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सोमवार, 17 दिसंबर 2018

1249...हम-क़दम का उनचासवाँ क़दम..शिशिर...

"शिशिर" 
कालजयी साहित्यकारों की
क़लम से-

शिशिर कणों से लदी हुई,
कमली के भीगे हैं सब तार, 
चलता है पश्चिम का मारुत, 
ले कर शीतलता का भार। 

भीग रहा है रजनी का वह, 
सुंदर कोमल कवरी-भार,
अरुण किरण सम, कर से छू लो, 
खोलो प्रियतम! खोलो द्वार। 
-जयशंकर प्रसाद



शिशिर न फिर गिरि वन में

जितना माँगे पतझड़ दूँगी मैं इस निज नंदन में

कितना कंपन तुझे चाहिए ले मेरे इस तन में
सखी कह रही पांडुरता का क्या अभाव आनन में
वीर जमा दे नयन नीर यदि तू मानस भाजन में
तो मोती-सा मैं अकिंचना रक्खूँ उसको मन में
हँसी गई रो भी न सकूँ मैं अपने इस जीवन में
तो उत्कंठा है देखूँ फिर क्या हो भाव भुवन में।

-मैथिली शरण गुप्त

शिशिर ने पहन लिया वसंत का दुकूल
गंध बन उड़ रहा पराग धूल झूल
काँटे का किरीट धारे बने देवदूत
पीत वसन दमक उठे तिरस्कृत बबूल
अरे! ऋतुराज आ गया।
-अज्ञेय



वंचना है चाँदनी सित,
झूठ वह आकाश का निरवधि, गहन विस्तार-
शिशिर की राका-निशा की शान्ति है निस्सार!
दूर वह सब शान्ति, वह सित भव्यता,

वह शून्यता के अवलेप का प्रस्तार-
इधर-केवल झलमलाते चेतहर,
दुर्धर कुहासे का हलाहल-स्निग्ध मुट्ठी में
सिहरते-से, पंगु, टुंडे, नग्न, बुच्चे, दईमारे पेड़!

"शिशिर" भारतीय मौसम चक्र की छः ऋतुओं 
में एक ऋतु है।
कहा जाता है शिशिर ऋतु प्रकृति के बुढ़ापा का प्रतीक है। वृक्षों कै पात गिर जाते हैं और हर तरफ फूलों के इंद्रधनुषी छटा बिखर जाती है।
ठंड़क अपने चरम पर होती है घना कुहरा,कुहासा 
छाया होता है। शीत लहरी के प्रकोप से 
जनजीवन बेहाल हो जाता है।

★★★★★
तो अब चलिए हमारे सम्मानीय रचनाकारों की
प्रतिभासंपन्न लेखनी को हृदय से सादर नमन करते हुये
सभी की सरस रचनाएँ पढ़ते हैं।
आदरणीया मीना जी
शिशिर





सूर्य ठिठुरता सा उगे,

चंदा करे विचार।
दीन दरिद्र कैसे सहें,
शिशिर ऋतु की मार ।।

मिलते श्रमिक-किसान को,
अल्पवस्त्र, अल्पान्न ।
उस पर तन को भेदता,
शिशिर ऋतु का बाण ।।

★★★★★
कौशल शुक्ला

सरसो पीली, सब खेत हरे
जब हवा चले झूमे-लहरे,
इस मधुर धूप, में हिल-मिल कर
धरती की छँटा निराली है,
★★★★★

मैं शिशिर में फैले
घने गहरे कोहरे की तरह,
तुम खिलते सरसो के टेसू
मैं शिशिर की पाले और ओले,
तुम आँख मिचते खिलते 
छुपते सूरज से...
मैं शिशिर की ठंडी सर्द
★★★★★★
आशा सक्सेना

ठंडी हवा की चुभन
हम महसूस करते हैं
सब नहीं 
शिशिर ऋतु का अहसास 
सुबह होते हुए भी
रात के अँधेरे का अहसास 
हमें होता है
सब को नहीं
आगे कदम बढ़ते जाते हैं
★★★★★

शिशिर की 
शीतल रातें
ढोलक पर 
पड़ती
जब थापें
मधुर मिलन के 
गीत गाती
गुजरिया 
झूम झूमकर 
नाचें
★★★★★
अभिलाषा चौहान
बदले प्रकृति के हाव-भाव
सूर्य को लगी ठंड
आग भी पड़ी मंद
धूप थी कांपती
गर्मी भी मुख ढ़ांपती
शिशिर से थी डर रही
जमने लगे वजूद
★★★★★★
साधना वैद

शिशिर ऋतु की सुहानी भोर
आदित्यनारायण के स्वर्ण रथ पर
आरूढ़ हो धवल अश्वों की
सुनहरी लगाम थामे
पूर्व दिशा में शनैः शनैः
अवतरित हो रही है !
पर्वतों ने अपना लिबास
बदल लिया है !
★★★★★★
अनुराधा चौहान

शिशिर ऋतु का 
एहसास कराए
आगोश में अपने लपेटे
कहीं कोहरे की घनी चादर
के बीच फंसी सूर्य की
किरणें बेताब है ज़मीं छूने को
कहीं गुनगुनी धूप 
तन को भाती
★★★★★
महेन्द्र भटनागर

कि फैला दिग-दिगन्तों में सघन कुहरा,
सजल कण-कण कि मानों प्यार आ उतरा,
प्रकृति-संगीत-स्वर बस गूँजता अविरल !

