दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा
आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी
@ग़ुलाम भीक नैरंग
कल रात अन्तरिक्ष की बात कर रहे थे वे लोग
अलस्सुबह फिर सड़क पर खुद को पाया हमने
साल-दर-साल सड़क पर रहते और ठोकर खाते हुए
मर-मर कर जीने का रहस्य बखूबी जाना हमने
धूप की सख़्ती तो थी लेकिन 'फ़राज़'
ज़िंदगी में फिर भी था साया बहुत
@फ़राज़ सुल्तानपूरी
इंसान को अपने सिवा कुछ ना नज़र आता है,
तू सहे तू हाहाकार विध्वंस का क्यूँ मचाता है,
रहना तैयार भुगतने को; जो इसके नतीजे है,
न्याय करती है कुदरत; उसके अपने तरीके हैं
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
@निदा फ़ाज़ली
हो सकता है हमारे महान आलोचकों को
उस संग्रह में कोई नया वाद (या विवाद) देखने को नहीं मिला हो,
लेकिन इस अदम्य कवि की अदम्य काव्य ऊर्जा का
आदर तो किया ही जा सकता था।
इक इक क़दम पे रक्खी है यूँ ज़िंदगी की लाज
ग़म का भी एहतिराम किया है ख़ुशी के साथ
@कैफ़ी बिलगिरामी
कुछ दिन पहले कुछ बच्चों को यूँ ही मार दिया था
उनके माता पिता ने भी सजाये थे सपने
बड़े होकर बनेंगे डॉक्टर वह पायलेट
टूटे फिर सारे सपने,
उड़े आसमान मे पंख फैलाये
पर देख रहे शायद वो नीचे
गुजर जाती है जिन्दगी सरस्वती की खोज में
उलझने बढ़ाने में व्यस्त रहते रोज-ब-रोज में
न करे वश में, सरल उपलब्धता में क्या मजा
रूप बदला पंगत-प्रेम का अब प्रीति-भोज में
जीना..
जवाब देंहटाएंदो अर्थ..
जिन्दगी जीना
अथवा..
जीने का उपयोग कर
ऊपर चढ़ना..
सदा की तरह बेमिसाल
सादर नमन..
बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर हलचल।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत भाव भरी प्रस्तुति सुंदर लिंक संयोजन ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई
बहुत सुंदर संकलन आदरणीया विभा दीदी।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह सराहनीय संकलन है दी।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाएँ एक विषय पर अलग अलग दृष्टिकोण पढना अद्भुत है।