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गुरुवार, 15 फ़रवरी 2018

944..चाँद नगर सा गाँव तुम्हारा...

सादर अभिवादन। 
बाज़ार आजकल दिन निर्धारित करता जा रहा है विभिन्न गतिविधियों,परम्पराओं और रिश्तों के लिये। हमने जितना बाज़ार को आलोचा और कोसा वह उतना ही हमारी ज़िन्दगी में अतिक्रमण कर गया। 
बीता हुआ कल जज़्बातों के कारोबार का दिन बन गया है। लोग इस दिन ख़ुश होते हैं तो इसका विरोध व्यर्थ का चिंतन है क्योंकि अब ज़िन्दगी में ख़ुश होने के मौक़े घटते जा रहे हैं। कम से कम एक दिन तो रुमानियत के लिये हो जब दिमाग़ पर बोझ न हो और दिल की बात हो लेकिन ध्यान रहे हम अंधानुकरण से आगाह हों और प्यार की पवित्रता को बनाये रखें। 

          अब एक और दिन की चर्चा कर लेते हैं।  
13 फरवरी अब "विश्व रेडियो दिवस" घोषित किया गया है 
यूनेस्को द्वारा। स्पेन के प्रयासों से यह संभव हो पाया।  पहला 
विश्व रेडियो दिवस 13 फरवरी 2012 को मनाया गया। 
रेडियो के आविष्कारक जी. मारकोनी माने जाते हैं। 
भारत में रेडियो सेवाओं की शुरुआत सन 1930 में हो गयी थी।  
आगे चलकर सन 1956 में ऑल इंडिया रेडियो का नाम "आकाशवाणी" 
हो गया। सरकारी दख़ल को कम करने के मक़्सद से सन 1990 में 
प्रसार भारती एक्ट आया जिसके तहत आकाशवाणी एवं दूरदर्शन 
को साथ मिला दिया गया।  
अफ़सोस कि आज भी इन्हें सरकारी भोंपू ही कहा जाता है। 
मनोरंजन के लिए रेडियो पर अनेक कार्यक्रम आने लगे। लोगों का मनोरंजन के लिए सीलोन रेडियो की ओर ज़्यादा झुकाव होने का अध्ययन किया गया और सन 1957 में आकाशवाणी की सर्वाधिक लोकप्रिय सेवा "विविध भारती" को प्रारम्भ किया गया। 
आज़ादी के बाद भारत में भी वर्षों तक जनता को रेडियो ,टेलिविज़न और साइकिल के लिये लायसेंस की प्रक्रिया पूरी करनी होती थी। 
1992 से 2003 तक आकाशवाणी ग्वालियर से मेरा वास्ता रहा तो 
रेडियो पर अपने विचार साझा करने का मन हुआ। 
भेंट-वार्ताओं पर आधारित कार्यक्रमों को तैयार करते समय 
अनेक रोचक अनुभव मिले। 
चलिए अब आपको ले चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर -     
आदरणीया आशालता सक्सेना जी के सार्थक चिंतन की झलक का आनंद लीजिए उनकी प्रस्तुत हाइकु श्रृंखला में - 

हाईकू......आशालता  सक्सेना 


वह सक्षम
  निर्भय साहसी 
नारी सबल 

नारी सबला
 अवला समझो
है आधुनिका 

जीवन की विविध परिस्थितियों में एहसासों के ख़ूबसूरत रंग भरती आदरणीया रेणु बाला जी की हृदयस्पर्शी रचना आपकी नज़र -

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तुम ! वाणी रूप और  शब्द रूप ,
तुम ! स्नेही मन- सखा मेरे
 स्नेह की  डोर में  बांधे रखते -
  तुम्हारे  सम्मोहन  के घेरे  ; 
थाम  इसे -जीवन के पार कहीं -
तुझमें  मिल जाऊंगी मैं -
चाँद नगर सा गाँव तुम्हारा
भला ! कैसे वहां   पहुँच पाऊँगी मैं ?

