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रविवार, 29 सितंबर 2019

1535....बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ

जय मां हाटेशवरी....

आज से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो गये हैं.....
 हिन्‍दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्‍व है......
नवरात्र पर्व के आठवें और नौवें दिन कन्या पूजन का विधान होता है.....
हमारे देश की प्राचीन संस्कृति में   कन्याओं को पूजने की परंपरा
समाज में बेटिओं को संमान दिलाने का प्रयास है.....
नवरात्र पर्व  में नारी के हर रूप की पूजा होती है.....
फिर महिलाओं का शोषण, भ्रूण-हत्या.....
घरेलु हिंसा व रेप आदी.....
कहां से आ गये हमारे समाज में....?
मां भरती झोली खाली!
मां अम्बे वैष्णो वाली!
मां संकट हरने वाली!
मां विपदा मिटाने वाली!
दूर की सुनती हैं माँ, पास की सुनती हैं माँ,
माँ तो अखिर माँ हैं, माँ तो हर भक्त की सुनती हैं.
मां के सभी भक्तों को शारदीय   नवरात्र की शुभ कामनाएं!!!
 शारदीय   नवरात्र  के शुभ आरंभ व   पावन अवसर पर.....
इस आवाहन के साथ पेश है आज की हलचल.....

घर -घर में अभियान चलाओ
Photo:
बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ
जन - जन की पहचान है बेटी ,
खुशियों का अरमान है बेटी
आँखों - में कुछ सपने लेकर
जीवन का निर्माण है बेटी |
पढ़ेगी - बेटी- बढ़ेगी बेटी
नए शिखर पर चढ़ेगी - बेटी
नव नूतन के अग्रिम पथ पर ,
कदम मिलाकर बढ़ेगी बेटी
घर की खुश हाली है बेटी
महकी फुलवारी है - बेटी
जीवन का आधार बनाओ ,
बेटी बचाओ -बेटी पढ़ाओ|


               
इस आवाहन के साथ.....


       
जो भी है बस यही एक पल है ....

निगाहें व्यतीत सी ,छलकती रहीं
यादें अतीत सी ,कसकती ही रहीं

सामने वर्तमान है ,सूर्य किरण सा
परछाईं सी बातें , पग थामती रहीं



रूबरू

ताब ए दर्द कुछ यूँ बड़ चला
है रूह पर,
खुद में ही खुद को अब,
ख़त्म हम कर जाते है।



बुझती आकांक्षा

"हाँ, ठीक है गुड़ नाइट।"
इससे ज़्यादा के शब्दों की उम्मीद उसे बहुत साल पहले ख़त्म हो चुकी थी।
आकांक्षा  बैडरूम की तरफ मुड़ गयी।  रूम में ऐंटर करने से पहले उसने इक बार फिर अपनी रूखी, उदासीनता और निराशा से भरी, सुखी आँखों से पीछे मुड़ के देखा। वो अभी
भी उसकी तरफ देख रही थी आँखों में पानी भरे। 



कल्पना नहीं कर्म :(

अब बाहर निकलो इस संकीर्ण दायरे से
कल्पना को नहीं
कर्म को भोगो
अपने कंधे मजबूत करो
इन्ही कंधो को तो
यह देश यह समाज निहारता है
अपनी आशामयी, धुंधली सी
बूढ़ी आँखों से.........!!



सोने दो उसे
बिल्कुल याद नहीं उसे
वे तमाम दर्द,
जो उसने सहे हैं.
सपने,जो वह देख रहा है,
जागते में नहीं देख सकता,
उसके होंठों पर अभी
एक दुर्लभ-सी मुस्कान है,
अपने सबसे हसीन पल
अभी जी रहा है वह.

यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं

लिखने का फ़न तो रस्मे अदायगी ही सही
पढ़ पढ़ के तेरे गीत यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं



कुछ और नहीं चाहिए

तेरे सजदे कर के |
सब मिलजुल कर रहें
प्यार बांटे  एक दूसरे से
है यही  तमन्ना दिल से
जिसकी पूर्ती कर दे |



धन्यवाद।

8 टिप्‍पणियां:

  1. शक्तिपीठ विंध्याचल में भी शारदीय नवरात्र पर्व प्रारंभ हो गया है। लाखों भक्त आते हैं।
    परंतु इस बार इंद्रदेव कुपित हैं। अतः भक्तों की आस्था की परीक्षा तय है।
    कष्ट इस बात का होता है,इस देवीधाम में कि विशिष्ट दर्शनार्थियों को तो उत्तम व्यवस्था मिलती है ,वहीं आम दर्शनार्थी उपेक्षित होते हैं। महामाया के धाम में लौकिक माया का यह वर्चस्व आश्चर्यजनक है।
    यहाँ भगवती की पूजा होती है,परंतु दुर्व्यवहार महिला श्रद्धालुओं संग ही अधिक होता है।
    नवरात्र पर्व की सभी को शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात
    उम्दा लिंक्स
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |नव दुर्गे के उपलक्ष्य में आप सब को शुभकामनाएं |

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन प्रस्तुति
    आभार आपका
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. समाज में बेटिओं को संमान दिलाने का प्रयास है.....
    नवरात्र पर्व में नारी के हर रूप की पूजा होती है.....
    फिर महिलाओं का शोषण, भ्रूण-हत्या.....
    घरेलु हिंसा व रेप आदी.....
    कहां से आ गये हमारे समाज में....?
    मौन.. मूक दर्शक

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  5. नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं, बहुत शानदार प्रस्तुति शानदार भुमिका।
    सभी लिंक मन मोह गये सुंदर पठनीय सामग्री।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुन्दर प्रस्तुति. मेरी कविता शामिल की. शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं

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