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गुरुवार, 20 जून 2019
1434...कितनी सभ्यताएँ हम लाँघ चुके हैं ....
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17 टिप्पणियां:
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शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुतिकरण..
आभार...
सादर..
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा..
आज का अंक..
आभार...
सादर..
सराहनीय प्रस्तुतीकरण
जवाब देंहटाएंनृशंसता और बर्बरता का जमाना गया नही है
जवाब देंहटाएंजरा सोचिए तो
कितनी सभ्यताएं हम लांघ चुके है
फिरभी सभ्य हुए है हम कितने !
सुंदर लगी यह रचना। विशिष्ट चिंतन लिए अकथनीय।
समस्त रचनाकारों का भी अभिनंदन ।।।
🙏🙏🙏
हटाएंसाधना वैद जी की विशिष्ट रचना मन को छू गई ...
जवाब देंहटाएंमुक्ति का वरदान पाकर
छूट जाउँगी
सकल इन बंधनों से,
राम तुम बन जाओगे
छूकर मुझे
और मुक्त हो जायेगी
एक शापित अहिल्या ....
अतुलनीय लेखन हेतु साधुवाद व शुभकामनाएं ।
आपने सराहा हृदय प्रफुल्लित हुआ ! उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार पुरुषोत्तम जी ! सादर !
हटाएंबहुत सुन्दर साहित्यिक हलचल प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसुंदर साहित्यिक रचनाओं का संगम।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद, रवीन्द्र जी।
शुभकामनाएँँ।
वाह!!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसभी को प्रश्न के घेरे में लेती सटीक भुमिका। सभी रचनाकारों को बधाई सभी रचनाएँ उत्तम /पठनीय।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया । सादर।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति रविन्द्र जी ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ अच्छी लगीं। सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार रवींद्रजी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति आज की रवीन्द्र जी ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंहलचल की बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। राजीव उपाध्याय
जवाब देंहटाएंउम्दा अंक
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचनाएँ
मुझे यहाँ स्थान देने के लिए आभार आदरणीय सादर 🙏
Wah, kya baat hai.
जवाब देंहटाएंMix, Magcloud & Colourlovers profile