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गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

937...कुछ ख़ूनी जामा पहने हैं, पर कुछ के कपड़े ख़ाकी हैं...

सादर अभिवादन। 
वर्तमान सरकार के आख़िरी आम बज़ट पेश होने के बाद 
शेयर बाज़ार की सेहत लगातार चितांजनक होती जा रही है।  
पिछले मंगलवार निवेशकों के 5 लाख 40 हज़ार करोड़ रुपये 
चुटकियों में डूब गये जिनकी भरपायी नामुमकिन है. आम राय 
यह बना दी गयी कि यह नुकसान बज़ट के कारण हुआ है 
जबकि इसके कुछ ठोस बाहरी कारक भी हैं। क्रेडिट रेटिंग 
एजेंसियों के आंकलन और वैश्विक अर्थ व्यवस्था भी शेयर बाज़ार 
को कुछ इसी तरह प्रभावित करते हैं। सरकार द्वारा शेयरों के 
ज़रिये लम्बी अवधि के निवेश से होने वाली  आय पर 10 प्रतिशत 
टैक्स  लगाने की घोषणा ने आग में घी का काम किया। 
दूसरी चिंताजनक ख़बर शिक्षा क्षेत्र है जहाँ से लगातार छात्रों 
और शिक्षकों पर हमले और मौत की ख़बरें हैं जो हमें परेशान 
कर रही हैं। समाज में हिंसा के प्रति नवोदित पीढ़ी का 
बढ़ता रुझान ख़तरनाक है। 

आइये अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलते हैं-
मौजूदा माहौल पर आक्रोश की अभिव्यक्ति के साथ उपस्थित हैं आदरणीया सुधा सिंह जी अपनी सम सामयिक  रचना के साथ -

My photo
ओढ़ मुखौटा खूंखार भेड़िये
क्यों मीठा बोला करते हैं?
क्यों सांप्रदायिकता का जहर
परिवेश में घोला करते हैं?

हमारे जीवन को प्रभावित करते विविध बिषयों पर लिखती हैं 

आदरणीया अपर्णा जी।  पेश है उनकी एक बेहतरीन रचना-




चाहा था मैंने भी उतना ही
जितना तुमने;
साथ हमारा खिले
सुर्ख गुलाब सा।
सूखे गुलाबों की पंखुड़ियां
महकती हैं अब भी,

देश में नफ़रत का कारोबार आजकल ख़ूब फल-फूल रहा है।  
आदरणीया अनीता जी आपसे रु-ब-रु हैं अपनी प्रासंगिक रचना के साथ - 


मेरी फ़ोटो

भाई...अब तो डर लगता है
इंसान  होने से
डर लगता है अपनी
ज़ात बताने से
न जाने कौन  कब  कहां
बैठा हो अंधभक्ति के साथ
और काट दे मेरा गला

ज़िन्दगी बीत जाती है उसे समझने में और उससे जुड़े अंतर्विरोधों का विश्लेषण करते-करते। आदरणीया डॉ.अपर्णा त्रिपाठी जी की 
एक और  सार्थक  रचना आपकी नज़र - 


कर चुके है शोर
बांध कर मजबूरियों के घूंघरू
वैसे तो और भी बहुत कुछ है बताने को
मगर मेरे ख्आयाल से
इतना ही काफी है
तुम्हारे सोचने के लिये
कि क्या कुछ और जानना चाहिये था
मुझसे मुहब्बत करने से पहले

आजकल देश की सरहद पर सैनिकों की शहादत हमें विचलित 
कर रही है। पाकिस्तान की नफ़रतभरी हरकतें युद्ध जैसा 
माहौल तैयार कर रही हैं। 
सैनिकों के घरों  में पसरे मातम पर आदरणीय जसवाल साहब की 

एक भावविह्वल करती रचना आपकी सेवा में - 

मेरी फ़ोटो


छाती पीट रही क्यों पगली, अभी कर्ज़ यम के बाकी हैं,
यहाँ मौत का जाम पिलाने पर आमादा, सब साक़ी हैं।
बकरों की माँ खैर मना ले, यहाँ भेड़िये छुपे हुए हैं,
कुछ ख़ूनी जामा पहने हैं, पर कुछ के कपड़े ख़ाकी हैं।।


आदरणीय जोग साहब के फोटो-ब्लॉग सारगर्भित जानकारी तो देते ही हैं साथ ही 

उनमें नवीनता और रोचकता का समावेश बख़ूबी अपनी छटा बिखेरता है।  

नवगृह वृक्ष....हर्ष वर्धन जोग 
नवगृह वृक्ष


ग्रहों और वृक्षों में क्या नाता है ये ना तो मालूम था ना ही कभी 
जानने की कोशिश की. वृक्ष तो चाहे जैसे भी हों फायदे वाले ही होते हैं. 
ग्रह की जानकारी तो अखबारी भविष्य फल पढ़ पढ़ कर आ गई थी 
की नवग्रह होते हैं :
1. सूर्य, 2. चन्द्र, 3. मंगल, 4. बुध, 5. गुरु, 6. शुक्र, 7. 
शनि, 8. राहू और 9. केतु.

