथन को
प्रेरित करता है।
यार चाँद

यार ! तू  राजनेता है कोई जनेऊधारी जो
इफ़्तार में टोपी पहन रोज़ा बिना किए
रोज़ा तोड़ने अक़्सर पहुँच जाता
या फिर कोई राष्ट्रनेता जो अलग-अलग
राज्यों में .. संस्कृतियों में ..
कभी पगड़ी, कभी मुरेठा, कभी टोपी
तो कभी पजामा, कभी लुंगी , कभी धोती से
भीड़ और कैमरे के समक्ष खुद को है सजाता
या कोई है तू अवार्ड मिला सफल अभिनेता
जो हर किरदार में क्षण भर में है ढल जाता
या फिर कोई किसी मुहल्ले-शहर की गली-गली में
चौक-चौराहों ... फुटपाथों पर ..

★★★★★★


और चलते-चलते पढ़िये

एक बेहद विचारोत्तेजक और 
ज्ञानवर्धक लेख


कृत्रिम बुद्धि (एआई) का दायरा विवादित है: क्यूंकि मशीनें तेजी से सक्षम हो रहे हैं, जिन कार्यों के लिए पहले मानते थे कि होशियारी चाहिए, अब वह कार्य "कृत्रिम होशियारी" के दायरे में नहीं आते। उद्धाहरण के लिए, लिखे हुए शब्दों को पहचानने में अब मशीन इतने सक्षम हो चुके हैं, की इसे अब होशियारी नहीं मानी जाती.आज कल, एआई के दायरे में आने वाले कार्य हैं, इंसानी वाणी को समझना. शतरंज  के खेल में माहिर इंसानों से भी तेज, बिना इंसानी सहारे के गाड़ी खुद चलाना आदि.


★★★★★★

आज का यह आपको कैसा लगा?
आप सभी की प्रतिक्रियाओं की सदैव
प्रतीक्षा रहती है।

कल का अंक पढ़ना न भूलें

कल आ रही है विभा दी 
एक विशेष प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता

14 टिप्‍पणियां:

  1. सदाबहार प्रस्तुति..
    कृत्रिम बुद्धि (एआई) का दायरा विवादित है
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन संकलन ,
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. हमेशा की तरह बेहतरीन प्रस्तुति...
    भूमिका में दी गई फ़ोटो लंबे अर्से से सोशल मीडिया पर देखी जा रही है...
    जब देश में हिंदी साहित्य किलो के हिसाब से बेचा जा रहा है तो हमें समझ जाना चाहिए कि साहित्य में वजन कम हो रहा है और धरती पर इसका बोझ बढ़ रहा है।
    क्या यह हम जैसे स्वनामधन्य साहित्यकारों के लिए चेतने
    का समय नहीं है।
    चर्चा में इसे लाने के लिए शुक्रिया।
    अब समय आ गया है कि एक शब्द लिखने से पहले हम हज़ार शब्द पढ़ें, गुनें तब लिखें तभी शायद हिंदी साहित्य का मात्रात्मक बोझ कम हो सके।
    मेरी रचना को प्रस्तुति में स्थान देने के लिए आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. 150 रु किलो
      कई साल पहले भी देखी थी
      अब तक वही रेट है
      ज़रा भी कम नहीं हुई
      अभी दीपावली का समय है
      रायपुर में भी मिल जाना जाहिए
      पता करते हैं
      कबाडियों की दुकानों पर
      सादर..

      हटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति.मुझे भी शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह!!श्वेता ,बेहतरीन प्रस्तुति । भूमिका में दी गई तस्वी काफी समय से सोशल मीडिया पर इधर से उधर घूमती नजर आ रही है । लोग बिना सोचे समझे शेयर भी करते जा रहे है ...। वैसे मुझे अपनी हिंदी और हिंदी साहित्य पर गर्व है

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत खूब रचनाएं.. ...सभी को शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  7. ऐसी स्तिथि का एक महत्वपूर्ण कारण ये है कि गली में कंकड़ उठा के मारो तो एक तथाकथित हिंदी साहित्यकार को जाकर लगता है।
    हालांकि ये तथाकथित साहित्यकार घमंडी से होते हैं लेकिन इनकी लेखनी कॉपी पेस्टिये जैसी होती है बेहद उबाऊ या निचले स्तर की...ऊपर से ये अपनी किताबें भी छपवा लेते हैं... किताबों में रचनाएं ऐसी कि अच्छे लेखक जिन्हें लिखकर अपने डस्टबिन में डाल देते हैं।
    हमें अगर अच्छा साहित्य बनाना है तो इसमें यूनिकनेस लानी होगी।
    घिसे पिटे विचारों को छपवाने की बजाए हम रहने ही दें... हिंदी साहित्य हमारा अहसान कभी नहीं भूलेगी।
    तब पक्का एक दिन आएगा कि ये अमूल्य हो जाएगी।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लिखने के लिए तथाकथित परिमार्जित साहित्यकार होना आवश्यक है क्या ?
      कुछ लोग स्वान्तः सुखाय के लिए भी तो लिखते ही हैं ना ?
      घिसे-पिटे विचारों से हट कर सोचेंगें और लिखेंगे, भले ही वह स्वान्तः सुखाय हो , बुद्धिजीवियों को पीड़ा होती है।
      जहाँ लोग गुट, सम्प्रदाय, जाति, धर्म की अलग -अलग दरबे में बंद हों, वहाँ निष्पक्ष खुली छत्त की कल्पना भी बेमानी है।
      एक ये भी कारण है कि हम आमजन से जुड़ने की कोशिश कम करते हैं, बल्कि हम साहित्यकार की परिधि में ही घुमते रहते हैं। बंद कमरे में या मंच पर विमोचन या अवार्ड को हम अपनी उपलब्धि माने बैठे हैं। जिस दिन आमजन का मन रचना से जुड़े और किसी एक आमजन (वाह वाह/लाइक/स्माइली से परे ) की भी रचनानुसार मानसिकता को बदले या रूमानी अनुभूति करा दे तो तथाकथित साहित्य की सफलता होगी।
      हमारी रचना आमजन तक पहुँचे, इसके लिए यत्न करना ही होगा। हम ही लिखे और हमारे जैसे लिखने वाले लोग पढ़े भी , उनमे से कुछ पढ़े ... कुछ गुटबाजी में एक दूसरे को नीचा और खुद को सर्वोपरि साबित करते रहें तो क्या होगा भला ...
      आमजन तक तो जाना ही होगा ...लाइक/कमेंट की परिधि से परे निकलना ही होगा ...

      हटाएं
  8. बेहतरीन संकलन मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार...!!

    जवाब देंहटाएं
  9. इस नायाब संकलन में मेरी रचना को साझा करने के लिए आभार आपका ...

    जवाब देंहटाएं

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