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सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

1186....हम-क़दम का चालीसवाँ क़दम....उलझन

मानव जीवन विसंगतियों से भरा है। जीवन का कोई 
भी पल एक जैसा नहीं होता है। 

एक साधारण मनुष्य बस यही चाहता है कि शांतिपूर्ण सरल जीवन 
जी सके जिसमें रोटी,कपड़ा और छत की सुविधा हो। पर यह सब 
इतना आसान तो होता नहीं न, अपनी साधारण इच्छाओं की पूर्ति 
के लिए अनेक उद्योग करता  मनुष्य कभी जरुरतों की उलझन,
कभी भावों की उलझन, खोने-पाने की उलझन ,आजीवन उलझन 
के धागों को सुलझाते खट्टे-मीठे अनुभवों को जीता हुआ 
जीवन का हर पड़ाव पार करता है। 

अपनी साधारण इच्छाओं की पूर्ति के लिए अनेक उद्योग करने में 
क्रम में कर्म के चक्रव्यूह में,सवाल जवाब की पहेलियों में पिसकर 
जो भाव या हालात उत्पन्न होते हैं उसे ही उलझन, चिंता,
असमंजस कहते हैं।

हमक़दम के विषय उलझन को सुलझाने में हमारे सृजनशील 
रचनाकार भला कैसे पीछे रहते।
विषय कोई भी हो उनकी लेखनी से निसृत भावों की सरिता 
मन को शीतल कर जाती है।
आइये पढ़ते है आपकी लिखी हुई रचनाएँ-


आदरणीया शुभा मेहता जी 

उलझन सुलझी ..?
नहीं .....?
कोशिश करो ..
कर तो रहे है ,
पर ये धागे 
इतने उलझ गए हैं 
कि सुलझ ही नहीं रहे 
★★★★★
आदरणीया साधना वैद जी

तुम तो मेरे अंतस में
एक दिव्य उजास की तरह विस्तीर्ण हो
मेरे मन को आलोकित करते हो
और उस प्रकाश के दर्पण में ही
मैं अपने अस्तित्व को पहचान पाती हूँ !
लेकिन कैसी उलझन है यह !
मैं जहाँ हूँ
वह जगह मुझे साफ़
दिखाई क्यों नहीं देती !
★★★★★
उलूक के पुरानी कतरनों से मिली है 
एक रचना आदरणीय
डॉ. सुशील जी जोशी जी की

उलझना 
उलझनो का 
उलझनो से 

बहुत पुरानी 
उलझन होती है 

नये जमाने 
के लोग 
आदी 
होने लगे हैं 
यूज एण्ड थ्रो के 
★★★★★
आदरणीया कुसुम जी की दो रचना

गहराई तक उतर के देखो सत्य का दर्पण
निज मन की कलुषिता का कर दो  तर्पण ।

बस उलझन का कोहरा ढकता उसे कुछ काल
मन मंथन का गरल पी शिव बन, उठा निज भाल।
★★★

धागे सोचों के बल खाये
जितनी भी चाहें सुलझाओ
उलझन और उलझती जाये ।
पर ऐसे में भी अक्सर ,
अपने अस्तित्व का अहसास,
सदा सुखद सा लगता है
सच मन ही तो है,
मन की थाह कहाँ कोई पाये ।
★★★★★

आदरणीया आशा सक्सेना जी

जिन्दगी की तंग  गलियों में
पग धरते ही उलझने ही उलझने
जब तब शूल सी चुभतीं हैं
कर देती हैं लहुलहान पैरों को
छलनी तन  मन को
एक समस्या हल न होती
★★★★★
आदरणीया अभिलाषा चौहान जी

कैसे देश चलेगा आगे !
कैसे देश बढ़ेगा आगे !
सबको कैसे खुश रख पाएं,
कैसे वोट जनता का पाएं ?
ये बहुत बड़ी उलझन है।
जाल वोट का बहुत बड़ा है,
★★★
पढ़िए आदरणीया अनुराधा चौहान जी
की रचनात्मकता में रंगी तीन
रचनाएँ

