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शनिवार, 5 जनवरी 2019

1268... लोक-परलोक




सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
एकतीस की रात से चार तक कई गुजर गये
अंकिता की मौसी
सुनीता की मौसेरी बहन
और अभी-अभी उसकी नानी
मेरे पड़ोसी के भाई के दामाद
रहना तो किसी को नहीं है
स्व अस्वस्थ्य होने से
अनिश्चिंतता की स्थिति बनी हुई है
बहुत उलझन भरा है 
कयामत के दिन भी जरूर,
भौंरे मंडराएंगे फूलों पर,
मछुआरे सहेजेंगे मोतियों से झिलमिलाता जीर्णशीर्ण जाल,
सूंस लेंगे अटखेलियां समंदर की छाती पर,
बारिश की बूंदों पर इतराएंगे गोरैया के बच्चे
और बरकरार रहेगी सांपों की सुनहली चमक-हमेशा की तरह।
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परजीवी
वर स्टार्स" पढ़ने लगी। पहले भी जाने कितनी बार पढ़ी है,
पर जब से माँ बीमार हुई है यह किताब मेरे हाथों में ही है।
पता नहीं क्यों हर प्रेम करने वाले युगल में मुझे
माँ-बाबा का अक्स दिख जाता है।
प्लेन लैंड कर चुका था। अपने देश की धरती की महक
कुछ अलग ही होती है। विदेश से लौटने पर यहां की
हवा भी माँ जैसा दुलार करती है। कुछ गहरी सांस भर
मैं बाहर प्रतीक्षा करती टैक्सी में बैठ सीधे हॉस्पिटल
ही पहुंची घर जाने का कोई आकर्षण था भी नहीं।
जानती थी कि बाबा माँ के साथ अस्पताल में ही होंगे।

गुम गया इंसान
अपनी पहचान ढ़ूँढता,
मिसाईलो को दागता,
विस्फोटक बना कर चौंकता,
ताकत अपनी जताने को,
सत्ता अपनी जमाने को,
सारी ताकत झोंकता,


सिर्री
तम्बाखू गुटखा का व्यापार करने वाले व्यवसायी
बड़ी-बड़ी कोठियों में रह रहे हैं जबकि उनके उत्पाद के शिकार लोग कैंसर से मर रहे हैं। विज्ञापन का हकीकत
से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं। चाहे मदिरा हो गुटखा
या तम्बाखू। सरकार भी जानती है ये हानिकारक
उत्पाद है मगर धडल्ले से व्यापार हो रहा है सुरक्षा
के नाम पर कहीं कोने में बारीक़ अक्षरों में लिख दिया
जायगा,  “दिखाया गया उत्पाद मात्र सृजनात्मक चित्र है।”

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मजबूत इरादे
अक्सर हमारे सामने मुसीबते आती है तो तो हम उनके सामने हताश, निराश हो जाते है। उस समय हमें कुछ समझ नहीं आता की क्या सही है और क्या गलत , क्या करें ,क्या न करें। हर व्यक्ति का परिस्थितियों को देखने का नज़रिया अलग अलग होता है। कई बार हमारी ज़िंदगी मे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। उस कठिन समय मे कुछ लोग टूट कर बिखर जाते है, तो कुछ संभल जाते है।

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><
फिर मिलेंगे..
हम-क़दम का बावनवाँ अंक...
विषय...
आशियाना
उदाहरणः
आओ देखो
ढूँढ लिया है मैंने
हम दोनों के लिये
एक छोटा सा आशियाना
चलो इस घर में आकर रहें
सारी दुनियावी ज़हमतों से दूर
सारी दुनियावी रहमतों से दूर !
प्रेम को ओढें
प्रेम को बिछाएं
प्रेम को पियें
प्रेम को ही जियें

अंतिम तिथिः 05 जनवरी 2019
यानी आज
प्रकाशन तिथिः 07 जनवरी 2019
धन्यवाद।



7 टिप्‍पणियां:

  1. कयामत के दिन भी जरूर,
    भौंरे मंडराएंगे फूलों पर,
    मछुआरे सहेजेंगे मोतियों से झिलमिलाता जीर्णशीर्ण जाल,

    जी बहुत सुंदर सबक पथिक को बढ़ते ही रहने के लिये । जो राह में मिले अथवा छूट गये , वे सभी अपना कार्य करते रहेंगे। हम ही क्यों उन्हें लेकर भावविह्वल हो... कोई अपना नहीं...
    सभी को प्रणाम

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  2. आदरणीय दीदी
    सादर नमन..
    जना गया है तो ..
    जाएगा ही..
    हम हैं तब ही तो
    खबर देते हैं...
    जाने-आने की...
    हम नही रहे तो..
    लोग खबरों से वंचित हो जाएँगे..
    शायद इसीलिए हम हैं ...
    बढ़िया आशावादी बनाती प्रस्तुति..
    शुभ प्रभात दीदी..

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  3. श्रद्धांजलि सभी जाने वालों के लिये। जीवन चक्र यही हैं। सुन्दर हलचल प्रस्तुति।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय बिभा दी ,सादर नमस्कार ,आज के सारी रचनाये जीवन के सीख दे रही है ," परजीवी "कहानी ने तो आखे नम कर दी,सादर नमन है सारे रचनाकारों को ...

    जवाब देंहटाएं
  5. शानदार प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक संकलन....।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह बहुत सुन्दर हलचल प्रस्तुति सादर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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