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शनिवार, 12 जनवरी 2019

1275... नजरिया


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष

1275 , 1300 से 25 कम या 1200 से 75 ज्यादा...

कोई कहता है कैसी 
अनसुलझी किताब हूँ मैं .....
और ...!
कोई पढ़ लेता हैं यूँ 
जैसे  कोई खुली किताब हूँ मैं ...



आज जिन ढेर सारे रहस्यों से पर्दा उठ चुका है, उन्हें भी निहित स्वार्थों के कारण स्वीकार न करने वाली जड़मति ही अंधविश्वास के मूल में है । गुफाओं और जंगलों से अन्तरिक्ष तक की अपनी यात्रा में मनुष्य ने प्रकृति के रहस्यों को समझा, उसके नियमों और कार्य–कारण सम्बन्धों का पता लगाया और उनकी मदद से प्रकृति को काफी हद तक अपने वश में कर लिया।



 - ”हे वीर हृदय! भारत मां की युवा संतानों! तुम यह विश्वास रखो कि अनेक महान कार्य करने के लिए ही तुम लोगों का जन्म हुआ है। किसी के भी धमकाने से न डरो, यहां तक कि आकाश से प्रबल वज्रपात हो तो भी न डरो।” 



नजरिया पर कविता के लिए इमेज परिणाम

फिर मिलेंगे...
अब बारी है तिरपनवें अँक की
विषय

सब
उदाहरण
सबको हक है
सबके बारे में
धारणा बनाने का ......
सबको हक है
अपने हिसाब से
चलने का .........
सबकी मंज़िलें
अलग अलग होती हैं
कुछ थोड़ी पास

कुछ बहुत दूर होती हैं .....

..रचनाकार..
आदरणीय यशवन्त माथुर


अंतिम तिथिः 12 जनवरी 2019

यानी आज शाम तकप्रकाशन तिथिः 14 जनवरी 2019

10 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय दीदी...
    सादर नमन..
    सदा की तरह एक
    अलग नजरिए से..
    पढ़वाया..रचनाओं को
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर अंक
    सभी को प्रणाम।
    सचमुच एक सार्थक जीवन के लिये नजरिया से महत्वपूर्ण ओर शायद ही कुछ हो।

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रणाम दी,
    हमेशा की तरह सबसे अलग जानदार संकलन है।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह बहुत सुन्दर!! नजरिया बस अपना अपना कुछ अलग अलग।
    सुंदर संकलन।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. कोई कहता है कैसी
    अनसुलझी किताब हूँ मैं .....
    और ...!
    कोई पढ़ लेता हैं यूँ
    जैसे कोई खुली किताब हूँ मैं ...बहुत खूब ...
    सुंदर अंक
    बेहतरीन रचनाएं

    जवाब देंहटाएं

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