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रविवार, 14 जुलाई 2019

1458...कुछ पल नदी भी ठहरना चाहती होगी

स्नेहिल अभिवादन
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जो लेखक समय के समग्र शिल्प में जीवित नहीं रहता उसकी विकलांगता निश्चित है। इसके बाद भी वह जनता के स्मरण में रहेगा—रह पाएगा या नहीं, यह अनिश्चित है। हो सकता है, उससे ग़लतियाँ हो जाएँ। जिसे वह अतीत का समृद्ध वर्चस्व समझता है, वह वास्तव में रूढ़ियाँ हों। जिसे वर्तमान की नब्ज़ समझता हो,वह केवल सूचनाएँ हों और जिसे भविष्यत् के निर्णय, वे केवल अनुगूँजें हों जो इतिहास से असिद्ध हो जाएँगी।

  (एक उद्धरण - लेखक दूधनाथ सिंह)
((मीना शर्मा जी के फेसबुक वॉल से साभार))

आज कुलदीप जी व्यस्त हैंं।
★★★★★

आज की रचनाएँ पढिये
मीना भारद्वाज 
कैनवास सी रत्नगर्भा
बिखरे अनगिनत गुलमोहर
पाथ मॉर्निंग वाक का
स्मृति मंजूषा की धरोहर

सांझ की उजास में
खग वृन्द नीड़ लौटते
देख भानु आगमन
नीड़ फिर से छोड़ते

★★★★★★

मोहित शर्मा ज़हन

पलों को उड़ने दो उन्हें न रखना तोलकर,
लौट आयें जो परिंदों को यूँ ही रखना खोलकर।
पीले पन्नो की किताब कब तक रहेगी साथ भला,
नाकामियों का कश ले खुद का पुतला जला।
किसी पुराने चेहरे का नया सा नाम लगते हो,
शहर के पेड़ से उदास लगते हो.

★★★★★★

प्रीति सुराना जी

इससे बचने की विवशता के चलते
सारे अवरोधों को पार करती हुई
नदी सतत चलती रहती है
ये जानते हुए भी
उसकी नियति
सह अस्तित्व के नियमानुसार
अंततः सागर में मिलकर 
खारा हो जाना ही है

★★★★★★
लोकेश नशीने

वक़्त पर छोड़ दिया है सब कुछ
दर्दे-दिल की कोई दवा न मिली

हर किसी हाथ में मिला खंज़र
आपकी बात भी जुदा न मिली

★★★★★★

ऋता मधु शेखर

लोग क्या कहेंगे...यह बात मन पर हावी होने लगी। दो दिनों के मानसिक उथलपुथल के 
बाद हमने इसे जैविक असमानता स्वीकार करते हुए समाज की परवाह छोड़ दी। तुम्हें 
डॉक्टर को दिखाया। अब फिर से भगवान ने एक अजूबे तथ्य से अवगत कराया। 
तुम्हारे शरीर में पुरुषों वाले अंग प्रत्यंग भी थे। कई जटिल प्रक्रियायों से गुजरते हुए 
आज तुम बेटा के रूप में सामने खड़ी हो। हम दामाद लाते, अब बहू लायेंगे। 

आज बस इतना ही
कल मिलिए फिर मुझसे
सादर
श्वेता

11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    हम तो सोचे थे
    हम ही पागल हैं
    सर उठा के देखा
    सामने जमात को
    खड़ा पाया..
    बेहतरीन प्रस्तुति..
    उपर की पंक्तियाँ..
    बेबात लिखी गई है
    हमारे ही ऊपर..और
    हमारे ही द्वारा..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात !
    बेहतरीन और लाजवाब..
    आभार मंथन को मान देने के लिए...
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह एक और लाज़वाब अंक,पड़कर अच्छा लगा।

    पीले पन्नो की किताब कब तक रहेगी साथ भला,
    नाकामियों का कश ले खुद का पुतला जला

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. छोटी बहना और छूटकी स्तब्ध करती हो बहना
    अति सुंदर चयन

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति बेहतरीन रचनाएं

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!खूबसूरत प्रस्तुति श्वेता!!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार लिंकों का संकलन ।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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