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सोमवार, 14 अक्टूबर 2019

1550...हम-क़दम का बानबेवाँ अंक.... प्रेम

स्नेहिल अभिवादन
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सृष्टि का आधार 
"प्रेम" 
इस शब्द में 
छुपे व्यापक और 
गूढ़ अर्थ को शब्दों में 
परिभाषित करना आसान 
हो सकता है परंतु इसकी अनुभूति 
का लौकिक आनंद अभिव्यक्त कर पाना 
संभव नहीं। आज के युग में प्रेम एक वस्तु 
की तरह हो गया है जिसे लोग अपनी सुविधाके 
अनुसार इस्तेमाल करते हैं। स्मार्टफोन संस्कृति 
के दायरे में सिमटते विचार, डिजिटल होते 
रिश्तों के दौर में प्रेम उस फैशन की तरह 
है जिसकी गारंटी देना आपके पुरानपंथी, 
रुढ़िवादी और सड़ी-गली वैचारिक 
पिछड़ेपन की निशानी मानी 
जाती है।प्रेम का आकर्षक 
बाजारवाद युवाओं 
को आकर्षित 
करने में
पूर्णतः
सफल रहा है। तभी तो किसी भी अनुभूति और भावनाओं से बढ़कर प्रेम का प्रदर्शन ही प्रेम का पैमाना बन गया है।

★★★★★★

साहित्य में प्रेम पर आधारित रचनाओं का
विस्तृत भंडार है।
सभी कवियों ने लिखा है
कुुुछ कवियों की लिखी रचनाओं मेें से दो  पंक्तियाँ-
★★★★★★


अमीर खुसरो
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग 

खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार

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छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
प्रेम भटी का मदवा पिलाइके
मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
गोरी गोरी बईयाँ, हरी हरी चूड़ियाँ
बईयाँ पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके

-*-*-*-

स्मृतिशेष 
मैथिली शरण गुप्त 

दोनों ओर प्रेम पलता है सखि, 
पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है!

सीस हिलाकर दीपक कहता 
‘बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’

★★★★★★


कबीर

पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ,पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंड़ित होय।।

★★★★★★★
ब्लॉग संपर्क फॉर्म सुचारु रुप से काम नहीं कर रहा है इस बार सभी रचनाएँ पिछली भेजी रचनाओं के आधार  पर ब्लॉग से लिंक की गयी है अगर किसी की रचना छूट गयी हो तो मैं करबद्ध क्षमाप्रार्थी हूँ। 
★★★★★
हमारे सम्मानीय रचनाकारों की
नियमित रचनाएँ
आदरणीय साधना वैद
कभी बुझती नहीं !
क्यों दिल हज़ारों सदमे
झेलने के बाद भी   
हताश हुए बिना
ताउम्र यूँ ही बेसबब 
धड़कता रहता है !
क्योंकि यह प्यार है
और प्यार का कभी
दमन नहीं होता !  

★★★★★

आदरणीय संगीता जांगीड़

मेरी फ़ोटो
करता है ईश्वर प्रेम मुझे
बाल न बांका होने देना
उसका प्रेम लेकर
पार हर राह करुंगी, पर
मैं हार ना मानूंगी

★★★★★

आदरणीय कुसुम कोठारी
चाहतों के पलाश का
बस यूं ही खिले-खिले रखना,
हरी रहेगी अरमानों की बगिया
प्रेम के हरे रहने तक।

★★★★★★

आदरणीय कुसुम कोठारी
झूठो है जग को जंजाल
जल बिंदु सो पावे काल
"प्रेम" विरहा सब ही झूठ
आत्मानंद पा अंतर लखि
ऐसो हो अब वसंत सखी।

★★★★★★

आदरणीया आशा लता
एक रुप प्रेम का

मीरा ने घर वर त्यागा 
लगन लगी जब मोहन से
 विष का प्याला पी लिया
शीष नवाया चरणों में |
सूर सूर ना रहे
कृष्ण भक्ति की छाया में 
सारा जग कान्हां मय लगता 
तन मन भीगा उनमें  |

★★★★★

आदरणीया अनीता सैनी
प्रबल प्रेम का पावन रुप

प्रखर प्रेम को सजोये सीने में  
सदियों से सहेजते और समझाते आये  
सबल समर्पण साँसों में लिये 
मसृण रस्सी से जीवनपर्यन्त बँधे आये   
अंतरमन को उनके 
उलीचती सृष्टि स्नेह की स्निग्ध धार से 
प्रेम के वाहक कहलाये 


★★★★★

आदरणीय अनीता सुधीर
My photo
सूना है सब प्रेम बिन, कैसे ये समझाय।
त्याग भाव हो प्रेम में ,प्रेम अमर हो जाय ।।

आदर जो हो प्रेम में,सबका मान बढ़ाय।
बंधन रिश्तों में  रहे ,जीवन सफल बनाय।।

प्रेम रंग से जो रँगे ,मन पावन हो  जाय ।
भक्ति भाव हो  प्रेम में,पूजा ये कहलाय ।।

★★★★★★

आदरणीय अनुराधा चौहान
ओढ़े दिखावटी प्रेम के मुखौटे
यह झूठे मुलाकातों के सिलसिले
संवेदनाएं मन की कहीं गुम हो गईं
बातों में सरसता छुप-सी गई 
★★★★★★★

आदरणीय मीना शर्मा
निर्मलता की उपमा से,
क्यों प्रेम मलीन करूँ अपना,
तुम जानो अपनी सीमाएँ,
मैं जानूँ, तुम हो सपना !
साथ छोड़कर मत जाना,
भटकाव सँभलता है तुमसे !
बरसों से भूला बिसरा,
इक चेहरा मिलता है तुमसे !