बेकरार करती है मुझे
आंखों की कशिश तेरी
बिखर के न रह जाए
मेरे ख्बावों की यह लड़ी
पूछना चाहती हूं मगर
पूछ नहीं पाती हूं
खुद की उलझनों को
खुद ही सुलझाती हूं
★★★
आदरणीया अनुराधा चौहान जी

मची है खींचातानी
हर तरफ शोर है
कहीं नहीं है शांति
जीवन में बड़ा झोल है
उलझनें यह कैसी
सुलझती नहीं है
★★★★★
आदरणीया अनीता सैनी जी

उलझनों  में  तमाम  मुश्किलों  के  हल   मिले ,
 टेढ़े   मेढ़े   रास्तों  पर  मंजिल  के  निशां  मिले,


खारेपन  में   कोई   तलब    रही 
 होगी  वर्ना यूँ,
 उलझनों  में उलझी  गंगा  ढूं ढे  न   सागर  के  निशां,
★★★★★


आदरणीया नीतू ठाकुर जी

तुम्हीं से हर ख़ुशी मेरी तुम्हीं से हैं हमारे गम
मेरी हर एक दुआ तुम पर निछावर है मेरे हमदम

मेरी उलझन को सुलझाए मुझे वो बंदगी आये
जहाँ तुम साथ ना हो अब न ऐसी ज़िंदगी आयेl
★★★★★
और चलते-चलते आदरणीया रेणु जी

 इक   मधुर एहसास है तुम संग -
 ये अल्हड लडकपन जीना ,
 कभी सुलझाना ना चाहूं -
 वो मासूम सी उलझन जीना !

आपके द्वारा सृजित यह अंक आपको कैसा लगा कृपया 
अपनी बहूमूल्य प्रतिक्रिया के द्वारा अवगत करवाये
 आपके बहुमूल्य सहयोग से हमक़दम का यह सफ़र जारी है
आप सभी का हार्दिक आभार।


अगला विषय जानने के लिए कल का अंक पढ़ना न भूले।
अगले सोमवार को फिर उपस्थित रहूँगी आपकी रचनाओं के साथ।

जग जीवन का औचित्य है क्या?
मनु जन्म, मोक्ष,सुकृत्य है क्या?
आना-जाना फेरा क्यूँ है?
मन मूढ़ मति मेरा क्यूँ है?
राग-विराग मय पी-पीकर
मन उलझन में पड़ जाता है

18 टिप्‍पणियां:

  1. जो भाव या हालात उत्पन्न होते हैं उसे ही उलझन, चिंता,
    असमंजस कहते हैं।

    सुंदर रचनाएं और खूबसूरत प्रस्तुति

    कभी कभी उलझने यूँ भी राह दिखलाती है कि मानव बुद्ध बन जाता है। स्वयं के विकल मन को ही वह न सिर्फ शांत करता है, वरन् अनेकों के लिये प्रकाशपुंज बन जाता है,उलझने बढ़ती है तो मानव यदि उचित चिंतन करे तो सृष्टि का हर रहस्य प्रत्यक्ष हो जाता है, फिर वह संत हो जाता है। उलझने सैदव राह दिखलाती है.. वह तो एक सामान्य इंसान को जमीन से उठा एक ऐसा रचनाकार भी बना सकती है, जो अपनी लेखनी से कुछ खास लिख जाता है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही
    खूबसूरती से
    सुसज्जित किया है
    इन रचनाओं को
    साधुवाद
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. उलझन
    मकड़जाल
    कहाँ निकल पाते हैं
    –जो चित्त चंचल हो

    सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात आदरणीया

    बहुत ही सुन्दर संकलन,
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई
    मेरी रचना को स्थान देने हेतु आपका अति आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. खुबसुरत रचनाओं से सजी आज की ये हलचल लाजवाब है.
    सभी रचनाकार बधाई के पात्र

