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सोमवार, 1 अप्रैल 2019

1354..चौससठवें अंक का हम-क़दम..

माह अप्रैल की पहली तारीख..

मन भावनाओं के वशीभूत सुख-दुख के अतिरेक में
जब उद्गार व्यक्त नहीं कर पाता है तो तरल
होकर आँखों से "आँसू" के रुप में 
बहने लगता है।
भावनाओं के अव्यक्त ज्वार वाष्पीभूत होकर 
आँसू बन जाते हैं।
हमक़दम के विषय 
आँसू पर
हमेशा की तरह हमारे 
प्रतिभा संपन्न रचनाकार मित्रों ने
अभूतपूर्ण सृजन किया है।
तो चलिए विलंब न करते हुये
साहित्यिक सुधा का
रसपान करते हैं-
★★★★★
उदाहरणार्थ दी गई रचना
आदरणीया मीना शर्मा जी
दो नयन अपनी अपनी भाषा में जो कह गये
प्रेम में कोई अश्रु गिरा आँख से,
और हथेली में उसको सहेजा गया।
उसको तोला गया मोतियों से मगर
मोल उसका अभी तक कहाँ हो सका ?
ना तो तुम दे सके, ना ही मैं ले सकी
प्रेम दुनिया की वस्तु, कहाँ बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?
★★★★★
ब्लॉग सम्पर्क प्रारूप द्वारा आई रचना

आदरणीया साधना वैद
(दो रचनाएँ)
दर्द ने कुछ यूँ निभाई दोस्ती


दर्द ने कुछ यूँ निभाई दोस्ती
झटक कर दामन खुशी रुखसत हुई
मोतियों की थी हमें चाहत बड़ी
आँसुओं की बाढ़ में बरकत हुई !

रंजो ग़म का था वो सौदागर बड़ा
भर के हाथों दे रहा जो पास था
हमने भी फैला के आँचल भर लिया
बरजने को कोई ना हरकत हुई !


एक आँख पुरनम

तुझे रोशनी की थी चाहतें
तूने चाँद तारे चुरा लिये
हमें हैं अंधेरों से निस्बतें
कि ग़मों को अपने छिपा सकें !

तेरे लब पे खुशियाँ खिली रहें
या खुदा दुआ ये क़ुबूल कर
जो मोती गिरें मेरी आँख से
तेरी राह में वो बिछा सकें !
★★★★★

आदरणीया आशा सक्सेना
नयनों की सुनामी

अश्रु पूरित आखों से 
जल का रिसाव कम न होता  
हृदय विदारक पल होता 
जब गोरे गुलाबी कपोलों पर
अश्रु आते, सूख जाते 
निशान अपने छोड़ जाते  ! 
★★★★★
आदरणीया मीना शर्मा
(दो रचनाएँ)
नहीं आता
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रहते हैं इस जहान में, कितने ही समझदार !
हम बावरों को क्यूँ यहाँ, रहना नहीं आता ?

कोई कहाँ बदल सका, इन अश्कों की फितरत !
ये बह चले तो बह चले, रुकना नहीं आता ।

जब मैं तुमसे मिलूँगी
जब मैं तुमसे मिलूँगी
तब पूछूँगी तुमसे कि
कहाँ थे अब तक, क्यूँ थे,
कैसे रहे, अब कैसे आए.....
वगैरा वगैरा.....
देखो, तुम मेरे सवालों से
बेज़ार मत होना
और ना मेरे आँसुओं से,
जो माटी पर गिर रहे होंगे टप टप,
वही माटी तुम्हारे कदम भी
चूमेगी कभी....
★★★★★
आदरणीया शकुंतला राज 
आँसू

किसी की जिंदगी का फ़रमान हैं ये आँसू।
तो किसी की मौत का पैग़ाम हैं ये आँसू।।

 किसी से प्रेम का एहसास हैं ये आँसू।
तो किसी की खुशियों का अरमान हैं ये आँसू।।
★★★★★
आदरणीया सुप्रिया रानू
अश्कों की ज़ुबानी

कैसे कहें अपनी आपबीती
कोई कहानी, इन अश्कों की जुबानी,

बेवक़्त आते ज़रूर है,
पर कोई एहसास ही
झिड़क जाता है इन्हें,
आंखों की गहराई में डूबे
मोतियों सरीखे अश्क़
पलको से छिड़क जाता है इन्हें,

★★★★★
अन्य रचनाएँ
आदरणीय अमित निश्छल जी
आँसुओं का माप क्या?


