---

शनिवार, 8 जून 2019

1422...उम्र और उम्मीदें


ना हम बदलने वाले और ना समाज में बदलाव होगा
क्यों लेखन के लिंक्स का हम प्रचार कर रहे हैं







https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=10214768315143020&id=1279375656


https://www.facebook.com/100001998223696/posts/2274349129308339/


अब बारी है विषय की चौहत्तरवें अंक का विषय विषय
उजाला उदाहरण..
न कोई मीत मिले तो फ़क़ीरी कर ले जलती शमा को बुझा के जुदाई सह ले मिलती नहीं खुशियाँ तन्हाई जब होती स्याह रातों में ग़मों से फिर दोस्ती कर ले लोग ऐसे भी हैं उजाले में नहीं दिखते आज़माएँ उनको भी ग़र अँधेरा कर ले रचनाकार-श्री शशि गुप्त शशि



कभी शीतलहर कभी लहर ताप
हमेशा संकुचा जाते लहर संताप

10 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमन
    दर्दनाक प्रस्तुति...
    इसे ही कहते हैं घोर कलियुग..
    ...

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ नहीं..
    अब और नहीं
    ईश्वर कुछ न दे हमें
    बस..प्रलय ही लादे..
    सुनामी कोई इत्ती बड़ी..
    जो पूरे विश्व को ही
    लील ले ...
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  3. क्या कहें दी...कुछ नहींं सूझता।

    जवाब देंहटाएं
  4. ये आप जितने घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं, सभी जिम्मेदार हैं। हिन्दू, मुस्लिम, दलित, सवर्ण, जाती, खाप, विरादरी, गांव, टोला, रिश्ता, परिवार.... सब के सब जिम्मेदार हैं। नकली बुद्धिजीवी मत बनिये। पूरा संबंध है जीव और उस जगत में जहां वह जीव परवरिश पाता है और पाप कर्म करके भी पनपता रहता है। क्यों नहीं उस पापी को वह महान धर्म तंखैया या काफ़िर घोषित कर देता है। क्यों नहीं वह जाति उसे बहिष्कृत कर देती है। क्यों नहीं वह परिवार उसे दाखिल कर देता है। क्यों नहीं वह समाज उसे तड़ी पार कर देता है। ध्यान रहे, सक्रिय दुर्जन से ज्यादा खतरनाक और काले धब्बे निष्क्रिय सज्जन हैं!!!!

    जवाब देंहटाएं
  5. झकझोरने वाली घटना. सबको सोचना चाहिए कि ऐसी घटनाएँ आखिर रुकेंगी कैसे.

    जवाब देंहटाएं
  6. चाहे बेटा हो या बेटी, उसके लालन पालन में यदि हमने कहीं भी ढील दी है, या अनुशासित करने में कसर छोड़ी है, तो यकीन मानिये एक दिन हमें अपनेआप पर शर्मिंदा होना पड़ेगा। उस परवरिश पर अफ़सोस होगा हमें, जिसे अपनी संतति को प्रदान करने के लिए हमने अपनी इच्छा/सुविधा के विरुद्ध, अपनी आर्थिक/शारिरिक क्षमता से ज़्यादा प्रयास किया।एक स्वस्थ समाज को बनाने के लिए हमें बच्चों को नैतिक मूल्यों से अवगत कराना ही होगा। क्योंकि इनसे ही समाज बनता है, और हम भी उसी समाज में रह रहे हैं, रहेंंगे भी।
    आप के एक शब्द से मैं पूर्णतः सहमत हूँ ,यकीनन हर कोई पूर्णतः सहमत होगा ,बस अब जरूरत हैं अपनी गलतियों में सुधार लाने की

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।