आदरणीय राकेश कुमार श्रीवास्तव"राही" जी आपके लिए लाये हैं एक ख़ूबसूरत और दुर्लभ चित्रावली अपने फोटो-ब्लॉग के ज़रिये -  

फोटोग्राफी : पक्षी 48 . ..राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही" 


 
खकूसट, खूसटिया या छुघड एक छोटा उल्लू है
 जो उष्णकटिबंधीय एशियामुख्यतः भारत से दक्षिण पूर्व
 एशिया तक,  में पाया जाता है। इसे खेत, खुली जगहों
 एवं शहरों में आम पाया जाने वाला पक्षी है। ये चट्टानों
 या इमारतों में, पेड़ों के छिलकों या गुहा में रहते हैं।

प्रेम का शाश्वत रंग उकेरा है आदरणीया मीना जी ने जोकि 
बिषय में रहस्य और गूढ़ता को पिरो देने में कुशल हैं। प्रस्तुत 
रचना का शब्द-शब्द दिल की गहराइयों में उतरता जाता है और 
वाचक को किसी रंज के एहसास में डुबो देता है -  

My photo

उन हवाओं को सँभालना
जो उनकी साँसों से घुलकर
मेरी साँसों में उतरी थीं
सूखने ना देना उन आँसुओं को,
जो मेरे गालों पर बहने से पहले
उनकी आँखों से होकर गुजरे थे !

आदरणीया श्वेता जी की काव्य-यात्रा नई ऊंचाइयों की 
उड़ान भरती प्रतीत होती है प्रस्तुत रचना में,
  जहाँ आपको यथार्थ का धरातल और कवियत्री के 
कल्पनालोक का शानदार परिचय मिलेगा-


तुम्हारी बातों की चुभन झटकने की कोशिश में
देखने लगती हूँ 
नीेले आकाश पर टहलते उदास बादल
पेड़ों की फुनगी से उतरकर
खिड़की पर आयी गौरेया
जो मेरे चेहरे को गौर से देखती 
अपनी गुलाबी चोंच से 
परदे को हटाती,झाँकती, फिर लौट जाती है
चुपचाप

आदरणीया निर्मला कपिला जी की ग़ज़ल में जीवन की अलग-अलग परिथितियाँ बयां करते शेर मुलाहिज़ा कीजिये ब्लॉग "मेरी धरोहर" पर जिसे पेश किया है आदरणीया यशोदा अग्रवाल जी ने - 

नदी को सागर मिला नहीं है.....निर्मला कपिला


शरर ये नफरत का किसने फेंका
जो आज तक भी बुझा नहीं है

किसी को शीशा दिखा रहा जो
वो दूध का खुद धुला नहीं है

आइये चलते-चलते "उलूक टाइम्स" की नवीनतम प्रस्तुति 
का रसास्वादन करें जोकि अनछुए और उपेक्षित बिषयों पर 
हमारा ध्यान आकृष्ट करती है - 


एक पन्ने पर कुछ देर रुक कर अच्छा होता है आवारा हो लेना 

पूरी किताब लिखनी जरूरी है कहाँ लिखा होता है

प्रोफ़ेसर डॉ. सुशील कुमार जोशी 

 


खाली
सफेद पन्ने भी
पढ़े जा सकते हैं 
लिखना छोड़ कर
किसी मौसम में 
उलूक’ 

खुद ही पढ़ने 
और 
समझ लेने 
के लिये 
खुद लिखे गये 
आवारा रास्तों 
के निशान।


चलिए अब बारी है हम-क़दम के 
छठवें क़दम की ओर। 
हम-क़दम 
सभी के लिए एक खुला मंच
आपका हम-क़दम छठवें क़दम की ओर बढ़ चला है। 
इस सप्ताह का विषय है
:::: खलल ::::
उदाहरणः
रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता हैं 
चाँद पागल हैं अंधेरे में निकल पड़ता हैं 

मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नहीं कट सकता
कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता हैं 

कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता हैं 

ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक हैं मगर दिल अक्सर
नाम सुनता हैं तुम्हारा तो उछल पड़ता हैं 

उसकी याद आई हैं साँसों ज़रा धीरे चलो
धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता हैं
-राहत इंदौरी

आप अपनी रचना शनिवार 17  फरवरी 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 19 फरवरी 2018  को प्रकाशित की जाएगी । 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 
11 जनवरी 2018  का अवलोकन करें (इस लिंक को क्लिक करें)