उत्तरोत्तर आज भी
चरितार्थ कितनी? बोलकर,
चित्त में गहरे छिपे
मनभाव को झकझोर कर।

★★★★★
आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा जी
दो रचनाएँ
अश्रु तू क्यों बहता?
शायद टूटा, मन का घड़ा,
या बहती दरिया का मुँह, किसी ने मोड़ा,
छलक आए ये सूखे से नयन,
लबालब, ये मन है भरा!

हुई जो पीड़ा, कण-कण है अश्रु से भरा?

नीर नहीं ये

कोई बदली सी, छाई होगी उस मन में,
कौंधी होगी, बिजली सी प्रांगण में,
टूट-टूटकर, बरसा होगा घन,
भर आया होगा, छोटा सा मन का आंगण,
फिर घबराया होगा, वो नन्हा सा मन,
संवाद चले होंगे, फिर नैनों से,
फूट-फूटकर, फिर रोए होंगे ये नयन!

कुछ बूँदें आँसू के, आ छलके हैं जो नैनों से,
नीर नहीं ये, मन के ही हैं मनके....

★★★★★
आदरणीया कुसुम कोठारी
आँसू क्षणिकायें

रोने वाले सुन आंखों में
आंसू ना लाया कर
बस चुपचाप रोया कर
नयन पानी देख अपने भी
कतरा कर निकल जाते हैं।

★★★★★★
आदरणीया अनिता सैनी
आँसू


लुढ़का   नयनों    से  यौवन
बन   मधुवन    की   लाली 
मंदिर   प्रेम   में   डूबा  मन 

नयन  बने  शरबत की प्याली 
★★★★★★
आदरणीय डॉ. सुशील जोशी
होता है उलूक भी ख़बर लिये

सब को सब 
मालूम सब को 
सब पता होता है 
मातम होना है 

पर मातम होने 
तक का इंतजार 
किसी को भी 
नहीं होता है 
ना खून होता है 
ना आँसू होते हैं 
ना ही कोई 
होता है जो 
जार जार रोता है । 
★★★★★

आदरणीया अनुराधा चौहान
आँख में आँसू

आँखों में आँसू होंठों
पर तेरा नाम लिए
विरहन सी
भटकूं तेरी याद में
तुझ संग प्रीत
लगाकर सांवरे
तुझपे मैं दिल
अपना हार गई 
तेरे लिए आई मैं
★★★★★
आदरणीय व्याकुल पथिक
ये आँसू तुझको बुला रहे हैंं

तुम्ही से तो थीं खुशियाँ हैं मेरी
अर्ज ये सुन लो थमे जो आँसू

न कोई मंज़िल न है ठिकाना
इन अश्कों को यूँ बहते है जाना

है तोहफ़ा तेरा मेरे दो आँसू
मन के  मोती  ये  श्रृंगार मेरे

शोलोंं पे मचलती बन के शबनम
ये आग दिल  की  बुझा रही है

★★★★★

आदरणीया नूपुर शाण्डिल्य
बूँद

तुम सरल 
जल की बूंद,
ओस की बिंदी,
अश्रु का मोती,
निश्छल पारदर्शी ।

क्षणभंगुर ..
पर अमिट 
पावन स्मृति
क्षीर सम ।
★★★★★
आदरणीया अनुराधा चौहान 
अश्कों की बारिश

अश्रु नीर बन बहने लगे
विरह वेदना सही न जाए
इतने बेपरवाह तुम तो न थे
जो पल भर मेरी याद न आए

