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शनिवार, 20 जुलाई 2019

1864... अधजल गगरी छलकत जाय


:न ठहरने की है मियाद का पता
न जाने की इज़ाज़त जरुरी।
ज्योति स्पर्श
:हाय-तौबा मची जाने क्या-क्या ले जाएंगे
छीना-झपटा बटोरा यहाँ, वहाँ भी पायेंगे।
विभा रानी




आखिर कब तक चलेगा ये सिलसिला   ? बिना सिर पैर के कुछ भी बको  ? 
लल्लन जी आये दिन  नेताओ के उल्टे पुल्टे बयानों से  परेशान होकर कहने लगे
कि  गीता मे भी कहा गया है ।" न हि ज्ञानेन संदृशं पवित्र मिह विद्यते "
अर्थात् - ज्ञान से अधिक पवित्र संसार में कुछ भी नही है ।
कलयुगी गीता में  अज्ञानी  और ज्ञानी के बिच में 
तथाकथित महाज्ञानी का पाया  जाता है l

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अधजल गगरी छलकत जाए - दादी नानी की कहानियाँ

समस्या तब उत्पन्न हुई, जब वह नदी के किनारे पहुंचा। किसान को तैरना नहीं आता था।
वहां नावें भी नहीं थी। सो उसके पास एक ही रास्ता था कि वह नदी उन्हीं स्थानों से पैदल पार करे,
जहां पानी की गहराई बहुत कम थी। मगर उसके सामने एक दूसरी समस्या यह थी
कि उसे यह नहीं मालूम था कि नदी में किस स्थान पर पानी की गहराई कम है।

अधजल गगरी छलकत जाय

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अधजल गगरी छलकत जाय

आजकल अपने धन से लेकर दान-पुण्य, समाजसेवा, आध्यात्मिक व धार्मिक रुचि
एवं बौध्दिक क्षमता का बढ-चढक़र बखान करने वालों की कोई कमी नहीं है
बल्कि देखा जाए तो ऐसे लोगों की संख्या में इतनी तेजी से बढाेतरी हो रही है
कि कभी-कभी ऐसीर् ईष्या होने लगती है कि हमारे देश का विकास इस गति से
क्यों नहीं हो पाता। परंतु फिर एक संतोष भी होता है कि देश का
विकास इतना खोखला होने से तो धीमी गति से होना ज्यादा अच्छा है।
अधजल गगरी छलकत जाय

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अब बारी है विषय की
हम समझते हैं कि 
यह विषय पहले भी दिया गया है
कॉपी नहीं चलेगी..
अस्सी नम्बर का विषय
अहसास
उदाहरणः
सुनो ना !
सोचा है आज
तुम तनिक अपने
मन की राई से
प्रेम का तेल
बहने दो ना जरा ...
रचनाकार सुबोध सिन्हा


अंतिम तिथि-20 जुलाई 2019(सायं 3 बजे तक)
प्रकाशन तिथि- 22 जुलाई
प्रविष्ठियाँ ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप पर ही मान्य

13 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दीदी सादर नमन..
    सदा की तरह एक बेमिसाल प्रस्तुति..
    साधुवाद..
    सादर..

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  2. आदरणीया बेमिसाल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात !
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  4. अधजल गगरी छलकत जाय मुहावरे की प्रासांगिकता बतलाती अच्छी रचनाएँ है सारी दी।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  5. अधजल गगरी.... वाह ! बहुत अच्छी प्रस्तुति है विभा दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. अधजल गगरी छलकत जाय....उम्दा लिंक्स
    बेहतरीन प्रस्तुतिकरण ।

    जवाब देंहटाएं
  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  8. अधजल गगरी छलकत जाय पर बहुत ही शानदार प्रस्तुति आदरणीय दीदी | सभी लिंक बहुत ही ज्ञानवर्धक | खासकर बोध कथा और व्यंग लेख ने मुहावरे पर अनोखा ज्ञान दिया | अधजल गगरी छलकत जाय-- एक आधे-अधूरे और गरिमाविहींन व्यक्तित्व का परिचायक है |अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना भी शायद इसी मुहावरे का दूसरा रूप है |इसके विपरीत शांत नदी सा व्यक्तित्व अपनी पहचान आप होता है | सच कहा गया नदी जहाँ अधिक गहरी होती है वहां ज्यादा शांत होती है तो उथला पानी शोर मचाकर अपना हल्कापन जाहिर कर देता है | हमेशा की तरह लिक से हटकर प्रस्तुति के लिए कोटि आभार और प्रणाम |

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  9. वाह शानदार हर बार की तरह बेमिसाल प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  10. हमारी Site पर विजिट करने एवं अपने इस सुंदर संकलन मे हमें स्थान देने के लिए आपका ह्रदय से आभार । हमे आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा रहेगी ।

    जवाब देंहटाएं

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