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गुरुवार, 18 जुलाई 2019

1462 ....माछी को जल- तुरई कहत हैं.’

स्नेहिल अभिवादन
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प्रकृति का असहज रुप,
अतिवृष्टि से बेहाल देश के पाँच राज्यों के 
निवासी बाढ़ की मार झेल रहे हैं।
हम रटा रटाया वही प्राकृतिक आपदा को दोष देकर सारा ठीकरा नियति के सर फोड़ देते हैं।
बाढ़ से पीड़ित जन-जीवन की व्यथा समझने 
का ढ़ोंंग करने के सिवा हम करते ही क्या है।
एक सामान्य बात की तरह बाढ़ की भयावहता को नज़रअदाज़ करने की आदत पड़ गयी है हमें। काश! कि उस विषम परिस्थितियों से जूझने को विवश लोगों की समस्या
जड़ से समाप्त करने की दिशा में कोई ठोस और सार्थक प्रयास कर पाते  वर्ल्डकप जीतने के हार जीत वाले उत्साह जैसा कुछ।

चलिए आज की रचनाएँँ पढ़ते हैं- 

वहम

सारे रास्ते गोलार्द्ध चाँद
आकाश के गोद से
नन्हे बच्चे-सा उचकता
मुलुर-मुलुर ताकता
एक सवाल मानो पूछता रहा
अनवरत .... कि ....
मेरे रौशन पक्ष केवल देखकर
एक वहम क्यों पाल लेते हो भला

★★★★★★
एक्वारजिया

ज़िंदगी की झील में
बुदबुदाते ग़म
और उसका प्रतिफल
जैसे सांद्र नाइट्रिक अम्ल और
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का ताजा मिश्रण
एक अनुपात तीन का समिश्रण
उफ़!धधकता बलबलाता हुआ
सब कुछ
कहीं स्वयं न पिघल जाएँ
दुःख दर्द को समेटते हुए

★★★★★★

मेघ है आकाश में कितने घने

चिर प्रतीक्षा बारिशों की हो रही   
बूँद अब तक बादलों में सो रही
हैं हवा में कागजों की कत-रने
मेघ हैं आकाश में ...

कुछ कमी सी है सुबह से धूप में
आसमां पीला हुआ है धूल में  
रेड़ियाँ लौटी घरों को अन-मने
मेघ हैं आकाश में ...

★★★★★★

बेटी सुख का सार

बेटी को इस जगत में, बेटा कहा पुकार।
जगदम्बा  का  रूप है, बेटी तो उपहार।।
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बेटी बतलाती हमें,ख़ुशियों का सब सार।
बेटी के बिन मनुज का, जीवन है बेकार।।
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★★★★★★

सत्यमेव जयते

आज भी मंदिरों में
देवी की मूर्ति के सामने
मिथ्या भक्ति का ढोंग रचाने वाले
पाखंडी 'सदाचारी' लोग 
निर्बल असहाय नारी को
अकेला देख उस पर
वहशी दरिंदों की तरह
टूट पड़ते हैं,

★★★★★★

भीग चले हैं, हृदय के कोर,
कोई खींच रहा है, विरहा के डोर,
समझाऊँ कैसे, इस मन को,
दूर कहाँ ले जाऊँ, इस बैरन को,
जिद करता, है ये जाने की,
हर पल, तेरी ही ओर!

★★★★★★
शाकाहार

बाबा अपना त्रिनेत्र खोलकर दहाड़े 
माछी-भाततू तो ख़ुद को भगत बता रहा था,अब ये माछी-भात कहाँ से आ गया?’
महाराज ने उन्हें समझाया 
साहेबमाछी में कौनों दोस नाहीं होत है. बंगाले में तो माछी को जल- तुरई कहत हैं.

★★★★★★

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हम-क़दम का नया विषय

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कल का अंक पढ़ना न भूलै
कल आ रहे हैं रवींद्र जी
अपनी विशेष प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता सिन्हा

11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    बहुत बढ़िया अग्र आलेख
    सारा कुछ समेट दिया...
    सारी रचनाएँ बेहद अच्छी..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. मन से आभार आपका "पांच लिंकों का आनंद" के 1462वें अंक में मेरी साधारण सी रचना को स्थान देने के लिए।
    सारी उम्दा संकलन में बौनी सी मेरी 'वहम'...
    एक्वारजिया के नए आयाम को नमन ....

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति 👌,मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार प्रिय श्वेता दी जी |
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर सूत्र आज के इस शानदार संकलन में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत शानदार प्रस्तुति सभी सामग्री पठनीय और सुंदर अच्छे लिंको का चयन सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  6. शुक्रिया मेरे ब्लॉग लिंक को शेयर करने के लिए ........ :)

    जवाब देंहटाएं
  7. लाजवाब ....
    बहुत ही कमाल की हलचल आज ... आभार मेरी रचना को इस अंक में शामिल करने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं

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