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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

1285.....दुआ मांगते हैं, दवाई चल रही है

भयानक रूप से बर्फबारी..
हिंमांचल मेंं....शाम तक जारी रहने की संभावना..
ऐसे में भाई कुलदीप आपसे रूबरु नहीं हो पा रहे हैं..
जवाबदारी तो जवाबदारी है...
सो इसे हम अपने सर लेते हैं..
सादर अभिवादन...
चलिए रचनाओं की ओर चलें...

मीना शर्मा
पापा बहुत करते हैं
काल से लड़ते हैं मेरे बहादुर पापा
हम डरपोक बच्चे डरते हैं !
झूठमूठ कहते हैं - अब ठीक हूँ,
तब मेरी आँखों से आँसू झरते हैं !!!
पापा कुछ नहीं करके भी
बहुत कुछ करते हैं !!!


दिगबंर नासवा
न्याय-व्यवस्था

समझोगे कैसे ...
मैं कुंद, जंग लगी तलवार हूँ  
तार तार पट्टी से लाज बचाती   
अपने ही परिहास का बोझा उठाए
अंधी, बेबस, लाचार हूँ
बंद रहती हूँ अमीरो की रत्न-जड़ित तिजोरी में
क़ानून की लम्बी बहस में अटकी व्यवस्था की चार-दिवारी में
गरीबी की लाचारी में, महाजन की उधारी में
न्याय की ठेकेदारी में, वकीलों की पेशेदारी में  

 रोहिताश्व घोड़ेला
ठीक हो न जाएँ
मैं बड़ा खौफज़दा हूँ इन दिनों उनसे
और उनकी ये जिम्मेदारी चल रही है

ठीक हो न जाएँ- खुश रहते हैं अब
दुआ मांगते हैं, दवाई चल रही  है

नहीं माँ, मैं नहीं आ पाउंगी...!!!...ज्योति देहलीवाल
post-feature-image
''मम्मी, आप भी तो अच्छी सास हो ना? भैया भी तो भाभी से बहुत 
प्यार करते हैं न? तो फ़िर भाभी क्यों नहीं जा पाती मायके 
जब उनका दिल करें?''
''जाती तो हैं...हर साल तो मायके जाती हैं तेरी भाभी!'' 
''हाँ मम्मी, भाभी हर साल मायके जाती हैं लेकिन जब उनके मायके वालों को भाभी की सख्त जरुरत थी, जब भाभी का भी बहुत दिल कर रहा था मायके जाने तब तो भाभी को आप लोगों ने नहीं भेजा था न? भाभी की बहन की शादी के दो दिन पहले भाभी की माँ को जोरदार अस्थामा का अटैक आया था। 

फिर कर लेने दो प्यार प्रिये .....-दुष्यंत कुमार

अब अंतर में अवसाद नहीं 
चापल्य नहीं उन्माद नहीं 
सूना-सूना सा जीवन है 
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं 

तव स्वागत हित हिलता रहता 
अंतरवीणा का तार प्रिये ..

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अब बारी है पचपनवें अंक की
विषयः

अवसाद
उदाहरण
अब अंतर में अवसाद नहीं 
चापल्य नहीं उन्माद नहीं 
सूना-सूना सा जीवन है 
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं 

तव स्वागत हित हिलता रहता 
अंतरवीणा का तार प्रिये ..

रचनाकारः दुष्यन्त कुमार
इसी अंक से

अंतिम तिथिः शनिवार 26 जनवरी 2019
प्रकाशन तिथिः सोमवार 28 जनवरी 2019

आज्ञा दें
फिर मिलेंगे
यशोदा






17 टिप्‍पणियां:


  1. सुना है कभी दुधारी तलवार हुवा करती थी
    चलती थी इतना महीन कि पद-चाप न सुनाई दे
    सूर्य का तेज, तूफ़ान की गति
    थम जाती थी मेरे सम्मोहन से सब की मति

    सुंदर रचना और संकलन।
    सभी को सुबह का प्रणाम।
    सच तो यहीं है कि न न्यायकर्ता कभी रहा,न ही उसका न्याय,पता नहीं कब तक हम इस भ्रम में और रहेगा..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका कहना सच हैंगर हम और करेंगे भी क्या सिवाय इंतज़ार के ...