★★★★★★

आदरणीया सुजाता प्रिय
कोई ना समझे मन को मेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा।
इस  डेरे  में प्रेम के  कमरे,
चाहो आकर रख ले बसेरा।
यह मन तो है प्रेम का डेरा

★★★★★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान
प्रेम-बंधन

प्रेम बंधन जहां,
वहां प्रीति-प्रतीति..
झूठी है अनीति..!
कुटिल कुरीति..!
हो समत्व भाव,
चाहे हो अभाव।
प्रेम-बंधन है,

★★★★

प्रेम का ये रुप सच्चा

सिमट गई दुनिया पूरी,
चांद-तारों से बन गई दूरी।
फीस,कापी और किताबें,
जरूरतें जो कभी न हो पूरी।

जिम्मेदारियां का बढ़ा जाल,
भूल गए अपना सब हाल।
रोटी, कपड़ा और मकान,
इनके उठ खड़े हुए सवाल।



आदरणीय सुबोध सिन्हा प्रेम के तीन आयाम

यूँ तो कभी पाना है प्रेम .. कभी खोना है प्रेम
कभी अपनाना है प्रेम .. तो
कभी मजबूरीवश ठुकराना है प्रेम
ऑनर किलिंग हो तो खतरा है प्रेम
या फिर डोपामाइन का क़तरा है प्रेम
किसी से लिपटना है प्रेम
या किसी से बिछुड़ना है प्रेम

★★★★★★★

आज का हमक़दम आपको कैसा लगा?
आप सभी की प्रतिक्रियाओंं की प्रतीक्षा रहती है।

कल का अंक पढ़ना न भूलें।

#श्वेता





18 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    बेहतरीन रचनाओं का
    अद्भुत संगम..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात
    मेरा स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण जल्दी ब्लॉग पर ना आ सकी थी |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर रचनाओं का सुंदर संगम ।
    भुमिका में सार्थक विश्लेषण प्रेम पर कितना सच कितना दिखावा। और सुंदर बंधों में सार कह दिया कालजयी रचनाकारों ने ।
    लाजवाब संकलन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी दोनों रचनाओं को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन भूमिका के साथ सुंदर प्रस्तुति ,हर एक रचना लाजबाब ,सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ,मैं भी अपना लिक भेजी थी https://dristikoneknazriya.blogspot.com/2018/10/pyar-ek-roop-anek.html
    परन्तु जैसा की अपने कहा " ब्लॉग संपर्क फॉर्म सुचारु रुप से काम नहीं कर रहा है" शायद मेरी रचना को इसी वजह से शामिल नहीं हो पाई। आप सभी को सादर नमन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. क्षमा चाहती हूँ कामिनी जी आपकी रचना कल के अंंक में प्रकाशित करने का प्रयास करूंगी।🙏🙏

      हटाएं
  6. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी,सादर

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर प्रस्तुति, मुझे स्थान देने हेतु आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन लिंक्स एवम प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति प्रिय श्वेता। सभी रचनाएँ बहुत सुंदर हैं।
    सारी रचनाओं का सार बस इस एक पंक्ति में -
    "ढाई आखर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय"
    और विडंबना यह है कि इंसान से यही ढाई आखर नहीं पढ़े जाते वरना आज दुनिया में इतना स्वार्थ, इतनी हिंसा, इतना छल कपट ना होता। यही कहूँगी कि सबसे आसान है प्रेम पर लिखना,परंतु अत्यधिक कठिन है प्रेम को समझना, प्रेम करना (आजकल के फिल्मी अंदाज वाला नहीं) और सबसे कठिन है प्रेम निभाना।
    मेरी रचना को हमकदम में स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

    जवाब देंहटाएं
  11. शानदार...... प्रेम से सराबोर रचनाएं.... मुझे यहां स्थान देने के लिये आपका शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही शानदार संकलन ! मेरी रचना को इसमें स्थान देने के लिए आपका ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई ! मेरी रचना का शीर्षक शायद बदल दिया आपने ! पहले तो मैं समझ नहीं पाई लेकिन अपना नाम और चित्र देख कर भरोसा हो गया कि रचना मेरी ही है ! इसे शिकायत मत समझिएगा ! ऐसे ही उल्लेख कर दिया ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  13. हमक़दम के इस अंक में मेरी रचना साझा करने के लिए आभार आपका ... प्रेममयी संकलन ...

    जवाब देंहटाएं

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