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शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

1092....हाथ से मिटती नहीं ये सायों सी लकीरें.......

दृढ़ इच्छा शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा किसी भी साधारण व्यक्तित्व 
को असाधारण बनाने में सक्षम हैं।

कुछ कर गुजरने का जज़्बा , सर पे जुनून हो,
नामुमकिन कुछ भी नहीं, धुन यही सुकून हो
डरते नहीं किसी तूफां से, पाते हैं मंज़िल वही,
जिन शिराओं में उफनता आशाओं का खून हो।

-श्वेता

"पाँच लिंकों का आनंद" हमारे इस साझा ब्लॉग के आसमान ने अनगिनत आँखों के स्वप्नों को पंख दिया है। हम सभी लोगों ने अपनी पहली रचना पर जब यशोदा दी, या इस मंच के किसी भी सदस्य के द्वारा मंच पर लिंक होने का संदेश पढ़ा है , उस सकारात्मक प्रतिक्रिया ने हमारे भीतर एक नवीन उत्साह का संचार किया है। दुगुने उत्साह से लेखनी की धार को तेज करने में हम जुट गये,  इस मंच ने आभासी दुनिया के असंख्य जाने-अनजाने व्यक्तित्व से परिचित करवाया है। अपनेपन की नयी परिभाषा गढ़ी है। हमारी लेखनी को तराशने में हमारी मदद की है।

कल पाँच लिंकों  के आनंद की तीसरी वर्षगाँठ है। अनंत , अशेष बधाई और आगे के निष्कंटक सफ़र के लिए हृदयतल से 
शुभकामनाएं प्रेषित करती हूँ।
हमारे परिवार का प्रेम और आप सभी पाठकों का बहुमूल्य सहयोग की तारतम्यता यूँ ही बनी रहे यही प्रार्थना है।

सादर नमस्कार

आइये आज की रचनाओं की यात्रा पर चलते है-



आदरणीय अमित निश्छल जी की लेखनी से

रास्ते की प्यास…
उचककर सीढ़ियों से बादल के, तारे कुछ तोड़े
तारों के निर्यास से बुझा तृषा को
परितोष हुआ बहुत और सोचा…
ले चलूँगा घूँट कुछ कुटुंब में
मैं और मेरी कविता…

◆★◆

आदरणीया रेवा जी की लेखनी से
शायद मन के
कोने में ये बात
रहती है की
वो कहाँ जाने वाला है
प्यार करता है न
जब चाहूँ मिल जायेगा
मुझे

◆★◆
आदरणीय पुरुषोत्तम जी की क़लम से

आड़ी तिरछी सी राह ये,
कर्म की लेखनी का है कोई प्रवाह ये,
इक अंजाने राह पर,
किस ओर जाने भेजा है किसी ने!
हाथ से मिटती नहीं ये सायों सी लकीरें.......

आदरणीया मीना शर्मा जी की लेखनी से

वादियों में गीत बहें कल-कल कर
माटी में बीज जगें, अँगड़ाकर !

विचित्र सा, कौन चित्रकार यह ?
बदल रहा, रंग छटाएँ रह - रह !

◆★◆

आदरणीय प्रभात सिंह राणा जी की क़लम से
गर तुम ने सोचा है ये,
कि तुम्हें मनाने आऊँगा।
इंतज़ार में नज़रें अपनी,
नहीं बिछाना, आ जाना॥
◆★◆

आदरणीय लोकेश जी की लिखी शानदार ग़ज़ल


तल्ख़  एहसास से  महफ़ूज रखेगी तुझको
मेरी  तस्वीर  को  सीने  से  लगाये  रखना

ग़ज़ल  नहीं, है  ये  आइना-ए- हयात  मेरी
अक़्स जब भी देखना एहसास जगाये रखना

आदरणीय डॉ. इन्दिरा जी का एक भाव-भीगी रचना

गगन बजी दुंदुभी
गरज लरज ये कौन आ  धमकी 
कौन आवन की बजे दुंदुभी 
भगदड़ सी भई नभ के माही 
जल भरे बदरा भये सुरन्गी !
◆★◆

आज का यह अंक आपको कैसा लगा कृपया
अवश्य बताइयेगा।

हमक़दम के इस सप्ताह के विषय के लिए
यहाँ देखिए

कल का हमारा वर्षगाँठ विशेषांक पढ़ना न भूले।

-श्वेता सिन्हा




15 टिप्‍पणियां:

  1. रंग लाती है हिना
    पत्थर में पिस जाने के बाद
    अच्छी रचनाएँ पढ़वाई आपने
    दाद आपकी पसंद को
    शुभकामनाएँ....
    सादर

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  2. खूबसूरत प्रस्तुति सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही उम्दा संकलन
    बेहतरीन रचनाओं का मनमोहक प्रस्तुतिकरण
    मेरी रच को शामिल करने के लिए सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. चार पंक्तियाँ आशा और विश्वास की लेकर आगे का सफर शानदार सुंदर रचनाओं का बेसकिमती संकलन श्वेता बधाई। सभी रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. डरते नहीं किसी तूफां से, पाते हैं मंज़िल वही,
    जिन शिराओं में उफनता आशाओं का खून हो।.......लाज़बाब भूमिका! एक से बढ़कर एक रचनाएँ! बधाई और आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार!!
    समस्त संकलन उम्दा है, एक से बढ़कर एक।

    जवाब देंहटाएं
  7. मुक्ता मणि से चुन चुन कर मुक्ता हार बनाया है
    हर काव्य सम्वेदन लिखता हलचल खूब सजाया है !
    सुन्दर संकलन प्रिय श्वेता जी
    मेरे काव्य को सम्मलित किया आभार !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. खूबसूरत भावाभिव्यक्ति के साथ सुंदर प्रस्तुति
    सभी रचनाएँ बहुत बढियाँ
    शुभकामनाएँँ आभार।

    जवाब देंहटाएं
  10. भावप्रवण रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता आपको इस
    संकलन के लिए हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुंदर प्रस्तुति , अच्छा संकलन ... सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  12. सुंदर वैविध्यपूर्ण रचनाओं की बेहतरीन प्रस्तुति। भूमिका पठनीय और विचारणीय है।

    जवाब देंहटाएं

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