★★★★

आदरणीया अनीता जी

निशा   निश्छल   मुस्कुराये  प्रीत  से, 
विदा    हुई   जब   भोर   से |

तन्मय   आँचल   फैलाये   प्रीत का , 
पवन  के   हल्के   झोंको   से |

कोयल    ने   मीठी    कूक   भरी, 
जब   निशा   मिली   थी   भोर   से |
★★★★★
आदरणीया सुधा देवरानी जी


 

अपने देश में तो आजकल चुनाव की
लहर सी आयी है............
पर ये क्या!मतादाताओं के चेहरे पर तो
गहरी उदासीनता ही छायी है..........
करें भी क्या, हमेशा से मतदान के बाद
जनता देश की बहुत पछतायी है.......
इस बार जायेंं तो जायें भी कहाँँ
इधर कुआँ तो उधर खायी है.........

★★★★★★
और चलते-चलते उलूक के पन्नों से 
आदरणीय सुशील सर की
गुनगुनी धूप-सी अभिव्यक्ति


सिकुड़ती सोच 

शब्द वाक्यों पर 

बनाता हुआ एक बोझ 

कम होता 
शब्दों का तापमान 

दिखती 
कण कण में सोच 
ओढ़े सुनहली ओस 

★★★★


आप सभी के द्वारा रचित
 हम-क़दम का यह अंक आपको
कैसा लगा?
आप सभी की बहुमूल्य प्रतिक्रिया
की प्रतीक्षा रहेगी
हम-क़दम के नये विषय के लिए
कल का अंक पढ़ना न भूले

शिशिर 
कड़क ठंड और कोहरा घना
धरा-अबंर एक हुए, सर्दी कई गुना
जीवनदायी किरणें तन-मन भाये
जीव-जंतु ठिठुरे सारे अकुलाये
तब शिशिर आगमन मानो

शाक-पात,फल-वनस्पति स्वाद भरे
तिल-गुड़,मूँगफली-मेवा रस पाग भरे
सुस्वादु सुपाच्य आहार ललचाये
स्वेटर,मफलर बिन रहा न जाये
तब शिशिर आगमन मानो
-श्वेता


17 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    तआज़्ज़ुब.
    इतनी ठण्ड के बाव़जूद उंगलियों ने
    हड़ताल नहीं किया.. ज़रूर
    चाय स्टील के गिलास में पिया होगा..ताकि
    हिम्मत बरकरार रहे उंगलियो की..
    बेहतरीन रचनाओं का संगम..
    साधुवाद...
    सादर..

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  2. लाजवाब हमकदम का उन्चासवाँ अंक। ढेर सारे हीरों के बीच कहीं पर उलूक की काँव काँव भी । आभार श्वेता जी।

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  3. सुन्दर संकलन लिंक्स का |
    मेरी रचना को स्थान दिया इस हेतु धन्यवाद |

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  4. सुंदर प्रस्तुति के साथ एक विषय
    पर रचनाकारों की कलम बहुत खूबसूरत बन पड़ी है।
    धन्यवाद श्वेता जी 🙂

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  5. वाह!!श्वेता ,शानदार प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार श्वेता जी

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  7. बहुत ही सुन्दर हमक़दम की प्रस्तुति 👌
    बेहतरीन रचनाएँ ,मेरी रचना का स्थान देने के लिए सह्रदय आभार
    सादर

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  8. हमकदम की यह पेशकश भी बहुत ही बेहतरीन ! सभी रचनाएं अनुपम ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

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  9. बहुत सुंदर लिंक्स प्रिय श्वेता। अंक के प्रारंभ में दिग्गजों की रचनाओं के अंश पढ़ने को मिले जो सोने पर सुहागा रहा। ऐसे महान लेखकों को मन से प्रणाम। सभी रचनाकारों को बधाई बेहतरीन सृजन हेतु। मेरी रचना को भेजने में हुई देरी के बावजूद शामिल किया। हृदय से आभारी हूँ।

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  10. प्रथम साधुवाद! काव्य जगत के सितारों को पांच लिंको के आसमान पर चमका दिया खोज-खोज कर।
    शिशिर पर इतनी सारी और इतनी प्यारी न्यारी रचनाएँ वाह्ह्ह ।
    और भी सभी रचनाकारों की सुंदर सलोनी रचनाओं से अंक सुशोभित हो रहा है सभी रचनाकारों को अप्रतिम काव्य सृजन पर हार्दिक बधाई।

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  11. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी,इतने महान रचनाकारों की रचनाओं का आस्वादन कराने के लिए सहृदय आभार।सभी चयनित रचनाएं शिशिर के रूप
    का प्रभाव शाली चित्रण कर रही हैैं।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।

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  12. सर्द रात्रि की एक नरम और गरम से अभिनंदन हलचल को और सभी कवियों को,आज आखिरी टिपण्णी का अवसर का भरपूर आनंद लेते हुए स्नेह और प्रेम के साथ धन्यवाद मेरी रचना को एक स्थान देने हेतु शुभ रात्रि

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  13. प्रिय श्वेता -- साहित्य के पुरोधाओं के अमर काव्य के साथ -- आज के रचनाकारों की कलम ने शिशिर के बहुरंगी रूपों को शब्दांकित करने में कोई कसर नहीं छोडी | सभी की रचनाएँ एक से बढ़कर एक |एक -एक कदम बढाता हमकदम अर्ध शतक से मात्र एक कदम दूर है | मंच के सभी संचालक हार्दिक बधाई के पात्र हैं | शिशिर के कई रंग हैं साधनसम्पन्न लोगों के लिए एक वरदान तो छतविहीन और साधनविहीनों के लिए एक अभिशाप और विपदा | एक कविमन ही इन सब अनुभवों को सहेजने में समर्थ है | हमकदम के ये मेले यूँ ही सजते रहें -- मेरी हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |

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  14. शानदार प्रस्तुति करण.....शिशिर की एक से बढकर एक लाजवाब रचनाओं के साथ मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी !

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  15. शुभ प्रभात |
    उम्दा संकलन लिंक्स का |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

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