आज के लिए बस इतना ही।  मिलते हैं फिर अगले गुरूवार। 

कल  आ रही हैं श्वेता जी अपनी  प्रस्तुति के साथ। 


रवीन्द्र सिंह यादव 

23 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    बहुत शानदार प्रस्तुति
    भाी रवीन्द्र जी.....
    आप एक कैलेण्डर हैं
    भूत-भविष्य और वर्तमान का
    काफी से अधिक याद रहता है आपको
    अच्छी प्रस्तुति बनी है आज की
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभातम्
    आदरणीय रवींद्र जी,
    बेहद सराहनीय भूमिका है आज के अंक की, बहुत सही कहा आपने मन के भावों को कम से कम बाजारवाद की चकाचौध से से दूर रखना ही चाहिये।
    रेडियो सुनना तो आज भी बहुत लगता है। बचपन के अनगिनत किस्से और याद है रेडियो से जुड़े।
    आज के अंक प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी,खासकर रचना के साथ लिखी आपकी प्रतिक्रिया।
    सुंलर संयोजंन के लिए बधाई आपको। मेरी रचना को स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार।
    सभी साथी रचनाकारों को बहुत बधाई।

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  3. आपके एक पुराने अनुभव का पता चला। सुन्दर प्रस्तुति रवींद्र जी, उत्साहवर्धन हेतु आभार, "पांच लिंकों का आनंद" के इस चर्चा में सम्मलित सभी रचनाकारों को बधाई।

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  4. रेडियो दूरदर्शन के आते विलुप्त सा हो गया फिर भी आज भी अच्छा लगता है सुनना जब दूरदर्शन पर हर चैनल पर दिखाई जा रही मुर्गा झपट उबाने लगती है। आज की सुन्दर प्रस्तुति में 'उलूक' के पन्ने को भी जगह देने के लिये आभार रवीन्द्र जी।

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  5. विविधभारती अपनी स्वर लहरियाँ बिखेर रहा है...
    चाहे लोग बेकार हों या कार में हों....
    एक अच्छी प्रस्तुति...
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  6. विविधभारती अपनी स्वर लहरियाँ बिखेर रहा है...
    चाहे लोग बेकार हों या कार में हों....
    एक अच्छी प्रस्तुति...
    सादर....

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  7. आदरणीय रविन्द्र जी --सुप्रभात | आज सुबह -सुबह पञ्च लिंकों की भूमिका में अपने मनपसंद विषय 'रेडियो ' के बारे में जानकारी पाकर मन आह्लादित हो गया और किसी तरह समय निकालकर लिखने से खुद को रोक नहीं पायी | आपका आभार याद दिलाने के लिये ,कि आज ' विश्व रेडियो दिवस ' है | तकनीक के अविष्कारों में सबसे रोमांचक है रेडियो का आविष्कार | मेरे दादा जी बताया करते थे कि कैसे रेडियो के प्रचलन के बाद घर में र रेडियो का होना किसी जमाने में संभ्रातता का प्रतीक माना जाता था | रेडियो सुनने के लिए बैठक में होने वाले शौक़ीन लोगों के जमावड़े का जिक्र भी अक्सर किया करते थे | मुझे भी रेडियो का शौक विरासत में मिला है | मेरे स्वर्गीय पिता जी हम सब भाई बहनों को रेडियो पर ज्ञानवर्धक कार्यक्रम सूनने के लिए प्रेरित करते थे | आज भी मेरे पास पोर्टेबल रेडियो है जिसे मैं तक़रीबन हर समय अपने पास रखना पसंद करती हूँ | आज बढ़ते तकनीक युग में जहाँ रेडियो के अनेक विकल्प मौजूद हैं , इस बात की ख़ुशी होती है की हम जैसे श्रोतागण ही रेडियो के अस्तित्व को कायम रखने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं | रेडियो सुनना मुझे बहुत सुकून देता है और मेरे अति व्यस्त जीवन को तनाव रहित रखता है | और अच्छा लगा जानकर कि आपने भी आकाशवाणी में अपनी सेवाएं दे रखी हैं | एक बार कई साल पहले आकाशवाणी कुरुक्षेत्रा से मुझे अपनी एक कहानी प्रसारित करने का मौक़ा मिला था | पर घरेलू दवित्वों की वजह से आगे मैंने कोशिश नहीं की | आज भी कभी कभार निस्तब्ध वातावरण में दूर किसी रेडियो पर कोई गाना बज रहा हो तो ये स्वर लहरी मन को बहुत रोमांचक अनुभव देती है हालांकि आज कल शोर प्रदूषण ने इस अनुभव को दुर्लभ सा कर दिया है | रेडियो हमेशा ज़िंदा रहेगा अपने अलग अलग डिजिटल रूपों में भी | रेडियो के बारे में दुर्लभ जानकारी सांझा करने के लिए हार्दिक आभार आपका | और जज्बातों के कारोबार पर सार्थक चिंतन अच्छा लगा | प्रेम दिवस बीत गया | प इसे मनाना कोई कौतुहल का विषय नहीं | नई उम्र के युवा हर दौर में कुछ ना कुछ नया करते रहे हैं इसे भी उसी रूप में उदारता से स्वीकार करना चाहिए | इस बहाने एक दिन ख़ुशी के नाम हो जाता है और बाजार की भी गाडी पटरी पर एक दिन के लिए तेज रफ़्तार से दौड लगा लेती है | बाकी प्रेम का मौलिक रूप तो सदैव अपरिभाषेय ही रहा है | कलमे घिस गयी पर इसे परिभाषित करने में कोई कहाँ सक्षम रहा है ?आज के सहभागी रचनाकारों की सभी रचनाएँ अभी पढ़ नहीं पायी पर जल्द ही पढूंगी जरुर | सभी सहभागी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाये और आपको आक इस सुंदर संयोजन और सार्थक भूमिका के लिए सादर आभार और बधाई | चाँद नगर के गाँव को महत्व देने के लिए सादर आभार |