    "किसी गद्य या पेराग्राफ को छोटी छोटी पंक्तियों में बांट देना कविता सृजन नहीं"

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!!श्वेता ,बहुत खूबसूरत संकलन । मेरी रचना को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. हमेशा की तरह व्यापक विषय वस्तु के साथ सुंदर प्रस्तुति, उलझन उधर्वमुखी हो तो आंइस्टाईन बनाती है अधोमुखी हो तो पतन और अंतरमुखी हो तो महावीर बनाती है।
    और एक साधारण श्रेणी भी है आम मानव की जो रोज जूझता है उलझनों से छोटे छोटे हल ढ़ूढता है और जीवन के पथ पर चलता रहता है निरंतर अगली उलझन को सुलझाने के लिये।
    सभी रचनाकारों के व्यक्तिगत भावों से सुसज्जित सुंदर रचनाऐं,
    सभी रचनाकारों को बधाई
    एक बात की अत्यन्त खुशी हुई आज का अंक देखकर कि हमारा पुरुष वर्ग उलझनों से परे है सारी उलझने प्रभु ने समर्थ नारी वर्ग को दी है जो सुघडता से निपट लेती है😆।
    मेरी रचनाओं को स्थान देने का तहेदिल से शुक्रिया।
    सस्नेह।

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    उत्तर
    1. प्रिय कुसुम बहन -- आपकी बात से सहमत हूँ पर नारी मन कोमल भावुक - हर उलझन कहने को आतुर और आदरणीय पुरुष वर्ग की उलझने सुलझाने के लिए भी नारी शक्ति को ही अदम्य साहस प्रदान किया है ईश्वर ने 😆| हर मोर्चे पर डटी है |

      हटाएं
  9. सुन्दर सोमवारीय हमकदम अंक। आभार श्वेता जी 'उलूक' की पुरानी कतरन 'यूज ऐंंड थ्रो करना आना भी बड़ी बात है' को स्थान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह.. बहुत सुंदर प्रस्तुति उलझन की। सभी की रचनात्मक शैली विशेष है बहुत बहुत आभार।
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुन्दर संकलन उलझनों से सुलझनों की
    ओर प्रेरित करता हुआ । जीवन की परिवर्तन शीलता
    का सबसे बड़ा रास्ता उलझनों में से ही निकलता है ।धन्यवाद श्वेता जी प्रस्तुति के लिए और आभार मेरी
    रचना को स्थान देने के लिए 🙏

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुन्दर संकलन आज का ! सभी रचनाएं अत्यंत हृदयग्राही ! मेरी रचना के चयन के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! बड़ी खूबसूरत प्रस्तुति आज की !

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह श्वेता जी. कितनी खूबसूरत उलझनें हैं !
    जोश साहब ने मिर्ज़ा ग़ालिब के अंदाज़ में अपना पहला शेर कहा था -
    हाय, मेरी मुश्किलों, तुमने भी क्या धोखा दिया,
    ऐन दिलचस्पी का आलम था कि, आसां हो गईं.
    आपकी उलझनों में भी जब हमको लुत्फ़ आने लगा तो वो ख़त्म हो गईं. गब्बर सिंह के शब्दों में - 'बहुत नाइंसाफ़ी है.'

    जवाब देंहटाएं
  14. प्रिय श्वेता -- हमेशा की तरह नियत विषय पर आपकी लघुनिबंधात्मक भूमिका के साथ हमकदम का शानदार चालीसवां अंक बहु मनभावन है | उलझन विषय पर अद्भुत सृजन| हमेशा की तरह सभी सहभागियों ने बहुत उम्दा रचनाएँ लिखते हुए अतुलनीय भूमिका निभाई | सभी को सस्नेह शुभकामनायें और बधाई |मेरी छोटी सी रचना को स्थान देने हेतु आभारी हूँ | आपको सुंदर प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई के साथ मेरा प्यार |

    जवाब देंहटाएं
  15. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  16. लाजवाब प्रस्तुति करण....बहुत ही सुन्दर उलझने...
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाईएवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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