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गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

1308..फूले पलाश मादक बयार है बसंत बहार...

सादर अभिवादन।

मन भर हुलास
आया मधुमास 
कूकी कोकिला
कूजे पंछी    
बसंत 
छाया 
है। 

लो  
आया  
बसंत
ऋतुराज  
फूले पलाश 
मादक बयार  
है बसंत बहार।
-रवीन्द्र 


मेरी फ़ोटो

मरता क्या न करता? झक मार कर महंगे इंजेक्शन लगवाने में अपनी जेब कटवानी पड़ी. अब बच्चों के निर्देशों और हिदायतों की बारी थी. उनके प्रतिष्ठित पेटू पापा को राजस्थानी पकवानों से सख्त परहेज़ रखना था.हाँ, उनकी मम्मी बीकानेरी रसगुल्ले और जोधपुर की मावा की कचौड़ियाँ बेखटके खा सकती थीं. हमारे लिए एक आदेश यह भी था कि हमको बेटियों की नाज़ुक मम्मी को कहीं भी 11 नंबर की बस से यात्रा नहीं करानी थी और उन्हें हर जगह टैक्सी लेकर घुमाना था.


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नजर,नजऱ की गुफ़्तगू स्वासों का बढ़ना
                                 अच्छा लगता है!
मधुमास,में  कोयल  की कूक ह्रदय को
                                 अच्छा लगता है!

किशोरी का मासूम स्वप्न.....कुसुम कोठारी 





मां चांद मत देना चाहे
चांदनी का गोटा लगा देना
मां छोटा सा घूंघट डाल
मुझे भी साजन घर जाना।


तसव्वुर उनका याद कर 
आँख कुछ पुरनम हुई 
उनके खयालो मेंं हम हैं या 
हमारे अलावा कोई नही ॥

गरीबी का दर्द.....अनुराधा चौहान 



जर्जर काया लिए
अभाव में तरसते
झेलते ज़िंदगी का दर्द
रोजी-रोटी को तलाशते
सांझ को निढाल हो
फिर भूख को ओढ़कर
करवटें बदलते हुए



सच तो यह है 
इन ग़रीबों को ही
जीने का शऊर नहीं,
मुफ्त की बिज़ली,पानी,ऋण माफ़ी,
गैस कनेक्शन,आवास योजना जैसी 
शाही सुविधाओं की कल्पनाओं को
भोगने का लूर नहीं



मेरी जान !
सरसों का जोबन देखो 
और आम पर बौर 
कितना रोमांचित कर रहे हैं 
नजरो को हमारे 



आँखों में चुभ जाते हैं ख़्वाबों के टुकड़े
नींदों में बेचैनी सी हरदम दिखती है

आसमान कितना रोया है तुम क्या जानों
तुमको तो फूलों पे बस शबनम दिखती है

हम-क़दम का नया विषय
यहाँ देखिए

आज बस यहीं तक। 
फिर मिलेंगे अगले गुरूवार। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

13 टिप्‍पणियां:


  1. आसमान कितना रोया है तुम क्या जानों
    तुमको तो फूलों पे बस शबनम दिखती है
    सच कहा ,दूसरों का दर्द कहाँ समझ में आता है बहुतों को, उसे तो चहुंओर हरियाली ही दिखती है।
    सच्चा मित्र वही है,जो मित्र के हृदय के दर्द को समझे।
    सुंदर अंक, सभी को प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात....
    आँखों में चुभ जाते हैं ख़्वाबों के टुकड़े
    नींदों में बेचैनी सी हरदम दिखती है

    आसमान कितना रोया है तुम क्या जानों
    तुमको तो फूलों पे बस शबनम दिखती है
    बेहतरीन अंक...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभप्रभात 🙏बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद रवीन्द्र जी

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात
    बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति
    सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह बहुत सुन्दर बहुत ही सुंदर¡
    शानदार वर्ण पिरामिड अधो और उधर्व।
    सभी रचनाऐं मन भावन
    उत्कृष्ट संकलन।
    सभी रचनाकारों को बधाई। मेरी रचना शामिल करने हेतू हृदय तल से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  7. फिलहाल तो ठंड के कारण ''आउटर'' में ही खड़ा है बसंत

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति 👌
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  9. लो
    आया
    बसंत
    ऋतुराज
    फूले पलाश
    मादक बयार
    है बसंत बहार।
    .....बहुत खूब ....
    सुंदर अंक
    उम्दा रचनाएं
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभार.........आदरणीय सहृदय

    जवाब देंहटाएं

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