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सोमवार, 5 मार्च 2018

962....जरूरी जो होता है कहीं जरूर लिखा होता है

सादर नमस्कार

8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रुप में मनाया जाता है। 
नारी जाति के लिए सम्मानपत्र पढ़कर उदारवादी घोषणाएं फिर से दुहराई जायेंगी। पर मेरा सवाल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा आसान शिकार बनती महिला उपभोक्ताओं से है आज। आधुनिक समाज में अपनी आज़ादी का एलान करती,प्रगतिशील विचारधारा का जोश-ख़रोश से दावा करती पढ़ी-लिखी, संभ्रात,तर्कशील और विवेकशील महिलाएँ क्या बता सकती है कि देह उघारु पहनावा का संबंध किस प्रकार से हमारी आज़ादी से है? फैशन के नाम पर उल्टे-सीधे कपड़े पहनने का अर्थ मेरी समझ से परे है। जगमगाहट और सुविधा संपन्न जीवन शैली को तरजीह देती फैशन के बारे में आधुनिक युवा पीढ़ी की बिंदास सोच के आगे निरीह माता-पिता की स्थिति भी सोचने पर मजबूर कर रही है।

आप सोचेगे कि आज के विशेषांक में क्या गीत गा रहे है हम।  अब 
अपने विचारों की दिशा आप सुधि साहित्यकारों की सृजनशीलता 
की ओर मोड़ते है। बेहद सराहनीय,प्रशंसनीय है आप सभी की रचनात्मकता। "उदास" पर लिखी आप सभी की 
विविधापूर्ण रचनाओं को पढ़कर हृदय आनन्दित हो गया।
हमक़दम के इस सफ़र में बेहद आनंद आ रहा है। कृपया अपना 
बहुमूल्य साथ बनाये रखे आप सभी।
चलिए चलते है आप की रचनात्मकता की दुनिया में-
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आदरणीय सुशील सर की दो रचनाएँ

उजले दिन 
जरुर आएँगे 
उदासी दूर 
कर खुशी 
खींच लायेंगे 
कहीं से भी 
अभी नहीं 
भी सही 
कभी भी 
अंधेरे समय के 
उजली उम्मीदों 
के कवि की 
उम्मीदें 


क्या ये जरूरी है 
कि कोई महसूस करे 
एक शाम की उदासी 
और पूछ ही ले 
बात ही बात में 
शाम से कि वो 
इतनी उदास क्यों है 
क्या ये भी जरूरी है 
कि वो अपने हिस्से की 

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आदरणीया कुसुम जी
उदास किरणें थक कर
सरती सूनी मुंडेर पर
थमती हलचल धीरे धीरे
नींद केआगोश मे सिमटती
वो सुनहरी चंचल रश्मियां

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आदरणीया रेणु जी
एकांत  बने कब  साथी मेरे -
क्यों ये दर्द  है  नियति मेरी ?
पूछना मत उजालों से दूर -
क्यों हुई  अंधेरों से प्रीति मेरी ;
पैर न रखना   इनमे उलझ कर रह जाओगे
झाँकने  ना आना मेरी उदासियों के बियाबान तुम

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आदरणीय अयंगर सर
पिछली बातों से क्यों  परेशां हो,
बीती बातों से दिल उदास न हो,
भले ही जिंदगी में कोई आस न हो
बीते कल की सड़ी भड़ास लिए,
आता कल तो कभी खराब न हो।
बीती बातों से दिल उदास न हो।

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आदरणीया मीना जी
पीपल के पात-पात से
गूँजता पक्षियों का कलरव,

पेड़ों की डालियों को

हौले-हौले झकझोरकर
ना जाने कौन से राज पूछती
शरारती हवा !

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आदरणीया डॉ.इन्दिरा जी
उदास भाव छा जाए 
दास भाव दासत्व की 
पीड़ा सी दे जाए ।

पीड़ा सी दे जाए
मृतक सम मनवा डोले 
जीवन -मरण ,यश -अपयश 
भाव सदा  उदास से रहवे।।

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आदरणीया अपर्णा बाजपेयी जी
कंटीली झाड़ियाँ उग आयी हैं 
रिश्तों पर,
मौन है हवा... 
घूंघट वाली ठिठोलियाँ गायब हैं
बंसी की उदास धुन 
और प्रेम की आवारगी;

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आदरणीया सुधा सिंह जी
मैं बिरहन हूँ प्रेम की प्यासी
न रँग, न कोई रास है!
बदन संदली सूल सम लागे
कैसा ये एहसास है!

तुम जब से परदेस गए प्रिय
ये मन बड़ा उदास है!