      हटाएं
  2. सर्दी की ठिठुरन कुछ ज़्यादा हो रही है ... अपना अपना ख़याल रखें ... भीनी भीनी हलचल आज की ... आभार मेरी रचना को जगह देने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  3. ठीक हो न जाएँ- खुश रहते हैं अब
    दुआ मांगते हैं, दवाई चल रही है

    बहुत खूब।
    हलचल के एक और अंक के लिए बधाई।
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी भनक
    सबके लिए हर पल मंगलकारी हो
    सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  5. ब्लाॅग के पाठकों से अनुरोध..

    शायद आपको मालूम हो कि अब G+ खत्म होने वाला है। अतः G+ Platform से किए गए सारे comments स्वतः ही समाप्त हो जाएंगे। परन्तु जो टिप्पणी सीधे ब्लॉग पर जाकर की जाएगी, वे आगे भी बने रहेंगे।

    बाद मे जब G+ profile खुद ब खुद deactivate हो जाएंगे तो G+ से किए गए सारे कमेंट्स जो अभी तो दिख रहे हैं, बाद में दिखने भी बंद हो जाएंगे।

    आवश्यक यह है कि अपने ब्लॉग के comments setting में G+ से आनेवाले comments की सेटिंग No कर ली जाय ताकि पाठक की टिप्पणी सीधे रूप से ब्लॉग पर ही अंकित की जा सके।

    भविष्य की परेशानियों से बचने हेतु मैने कुछ परिवर्तन अपने ब्लॉग "कविता जीवन कलश" (purushottamjeevankalash.bligspot.com), "अंतहीन" (endlesspks.blogspot.com) तथा "अवधारणा" पर आवश्यक परिवर्तन अभी से ही कर लिए हैं ।

    कुछ दिनों बाद, मैं G+ profile के स्थान पर Blogger Profile ही use करूँगा।

    आपसे अनुरोध है कि अपनी टिप्पणी आप सीधे ब्लॉग पर आकर ही अंकित करें ताकि हमारा आपसी सम्पर्क-संवाद निर्बाध रूप से चलता रहे।

    सादर आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर लिंक्स,यशोदा जी। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. जोरदार.
    डॉ साब का शुक्रिया शेर पसंद आया आपको.
    बेहतरीन रचनाओं में मेरी रचना भी शामिल है...
    अब सोचो मैंने कैसे कैसे जतन किये होंगे खुद को एडजस्ट करने के लिए.

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर लिंकों से सजी प्रस्तुति..

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  10. अब अंतर में अवसाद नहीं
    चापल्य नहीं उन्माद नहीं
    सूना-सूना सा जीवन है
    कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं -
    काव्य शिखर दुष्यंत जी की सुंदर रचना के साथ लघुकथा और न्याय व्यवस्था पर विचारणीय ज्वलंत रचना जो आशय न्याय का मार्मिक आत्म कथ्य है के साथ रोहितास जी की सराहनीय रचना के समानांतर मीना बहन का पिता जी के लिए मर्मस्पर्शी सृजन -- सबके साथ सजा ये सराहनीय अंक मन को भा गया | सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनायें और आपको बधाई आदरणीय यशोदा दीदी इस अंक के संचालन के लिए | सस्नेह --

    जवाब देंहटाएं
  11. सुप्रभात |उम्दा लिंक्स संकलन |

    जवाब देंहटाएं
  12. बेहतरीन अंक
    उम्दा रचनाएँ
    मन आनन्दित हो गया पढ़कर...

    दुष्यंत कुमार जी की रचना संकलित करने के आभार....... सह्दय आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं

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