---

मंगलवार, 10 सितंबर 2019

1516..सांड को रोटी खिलाने से पुण्य क्यों नहीं मिलता

सादर नमस्कार..
आजकल भूत-प्रेत 
अधिक ही सक्रिय हो गए हैं 
इक्कीसवीं सदी में अग्रसर 
भारत अंधविश्वास की जकड़न में
फंसता नजर आ रहा है...
क्यों...ये तो राम जाने...
चलिए चलें रचनाओं की ओर...


दिल दाग़दार ....

जो फूलों सी ज़िंदगी जीते कांटे हजार लिये बैठे हैं,
दिल में फ़रेब और होंठों पर झूठी मुस्कान लिये बैठें हैं।

खुला आसमां ऊपर,ख्वाबों के महल लिये बैठें हैं
कुछ, टूटते अरमानों का ताजमहल लिये  बैठें  हैं।



दिन बहुरते हैं .....

लगता है कि कोई बोझ था, उतर गया. अब सब कुछ नया. सब कुछ फिर से. जैसे मन उर्जस्वित हो गया हो...जैसे मनचाहा वर मिल गया हो...जैसे किसी ने कह दिया हो- का चुप साधि रहा बलवाना.....अजर अमर गुननिधि सुत होऊ....


एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ ...

काटता हूँ मूछ पर दाड़ी भी रखता 
और माथे के तिलक तो साथ रखता  
नाम अल्ला का भी शंकर का हूँ लेता
है मेरा धंधा तमन्चे बेचता हूँ
एक सौदागर हूँ ...


दिल के टुकड़े टुकड़े करके ....

" हो गया मेडिकल चेकअप "
" हा हो गया "
" क्या क्या हुआ "
" वही सब जो मेडिकल चेकअप में होता हैं "
" वही तो पूछ रहीं हूँ क्या क्या हुआ ,एक बार में जवाब नहीं दे सकते हो "
" अरे यार ! वही हार्ड , ब्लड , ब्लडप्रेशर , आँख कान मुंह सबका "
" हार्ड का क्या निकला सब ठीक हैं "
" नहीं बोली दिल तो चकनाचूर हैं आपका "
" ठीक से चेक नहीं की होगी , करती तो चकनाचूर नहीं कहती , कहती आपको तो दिल ही नहीं हैं "



बहुत याद आओगे ...

गुलाब के फूल
जब भी खिलेंगे 
तो बहुत याद आओगे 
इतनी आसानी से
मुझे न भूल पाओगे 
मैं कोई महक नहीं 
जो वायु के संग बह जाऊं 


लघुकथा ...
लघुकथा- पुण्य
इतना कह कर वो रोटी लेकर वापस घर के अंदर जाने लगी। तब सुहास बोला, ''मम्मी, गैया को ही रोटी खिलाना ज़रुरी हैं क्या? सांड को नहीं खिला सकते?''  
''बेटा तू अभी छोटा हैं...तुझे नहीं समझता...गैया को रोटी खिलाने से पुण्य मिलता हैं!'' 
''मम्मी, पुण्य तो भूखे को रोटी खिलाने से मिलता हैं न? जिस तरह गैया को भूख लगती हैं ठीक उसी तरह सांड को भी तो भूख लगती होगी...फ़िर सिर्फ़ गैया को ही रोटी खिलाने से पुण्य क्यों मिलता हैं? सांड को रोटी खिलाने से पुण्य क्यों नहीं मिलता?

अब क्या बाकी रह गया
विषय...अठ्यासी नम्बर का
खामोश/खामोशी
उदाहरण..

ख़ामोशी से बातें करता था 
न जाने  क्यों लाचारी है  
कि पसीने की बूँद की तरह 
टपक ही जाती थी 
अंतरमन में उठता द्वंद्व 
ललाट पर सलवटें  
आँखों में बेलौस बेचैनी

छोड़ ही जाता था 
रचनाकारः अनीता सैनी
अंतिम तिथिः 14 सितम्बर 2019(तीन बजे दोपहर तक)
प्रविष्ठि सम्पर्क फार्म द्वारा

सादर
दिग्विजय


26 टिप्‍पणियां:

  1. अंधविश्वास ही तो हमारे देश का सबसे घातक रोग रहा है।पर पढ़े लिखे लोग इसके पुजारी और भक्त दोनों ही बन जाते हैं ,तो स्थिति विकेट हो जाती है।
    खैर , हमारे उत्तर प्रदेश में बच्चा चोर की अफवाहों का दौर चल रहा है ,इन दिनों । अतः विक्षिप्त जनों का खुदा खैर करे..।
    सुंदर , सजीव ,सार्थक एवं मधुर रचनाओं को प्रस्तुति में शामिल करने के लिये आभार और प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।सराहनीय।

    जवाब देंहटाएं
  3. स्थिति विकेट को " विकट " पढ़ा जाय.. सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. जब भविष्य नजर आना बंद हो जाता है
    तुरन्त भूत को सक्रिय कर दिया जाता है।

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  5. आज के वैज्ञानिक युग में भी इंसान बूरी तरह अंधविश्वास से जकड़ा हुआ हैं। यही कड़वी सच्चाई हैं।
    मेरी रचना को 'पांच लिंको का आनंद' में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिग्विजय भाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा लिंक संयोजन आज का ...
    आभार मेरी राचना को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  7. "इक्कीसवीं सदी में अग्रसर
    भारत अंधविश्वास की जकड़न में
    फंसता नजर आ रहा है...
    क्यों...ये तो राम जाने..." आपकी इन पंक्तियों में "राम जाने" की बात करें तो , ये "राम"के ही कारण सारी फसादें हैं, क्यों कि हमने सब उन्हें जानने के लिए रख छोड़ा है।
    हम कहीं तर्क या विश्लेषण करने से हिचकते हैं ।
    ये हिचकन ही है वजह इसकी ... राम जानते तो ये परिस्थिति उपजती ही नहीं ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ये हिचकन ही है
      वजह इसकी ...
      राम जानते तो
      ये परिस्थिति उपजती ही नहीं ...
      बरोबर बोला
      उपजती नही
      उपजाई जाती है
      अड़ंगा इसी को कहते हैं
      सादर

      हटाएं
    2. आदरणीय आप शायद नाराज हो रही हैं।
      वैसे राम नाम भी उपजाई ही गई है। पाषाणकालीन युग में राम शायद नहीं थे।
      सादर

      हटाएं
    3. आप सही हैं..
      पाषाण युग में राम का प्रादुर्भाव हुआ ही नहीं था
      वे त्रेतायुग में रावणवध हेतु अवतरित हुए थे..
      सादर..

      हटाएं
    4. रावण को चित्रगुप्त ने पैदा ही क्यों होने दिया , आज तक नहीं समझ पाया। अगर भगवान की फैक्ट्री में इंसान बनते हैं तो ऐसे इंसान बनते ही क्यों हैं भला !?

      हटाएं
  8. सुन्दर सार्थक लिंकों से सजी शानदार प्रस्तुति...

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।