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बुधवार, 6 जून 2018

1055..अखबार होने का कर्तव्य निभा रहा है..


।।प्रात:वंदन।।

एक तरफ किसान दूध सब्जियाँ
फेंक रहे हैं
दूसरी ओर भूख से परेशान लोग..
सवाल तो ये भी है क्या गरीब किसान टैंकर से दूध बेचते है या ट्रक ,गाड़ी से सब्जी लाते हैं?
दोनों खबरे छप रही है..शायद वो अखबार होने का कर्तव्य निभा रहा हैऔर हम सभी
 सुबह- सुबह का समाचार..

अब नजर डालते हैं आज की लिंकों पर..✍

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बढ़ती उम्र में एक दूसरे पर निर्भरता को बयान करती आदरणीय दिग्म्बर नसवा जी की रचना..

नहीं जाता है ये इक बार आ कर
बुढ़ापा जाएगा साँसें छुड़ा कर
फकत इस बात पे सोई नहीं वो
अभी सो जायेगी मुझको सुला कर
तुम्हारे हाथ भी तो कांपते हैं
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ब्लॉग तिरछी नज़र से पढिए..
राजनीति-शास्त्र की कक्षा में अपने विद्यार्थियों को भारतीय लोकतंत्र की विशेषताएँ पढ़ाते 
समय गुरु जी उनको इतिहास की एक कथा सुनाने लगे –
‘बच्चों ! द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने फ़्रांस पर क़ब्ज़ा कर लिया था लेकिन फ़्रांसीसी 
अब भी छुप-छुप कर जर्मन सेना पर हमले कर रहे थे..

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संध्या राठौर प्रसाद जी की खूबसूरत रचना..



कितनी मुद्दतों से,
तक रही थी तेरा रास्ता
मन में कोई खुमार लिए

कि
आएगा तू
ले जाएगा तू..
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अरुण साथी जी की व्यंग्य...



चच्चा रामखेलावन परेशान होकर पूछने लगे। 
"आंय हो मर्दे ई वायरल की होबो हई!आझकल बुतरू सब बरोबर बोलो है!"
रामखेलावन चच्चा गांव के आदमी हैं। पुराने जमाने वाले। उनको क्या पता बेचारे को वायरल होना क्या है।
वायरल होना दरअसल नेक्स्ट जनरेशन का शब्द है। पता नहीं डिक्शनरी बनाने वालों ने इसे डिक्शनरी में स्थान दिया है या नहीं। दिया भी है तो इसकी परिभाषा क्या गढ़ी है। देख कर बताइएगा।..

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और अंत में   आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी की क्षणिकाओं के साथ गुजरते है..

बनते हैं महल 
सुन्दर सपनों के 
चुनकर 
उम्मीदों के 
नाज़ुक तिनके 
लाता है वक़्त 
बेरहम तूफ़ान 
जाते हैं बिखर 
तिनके-तिनके। 

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हम-क़दम के बाईसवें क़दम
का विषय...
...........यहाँ देखिए...........


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आज बस यहीं तक कल नई रचनाओं के साथ यहीं पर...
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह..✍

11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात सखी
    उत्तम संचयन
    समसामयिक भूमिका
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. समसामयिक विचारणीय भूमिका पम्मी जी,
    ऐसा लगता है मानो कर्तव्य निभाने के नाम पर पाठकोंं के मनोभाव से अपना मनोरंजन करते है ये मीडिया वाले भी।
    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी हैं।
    सुंदर संकलन के लिए बधाई आपको।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात ...
    पता नहि अख़बार कर्तव्य निभा रही हैं या वफ़ादारी ... ख़ैर ये जनता तय करेगी.
    आज की हलचल सुहावनी है ...
    आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए आज ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बिल्कुल एक निष्पक्ष समीक्षा होनी चाहिए कि अखबार कर्तव्य निभा रहा या वफादारी ! पर कौन करेंगा . हर किसी की दाढी में जब तिनका है। लेकिन भाई साहब की यह फटाफट खबर बेजोड़ रही

    जवाब देंहटाएं
  5. किसानों की गाँव बंद हड़ताल को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं. किसान का माल खरीदने वाले और उसे अपना माल बेचने वाले ख़ूब मज़े में हैं. किसान का शोषण हर क़दम पर होता है.किसान की मज़बूरी है कि वह अपनी जीविका के लिये खेती पर ही निर्भर है तो किसी प्रकार वह उस काम-धंधे में उलझा हुआ.
    एक ओर सरकार चन्द पूंजीपतियों के लाखों करोड़ रुपये के बैंक कर्ज़ माफ़ कर चुकी है. किसान की हड़ताल उसकी फ़सल का उचित मूल्य दिये जाने की मांग को लेकर है क्योंकि उद्योगपति अपने उत्पाद की क़ीमत तय करने के लिये स्वतंत्र हैं जबकि किसान के उत्पाद की क़ीमत सरकार के समर्थन मूल्य पर निर्भर है.
    किसानों द्वारा अपने उत्पाद की की जा रही बर्बादी निस्संदेह निन्दनीय है. अपने पसीने की कमाई को सड़क पर डालने के बजाय गरीबों में बांट देते. झारखण्ड से ख़बर है कि एक महिला भूख से तड़प-तड़पकर मर गई.
    आज की सुन्दर प्रस्तुति के लिये बधाई आदरणीया पम्मी जी. इस अंक में चयनित सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार हलचल
    बेहतरीन संयोजन
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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