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मंगलवार, 15 जनवरी 2019

1278....उत्तरायणी "उड़ती हुई पतंग

जय मां हाटेशवरी....
कहते हैं......मकर संक्रान्ति के दिन
 सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है...
 पवित्र दिन प्रारंभ हो जाते हैं......
कल मकर-संक्रान्ति उल्हास के साथ मनाई गयी.....
हिमाचल में मान्यता है कि.....
माह माघ में सभी देवता मानव-कल्याण की इच्छा लेकर.
स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं......
ईश्वर के समक्ष मानव की समस्याओं को रखकर उनका 
निवारण करने का प्रयास करते हैं.....
पेश है आज के लिये मेरी पसंद.....

झूठे अहम के कीचड़ से
आप मुक्ति पायें
स्वर्ण और मिट्टी का अंतर
आपके रोम रोम में स्थापित हो
समय ऐतिहासिक गवाह बन जाए ।

यदा यदाहि धर्मस्य ----!
हिन्दू समाज और देश पर संकट आया संत आगे आए---!
यदा यदाहि धर्मस्य----तदात्मानमसृजामिहम -------!
जब-जब धर्म कि हानी होती है मै आता हूँ और वे आए कभी आदिशंकर के रूप मे तो कभी नानक के रूप मे तो कभी स्वामी रामानुज, स्वामी रामानन्द तथा कभी ऋषि दयानन्द के
रूप मे धर्म के रक्षार्थ ------

जब  तक रहेगी स्त्री मात्र एक देह
जब तक रहेगी स्त्री एक देह मात्र ,
नोचीं  जाएगी ऐसे ही
नर-गिद्धों द्वारा |
रोज़ छपेंगी ख़बरें
इंसानियत के शर्मसार होने की ,
और नाचेगी हैवानियत


एक बड़े दैत्य की कहानी थी, जो आदमियों को सपने देता है. अद्भुत कल्पना और फोटोग्राफी है फिल्म में. मौसम आज अच्छा है, न ठंड न गर्मी, धूप खिली हुई है. सुबह
मीनाक्षी मन्दिर के बाहर से सुंदर फूल मिले, पीले और लाल फूलों की एक माला भी ! आज उन्हें बाजार जाकर फल लाने हैं इससे पहले कि नन्हा बिग बास्केट में आर्डर कर दे.

 "उड़ती हुई पतंग" ....डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जीवन में उल्लास के, बहुत निराले ढंग।
बलखाती आकाश में, उड़ती हुई पतंग।।
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तिल के मोदक खाइए, देंगे शक्ति अपार।
मौसम का मिष्ठान ये, हरता कष्ट-विकार।।
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उत्तरायणी पर्व के, भिन्न-भिन्न हैं नाम।
लेकर आता हर्ष ये, उत्सव ललित-ललाम।।

कुछ अघोरियों ने सार्वजनिक रूप से ये स्वीकार किया है कि उन्होंने 
मृत शरीरों के साथ सेक्स किया है. लेकिन वे गे सेक्स 
को स्वीकार्यता नहीं देते.
ख़ास बात यह है कि जब अघोरियों की मौत हो जाती है तो उनके 
मांस को दूसरे अघोरी नहीं खाते. उनका सामान्य तौर पर 
दफ़नाकर या जलाकर अंतिम संस्कार किया जाता है.
..................

अब बारी है हम-क़दम की
चौवनवाँ विषय

मानवता

उदाहरणः

मानवता भी मानवीयता छोड़
अमानवीयता पर उतरी तो
मानव मन हुआ
चिंतित, परेशान।
व्याकुल होकर पूछा-आखिर क्यों?
मानवीयता ने
नासमझ मन को समझाया,
जो दिख रही है अमानवीयता
कल तक थी मानवीयता,
सत्य है।

रचनाकार हैं
राजा कुमारेद्र सिंह सेंगर

अंतिम तिथिः 19 जनवरी 2019
प्रकाशन तिथिः 21 जनवरी 2019




धन्यवाद।

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपको अपने पास जी भरकर रोने का मौका दें
    आपके घाव सूख जायें ... !
    झूठे अहम के कीचड़ से
    आप मुक्ति पायें

    सुंदर संकलन, सभी को सुबह का प्रणाम।
    हम उत्तर प्रदेश के लोग आज मकरसंक्रांति मना रहे हैं। मध्यरात्रि बाद स्नान पर्व प्रारम्भ हो गया है। इस भारी गलन में आस्था की परीक्षा हो रही है ,गंगा तटों पर। सभी को शुभकामनाएँ इस पर्व की।

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात...
    बेहतरीन प्रस्तुति
    अच्छी सीख...
    झूठे अहम के कीचड़ से
    आप मुक्ति पायें
    सादर.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर संकलन है कुलदीप जी।
    मकर संक्रांति की सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
    त्योहार जीवन में खुशियाँ और आशा लेकर आता है।
    बेहद अच्छी रचनाएँ है सारी।
    आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  4. सुप्रभात ! मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं !
    बहुत सुंदर संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
  5. सुप्रभात,
    रोचक,गहन संकलन।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. उत्तरायणी की शुभकामनाएं। सुन्दर प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  8. उत्तरायणी की शुभकामनाएँ..
    बेहतरीन संकलन
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  9. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन...
    मकर संक्रांति की ढेर सारी शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत ही सुन्दर हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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