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आदरणीया अभिलाषा(अभि) जी
हद से गुज़र जाए गर दर्द, तसल्ली कहाँ
सायबां न कोई, दर्द ही बन गयी है दुआ।

उदासी से भर जाती है उसके पाजेब की रुनझुन,
गर देखा कोई शहीद-ए-वतन तोपों की सलामी पे।

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आदरणीया साधना जी
तुम्हारे अधरों पर
खिली आश्वस्त करती
मुस्कुराहट की ,
और तुम्हारी
उँगलियों के 
जादुई स्पर्श की !
क्योंकि मेरे मन पर
छाये हर अवसाद
हर उदासी का 
घना कोहरा 
तभी छँटता है

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आदरणीय पुरुषोत्तम जी
उदास शाम
घुटन सी इन साँसों में, मन कितना अशांत,
अवरोध सा ऱक्त प्रवाह में. हृदय आक्रान्त ।

हौले हौले उतर रहा, निर्मम तम का अम्बार,
अपलक खुले नैनों में, छुप रहा व्यथा अपार।



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आदरणीया नीतू जी
दो तन्हा दिल मिल जाएँ तो
शायद हालात बदल जाये
ये आलम बड़ा उदास सा है
दो तन्हा दिल बहल जाएँ

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आदरणीय प्रियम् जी
My photo
तू किसी और के जो अब पास है
तभी तो मेरा मन बहुत उदास है।

देखो तो झांक के अंदर तुम
मेरा दिल भी तो तेरे ही पास है।

हां मेरा नूर छीना है तूने ही तो
मेरा चैन भी तेरे ही आसपास है।

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आदरणीया आशा जी
रंग उसका फीका न होता 
पुरानी किताब के पन्नों सा 
छूते ही बिखरने लगता 
कैसे समेटें उन लम्हों को 
दिल पर लिखे गए शब्दों को 
ऐ मुट्ठी भर खुशी 
तुझे कहाँ खोजा जाए 
परहेज़ उदासी से हो पाए ! 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

आदरणीया पल्लवी जी
राह की रवानगी से बेराह तक। 
आज जाता है तो फिर से सोच ले  
गुमशुदा उदास न लौटे उस ओर  से। 

◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
आदरणीय शुभा दीदी
उदास बचपन
या उदासी को ही गले लगाऊँ
या फिर खो जाऊँ सपनों में
या फिर नाचूँ ,गाऊँ
अकेले में चुपके से कह लूँ
नहीं है प्यार मुझसे किसी को 
या फिर इस उदासी को 
घोल के पी जाऊँ शरबत में ....।
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆

आप सभी के सुझाव आमंत्रित है।
कृपया, जरुर बताये कि आपको आज का अंक कैसा लगा?
एक विशेष बात:
 रचनाएँ क्रमानुसार नहीं सुविधानुसार लगायी गयीं हैं।
अगला विषय जानने के लिए कल का अंक पढ़ना न भूलें।
आज के लिए बस इतना ही।

श्वेता सिन्हा 


21 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बेहतरीन संयोजन
    शुभकामनाएँ
    सादर

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  2. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण। एक से बढकर एक रचनाएँ। यह "उदास" प्रस्तुति भी मन को विभोर गई। समस्त रचनाकारों को बधाई।
    इस सफल प्रस्तुति हेतु आदरणीय श्वेता जी को विशेष बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण। एक से बढकर एक रचनाएँ। यह "उदास" प्रस्तुति भी मन को विभोर कर गई। समस्त रचनाकारों को बधाई।
    इस सफल प्रस्तुति हेतु आदरणीय श्वेता जी को विशेष बधाई।

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  4. रचनाएं इतनी जीवंत कि पढ़कर मन वाकई उदास हो गया!विलक्षण!!! प्रस्तुति की संजीदगी की बधाई और आभार!!!

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  5. देह उघारू पहनावे का सम्बन्ध हमारी आजादी से कैसे...सचमुच विचारणीय...
    उदासी पर लिखी सभी रचनाएं उत्कृष्ट ....सभी रचनाकारों को बधाई....

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  6. विचारणीय भूमिका ....सही कहा श्वेता ..अच्छा तो यह होगा कि अपनी सोच ,मानसिकता को खुला बनाया जाए , नारी ,नारी की सहोदरा बने ....। मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से शुक्रिया ।

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  7. आज के विशेषांक के लिए इतनी उत्कृष्ट एवं चुनिन्दा रचनाओं के साथ आपने मेरी रचना का भी चयन किया आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार श्वेता जी ! सभी रचनाएं अत्यंत हृदयग्राही हैं !

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  8. बहुत सुंदर प्रस्तुति.. उदास पर एक से बढ कर एक रचनाएँ
    सभी रचनाकारों को बधाई एवम् शुभकामनाएँ।
    धन्यवाद।

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  9. उदासी दिल खोल कर लिखी गयी है। एक से बढ़कर एक रचनाएं।
    श्वेता जी, मुझे एक बार फिर सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से आभार।

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  10. कविता अपने बस की तो है नहीं ! पर पढ़ कर आनंद आता है, आभार

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  11. बहुत खूबसूरत संकलन। धन्यवाद जो समझा मेरे मन।

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  12. बहुत सुंदर प्रस्तुति..
    सभी रचनाकारों को बधाई व शुभकामनाएँ