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  8. धन्यवाद मेरी रचना शामिल करने के लिए |उम्दा लिक्स

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  9. वाह!रवीन्द्र जी..बहुत सुंंदर और विस्तृत भूमिका के साथ आज की प्रस्तुति विशेष स्थान लिए है..
    उम्दा संकलन सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
    आभार।

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  10. बेहद खास ,सराहनीय और यादगार प्रस्तुति। बहुत सुंदर रचना संकलन ।
    सादर

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  11. आदरणीय रवींद्र जी अभिशप्त को शामिल करने के लिए तहेदिल से शुक्रिया....सुंदर रचनाओं की प्रभावशाली प्रस्तुति । सादर।

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  12. वाह!!रविन्द्र जी ...बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । रेडियो दिवस की जानकारी देने हेतु धन्यवाद ....सही में पता नही ं था ....।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति! स्वयं प्रसार भारती, रेडियो और दूरदर्शन की सेवा से जुड़े रहने के कारण ज्यादा क्या लिखूं! अपने बहुत सुन्दर रचनाओं का संकलन सौंपा . बधाई और आभार!!!

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  14. कमाल की भूमिका
    सुंदर संयोजन
    सादर

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  15. बहुत महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक भूमिका के साथ सुन्दर उम्दा लिंक संकलन...

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  16. बहुत महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक भूमिका के साथ सुन्दर उम्दा लिंक संकलन...

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  17. बहुत अच्छी प्रस्तुति...आप उस दौर में ले गये जब मनोरंजन के साधन कम थे .मगर संतुष्टि के भाव जागृत करने के लिए रेडियो के कार्यक्रम पर्याप्त थे।और सबसे अच्छी बात आप स्वयं इस संस्था से जुड़े रहे कई सालों तक ...और आपके द्वारा इतनी अच्छी जानकारी मिलना बहुत अच्छी लगी... प्यार में बाजारवाद आज के माहौल से प्रभावित हैं.पर अच्छी बात है इस बहाने बाजार में त्योहारो का सा मौसम फिर से बंंसत संग प्रेम में डूबे जोड़ों को इजहारे प्रेम की विविध तरीकों से परीचित करवाता है।चयनित रचनाएं ताजगी से भरपूर है। एंव आपकी भुमिका हमेशा की तरह बेहतरीन।

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  18. आदरणीय रवींद्र जी आज की प्रस्तुति बहुत ही सुंदर है

    जवाब देंहटाएं
  19. शानदार भूमिका लिखी आपने एक अनछुए बिष्य को जीवंत बना दिया है आपने. पढ़कर रेडियो से जुदु यादें ताज़ा हो गयीं.

    जवाब देंहटाएं
  20. एरियल रेडियो से,सालिड स्टेट एवं डिज़िटल रेडियो तक की यात्रा....
    ......अज़ब-ग़जब.....शानदार....

    जवाब देंहटाएं
  21. एरियल रेडियो से,सालिड स्टेट एवं डिज़िटल रेडियो तक की यात्रा....
    ......अज़ब-ग़जब.....शानदार....

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