चटक-चटककर खिली थी कलियाँ
मौसम मस्त बहारों का था
मैं पतझड़-सा जीवन लेकर 
ताक रही थी सूनी गलियां
★★★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान
फ़कत् आँसू नहीं हूँ मैैं
आँसू

किसी की फरियाद हूं मैं,
चमकूं बन आंखों का मोती,
हृदय की पीड़ा मुझमें सोती।
फकत् आंसू न मुझे समझो,
मानवता मुझमें समायी  होती।
भावों का हूं मैं बहता निर्झर।
पीड़ा का हूं मैं उफनता समंदर,
कभी खुशी बनकर हूं बहता।
★★★★★
आदरणीय रवींद्र भारद्वाज
एक आँसू की कीमत तुम क्या जानो

जब दर्द सम्हालें नही सम्हलता हैं
तो आ ही जाता हैं
आँसू
बाहर

बाहर
आकर भी
आंसू 
अगर दर्द को न समझा पाये
★★★★★
आज का हमक़दम
आपको कैसा लगा कृपया
अपने बहुमूल्य सुझाव
प्रतिक्रिया के रुप में
अवश्य प्रेषित करें।

हमक़दम के अगले विषय में
जानने के लिए
कल का अंक देखना
न भूले।

आज के लिए इतना ही

#श्वेता सिन्हा

28 टिप्‍पणियां:

  1. पहली अपैल की सुबह मंगलकारी हो..
    अब सभी रचनाकार माहिर हो गए हैं
    किसी भी विषय को आधार मानकर
    रचनाएँ लिख सकते है..
    आज की सारी रचनाएँ श्रेष्ठ है..
    साधुवाद...
    आज रचना संयोजन का तरीका पसंद आया..
    आभार छुटकी..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. वाहः
    शानदार संकलन
    मूर्ख बनना ज्यादा आसान रहा जीवन में

    जवाब देंहटाएं
  3. आज की सुंदर प्रस्तुति के साथ नववर्ष 2019-2020 की शुरुआत हेतु हलचल व मंच संचालकों तथा समस्त लेखक गण को शुभकामनाएं ।
    मेरी रचनाओं को भी इस पटल के इस अंक मा स्थान देने हेतु आदरणीया श्वेता जी और यशोदा दी का आभारी हूँ ।
    पुनः धन्यवाद् ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत शानदार प्रस्तुति।
    आंसू पर बेहद हृदय स्पर्शी रचनाएं।
    सज्जा भुमिका अनुठी।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया।
    कुछ प्रस्तुति दो बार हो गई है ध्यान देंवें।
    सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  5. मेरे आँसुओं को इस मंच पर स्थान देने के लिये धन्यवाद श्वेता जी।
    सभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह आज तो लग रहा है बाढ़ आ गयी आँसुओं की। ढेर सारे सूत्र और लाजवाब संयोजन। आभारी है 'उलूक' भी उसके पुरानी एक पन्ने को भी जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह!!श्वेता ,बहुत ही सुंदर संयोजित प्रस्तुति । आज तो जैसे आँसुओं की बाढ़ सी आ गई ।

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  8. शुभ प्रभात बेहतरीन रचनाएं मेरी रचना को भी एक कोना देने हेतु सादर आभार।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहद सुन्दर और भावपूर्ण लिंक्स की प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  10. आँसू,
    अश्क,
    अश्रु,
    कई पर्यायवाची है..
    संकलन बढ़िया बन पड़ा है..
    साहित्यकारों को नमन..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  11. श्वेता जी, लाजवाब !

    आंसुओं का अनंत आभार
    बहा ले जाते ह्रदय का भार
    प्रकट करते मन के उद्गार
    परिमार्जित कर देते अंतर्मन

    जयशंकर प्रसाद जी की कृति "आंसू" याद आ गई.
    क्या ऐसा हो सकता है कि हर बार विषय पर लिखी गई कोई अजेय रचना भी साझा की जाए ?
    लिखना और सीखना दोनों हो जाए.