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  13. उदासी / उदास - इस विषय पर सभी की रचनाएँ इतनी खूबसूरत और संवेदनाओं से परिपूर्ण हैं कि अनायास ही कविवर्य सुमित्रानंदनजी की ये पंक्तियाँ स्मरण हो आईं -
    "वियोगी होगा पहला कवि
    आह से निकला होगा गान
    निकलकर आँखों से चुपचाप
    बही होगी कविता अनजान !"
    सभी रचनाकारों को सुंदर सृजन पर बधाई। आदरणीय श्वेताजी द्वारा भूमिका में रखी गई बात विचारणीय है। सचमुच, नारी स्वतंत्रता अब नारी स्वच्छंदता का रूप ले रही है क्या ? क्या यह बदलाव आने वाली पीढ़ियों के लिए हितकर और कल्याणकारी होगा ? ये प्रश्न गंभीर चर्चा का विषय हैं। प्रभावपूर्ण प्रस्तुति के लिए श्वेताजी बधाई की पात्र हैं।

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  14. संवेदना का मेला सज गया है आज उदास बिषय पर रची गयीं रचनाओं से....
    अग्रलेख में जो बिषय उठाया गया है उस पर समाज अब ज़िरह के मूड़ में नहीं है. परिधान हमारे व्यक्तित्व और सोच का भी प्रतिनिधित्व करते हैं. शालीनता का कोई सानी नहीं. बाज़ारवाद के विकृत प्रभावों से समाज बुरी तरह संक्रमित हो गया है. लेटेस्ट फ़ैशन को न अपनाया जाय तो लोग उस व्यक्ति पर समय से पीछे चलने वाले का टैग लगा देते हैं वहीं कुछ लोग बिना सोचे-समझे भी बाज़ार की चाल का शिकार हो जाते हैं. प्रयोग करना मानवीय प्रवृत्ति है लेकिन हम इस बात पर अवश्य ग़ौर करें कि कहीं हमारा किसी मक़सद से इस्तेमाल तो नहीं हो रहा है.
    वैसे आम धारणा है कि फील गुड के लिये परिधान में ऐसे परिवर्तन किये जाते हैं ताकि लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया जा सके.
    इस अंक में सम्मिलित हुए सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें.

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  15. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  16. प्रिय श्वेता जी ---- आज का प्रतीक्षित अंक मिला | बहुत ही खास है उदासियों का ये उत्सव | यहाँ उदासियों ने अपने अपने रंग ओढ़े हैं | कोई भी इन्सान हमेशा खुश नहीं रह सकता | अक्सर उदासी घेर ही लेती है | कभी कभी इसका कारण होता है तो कभी कभी अकारण भी इससे बच नहीं सकते | उदास हो इंसान खुद से जुड़ जाता है अपनी ही दुनिया रच लेता है | जब मन उदासी में सिकुड़ता है तो अपने साथ अवसाद लाता है पर यदि इसमें मुखरता आती है तो सर्वोत्तम सृजन होता है |आज का संकलन इसका उत्तम उदाहरन है | सभी रचनाकार साथियों ने बेहतरीन लिखा | मेरी रचना को भी लिया गया हार्दिक आभार आपका | भूमिका में विषय बहुत चिंतनपरक है | खासकर युवा होती बेटियों के विषय में | क्योकि मेरी बिटिया भी अठारह साल की है और इसी साल कॉलेज गयी है सो जानती हूँ माता - पिता को कितनी समझदारी दिखानी पड़ती है ये समझाने में कि शालीन रहकर भी आधुनिक दिखा जा सकता है |इस विषय पर आदरणीय रविन्द्र जी के विचार बहुत प्रभावी लगे मुझे | समय के साथ चलना बहुत जरूरी है पर पूर्णतय विवेक के साथ |खुद भी ध्यान रखना चाहिए कि उपभोक्तावादी संस्कृति के हाथों खिलौना मात्र ना बनकर रह जाए | सुंदर सार्थक संकलन के लिए आपको बधाई देती हूँ | सस्नेह ---

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  17. सुन्दर भूमिका के साथ रचनात्मकता का रंगीन उत्सव। उदासी के भी कई रंग दिखे अलग अलग रचनाओं में।
    भूमिका में उठाया गया मुद्दा बेहद अहम् है ।
    सभी रचनाकारों को बधाई। मुझे भी शामिल करने के लिए आभार
    सादर ।

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  18. मेरा छोटा सा कमेंट होता है
    निःशब्द हूँ
    अर्थ व्यापक समझें

    जवाब देंहटाएं
  19. सभी रचनाकारों को सादर नमन ।सृजनात्मकता का सतत् प्रवाह और विषय की संवेदनशीलता से मन आंदोलित हो उठा है ।प्रस्तुति में मेरे विचारों को स्थान देने के लिए हृदय से आभार ।

    भूमिका के संदर्भ में -किसी भी इंसान की जीवन शैली में उसके व्यक्तिगत विचारधारा को सम्मान मिलना चाहिए । वह स्त्री हो या पुरुष । रही बात शरीर उघाड़ने की। इसकी परिभाषा हर समाज में अलग है । एक वयस्क सोच हर समस्या का समाधान है।

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