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बुधवार, 4 सितंबर 2019

1510.. एक दीपक किरण–कण हूँ..


।।प्रातः वंदन।।

"व्योम के उर में¸ अपार भरा हुआ है जो अंधेरा

और जिसने विश्व को¸ दो बार क्या¸ सौ बार घेरा

उस तिमिर का नाश करने के लिए¸ —

मैं अटल प्रण हूँ

एक दीपक किरण–कण हूँ।"
रामकुमार वर्मा



तो फिर चलिए..उपर्युक्त विचारपूर्ण शब्दों के साथ

 एक अहद हम दीपक किरण कण संग की तरह 

उजियारा बढाने की ..और बढ़ते हैं, 

आज की प्रस्तुति में शामिल लिंकों की ओर..रचनाकारों के ब्लॉग को क्रमानुसार पढ़ें..✍

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ज़िन्दगी रंग शब्द 

उम्मीद तो हरी है .........

स्वप्न मेरे ...

ठहराव

सरोकारनामा



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पिता की बाहों के पालने में,खेली-पली मैं ,

आँगन की चिरैया सी,चहक-चहक डोली ,

मीठी सी मुस्कान संग,खिलौनों की झोली



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सड़कों का पानी सूख गया 
घर का आंगन 
अभी तक गीला है 
मां के आंसू बहे हैं



कितनी मुश्किलों से खरीदा था 

ईंट ,सीमेंट ,रेत

उस साल बाबूजी बेच कर आये थे पुश्तैनी खेत


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पल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगी ...
धूल कभी जो आँधी बन के आएगी

पल दो पल फिर आँख कहाँ खुल पाएगी
अक्षत मन तो स्वप्न नए सन्जोयेगा
बीज नई आशा के मन में बोयेगा
खींच लिए जायेंगे जब अवसर साधन
सपनों की मृत्यु उस पल हो जायेगी..


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फ़ुरसत में आज गिन रहा हूँ इत्मिनान से
आँगन तेरी आँखों का न हो जाये कहीं तर
डरता हूँ इसलिए मैं वफ़ा के बयान से
साहिल पे कुछ भी न था तेरी याद के सिवा..


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फिर यह पैसा किसी के बाप का नहीं , हमारे आप के जमा किए टैक्स का पैसा होता है । 
यानी हमारा ही पैसा । फिर भी लोगों की नज़र में 
बशीर बद्र का एक शेर मौजू हो जाता है :
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही खुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निजाम है..

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हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए


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।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'✍

13 टिप्‍पणियां:

  1. उस तिमिर का नाश करने के लिए¸ —
    मैं अटल प्रण हूँ
    एक दीपक किरण–कण हूँ।"

    माफ करें ,ऐसे संकल्प अब भाषण मंच पर अथवा पुस्तकों के पन्नों में ही सिमटे दिखते हैं। महंगाई , बेगारी, बदहाली , बेरोजगारी से जूझ रही जनता और विशेष कर नौकरी के अभाव में जरायम की दुनिया में तेजी से प्रवेश कर रहे युवा वर्ग का जीवन जिस तरह से अंधकारमय होता जा रहा है, उनके मध्य ऐसा को साहित्यिक, पत्रकार, राजनेता, सामज सेवक प्रकाश पुंज बन खड़ा नहीं दिखता है।
    यही प्रबुद्धजनों की सबसे बड़ी विडंबना है कि वह अपने शब्द ज्ञान को संकल्प में नहीं परिवर्तित कर पाता है।
    सार्थक प्रस्तुत के लिये आभार..
    निश्चित दीपक बन टिमटिमाते रहने की इच्छाशक्ति हममें होनी चाहिए...

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन प्रस्तुति...
    आभार...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह! तिमिर नाश का उद्घोष करती सकारात्मक भूमिका की किरणों से प्रकीर्ण सारगर्भित संकलनों की प्रगल्भ प्रस्तुति!!! अभिवंदन और आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति पम्मी जी विविध रंगों से सजा संकलन सभी लिंक शानदार।
    बहुत शानदार भुमिका।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. चर्चाकार कुलदीप जी को उनके जन्मदिन पर शुभकामनाएं। सुन्दर अंक।

    जवाब देंहटाएं
  6. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय कुलदीप जी,
    बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई,दीपक की यही विशेषता उसे सशक्त
    बनाती है कि वह झंझावातों में भी टिमटिमाता हुआ जग को प्रकाशित करने के
    अपने कर्म को करता रहता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. खूबसूरत हालचाल लिंक्स की ...
    आभार मेरी रचना को शामिल करने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  8. बेहतरीन प्रस्तुति , सभी लिंक जबरदस्त है

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर भूमिका के साथ शानदार सूत्रों का संयोजन.. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं

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