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  12. आंसू से ...

    सबका निचोड़ लेकर तुम
    सुख से सूखे जीवन में
    बरसों प्रभात हिमकन-सा
    आँसू इस विश्व-सदन में ।

    जयशंकर प्रसाद

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    उत्तर
    1. जी जरुर सुझाव पर ध्यान देंगे।
      सादर शुक्रिया।

      हटाएं
  13. बहुत खूब प्रिय श्वेता, बहुत ही सटीक लिखा, ----अव्यक्त भावनाओं का ज्वार ही आंसू हैं। ये मन के अतिरेक् को दर्शाते हैं। अत्यंत भावपूर्ण अंक। सभी रचनाकारों मन की भावनाओं के उमड़ते भावों को बखूबी रचनाओं में ढाला है। सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई। तुम्हे दिल छूने वाली भूमिका के लिए हार्दिक बधाई और मेरा प्यार।

    जवाब देंहटाएं
  14. कुछ पंक्तिया मेरी भी
    अपने आँसू छिपा लिए हैं
    तुमने किसी बहाने से
    पर बरसाते कब रुकतीहैं
    सावन के आ जाने से
    किसी रोज़ जो रोने की खातिर
    मजबूत सा कांधा मिल जायेगा
    आँसू का ये बांध उसी पल
    बंध तोड़ कर बह जाएगा !!! !

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  15. बहुत सुन्दर हमक़दम की प्रस्तुति 👌
    मुझे स्थान देने के लिए आभार श्वेता जी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  16. हमकदम के आज के संकलन में सभी रचनाएं अभूतपूर्व ! मेरी दोनों रचनाओं को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं एवं सभी मनीषियों का हृदय से अभिनन्दन !

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  17. शुक्रिया स्वेता जी मेरी रचना को स्थान दिया आपने
    सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  18. "आरज़ू, हसरतें, उम्मीद, शिकायत, आँसू !
    इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला !!!"

    हमकदम के विषय भी ऐसे ही होते हैं....कोई कोई विषय तो ऐसा भी होता है कि लेखनी सरपट दौड़ पड़ती है। आँसुओं के रंग हजार !!!
    इस अंक में यही नजर आया है। सभी रचनाकारों ने अपनी उत्तम रचनाएँ दी हैं। सभी को हार्दिक बधाई ! कहते हैं कि आँसू तो दुःख में भी आ जाते हैं और खुशी में भी, परंतु सबसे बेशकीमती आँसू कृतज्ञता के आँसू होते हैं। जब कृतज्ञता के आँसू बहते हैं ना, तब फरिश्ते दौड़ पड़ते हैं उन्हें इकट्ठा करने के लिए...ये ईश्वर का वह अनमोल उपहार हैं जो हम मनुष्यों को ही मिला है।
    हालांकि विषय मेरी ही रचना से था, फिर भी अपनी दो रचनाओं को भेजने का लोभ संवरण नहीं कर पाई। आप सभी का जितना भी धन्यवाद करूँ,कम है।
    यहाँ मजे की एक बात बता दूँ कि बचपन से अब तक मेरी एक बात वैसी की वैसी है। बचपन में बात बात पर रोने से सब 'रोतड़ू' कहकर चिढ़ाते थे। अब चिढ़ाता तो कोई नहीं, पर गंगा जमुना से अपना नाता आज भी वैसे ही बरकरार है।

    जवाब देंहटाएं
  19. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति, सभी रचनाएं उत्तम, रचनाकारों को हार्दिक बधाई
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  20. बेहतरीन भावपूर्ण प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी

    जवाब देंहटाएं
  21. शानदार प्रस्तुतिकरण ...बहुत ही उम्दा एवं भावपूर्ण आँसुओं का खूबसूरत संकलन...।

    जवाब देंहटाएं
  22. लाजवाब विशेषांक
    मुझे यहाँ स्थान देने के लिए आभार आदरणीया
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।