आदरणीय अमित जी अपनी विशिष्ट काव्य शैली के लिए ब्लॉग जगत् में जाने जाते हैं।  नई कविता का कलात्मक एवं भावात्मक सौंदर्य परखने के लिए प्रस्तुत हैं उनकी एक अप्रतिम कृति- 

शैतान...अमिताग 




इस बार

वो कोई चांस नहीं
लेना चाहता था
सो उसने
ख़ूब सोच समझ कर
प्लास्टिक पैदा कर दिया
और लगा इंतज़ार करने
अपनी योजना के
परवान चढ़ने का
कुटिल मुस्कान के साथ.

आदरणीया रेखा जी छंदयुक्त सृजन में माहिर हैं। चलते-चलते उनका एक मुक्तक - 

मुक्तक...... रेखा जोशी

My photo



कब  तक  उठाएँ गे हम बोझ जीवन का

दर्द  अब  और  हमसे  सहा  नहीं जाता


हम-क़दम-5  
सभी पाठकों के लिए एक खुला मंच है 
हमारा नया कार्यक्रम 
हम-क़दम । 
आपका हम-क़दम अब पाँचवें क़दम की ओर..... 
इस सप्ताह का विषय है...
...यह चित्र
:::: पहाड़ी नदी  ::::

परिलक्षित हो रहे दृष्यों को आधार मानकर
आपको एक कविता लिखनी है-
उदाहरणः


बनाती राह ख़ुद अपनी सँवारे ज़िन्दगी सबकी,
पाले गोद में सबको करे ना बात वो मजहब की।
करे शीतल मरुस्थल को वनों को भी दे जीवन,
सींचकर फसलों को वो खेतों को दे नव यौवन।

करे निःस्वार्थ वो सेवा न थकती है न रुकती है॥
नदी जब चीरकर छाती पहाड़ों की निकलती है॥



आप अपनी रचना शनिवार 10 फरवरी 2018  
शाम 5 बजे तक भेज सकते हैं। चुनी गयी श्रेष्ठ रचनाऐं आगामी सोमवारीय अंक 12 फरवरी 2018  को प्रकाशित की जायेंगीं। 
इस विषय पर सम्पूर्ण जानकारी हेतु हमारे पिछले गुरुवारीय अंक 

आज के लिए बस इतना ही।  मिलते हैं फिर अगले गुरूवार। 
कल आ रही हैं आदरणीया श्वेता सिन्हा जी 
अपनी प्रस्तुति में नये रंगों के साथ। 
रवीन्द्र सिंह यादव 

12 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात भाई
    एक चिन्तनीय विषये से शुरुआत
    दिन तो सही बीतेगा न
    व्हेलेन्टाईन करीब है
    थोड़ा रूमानी विषय की भूमिका होती तो...
    वसंत को वासन्ती बनाइए...बाकी मीडिया वाले हैं न
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभातम् रवींद्र जी,
    बेहद गंभीर,मननशील भूमिका में आपने देश और समाज के चिंतनीय और विचारणीय विषयों को रखा है। समाज में गिरते मूल्य सच में गंभीर है।
    सभी रचनाएँ बहुत सारगर्भित और सुंदर है।
    बहुत सुंदर संयोजन आज के अंक का आपके खास अंदाज़ में प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी। सभी चयनिय रचनाकारों को बहुत शुभकामनाएँ मेरी।

    जवाब देंहटाएं
  3. लाजवाब प्रस्तुति चिंतन का विषय जो अब गले का फंदा बन गया।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. 'नवग्रह वृक्ष' को शामिल करने के लिए धन्यवाद रविन्द्र.

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर संयोजन..
    आज के अंक विचारणीय है अलग अंदाज़ में प्रस्तुति बहुत अच्छी ..सभी चयनित रचनाकारों को बधाई
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. लाजवाब प्रस्तुति
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर संकलन |बधाई यादवजी |

    जवाब देंहटाएं
  8. सुंदर हलचल प्रस्तुति . मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय रवींद्र जी

    जवाब देंहटाएं
  9. लाजवाब प्रस्तुति करण उम्दा लिंक संकलन...

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरणीय रविन्द्र जी -- आज के लिंकों का आन्नद लिया | आपके लिंक संयोजन की प्रशंसक हूँ | सभी रचनाएँ बेहतरीन चुनी आपने | आदरणीय गोपेश जी की रचना सुबह पढ़ी थी -- पर अब ब्लॉग पर नहीं मिली | लिखना चाहती हूँ ---
    राजनीति की बातें छोड़ो - किसी शहीद के घर जा देखो -
    देखके दिल थर्रायेगा - आँगन के सन्नाटे जा देखो |
    आशा है गोपेश जी जरुर बात का मर्म समझेंगे | सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई | और उत्तम संयोजन के लिए आपको बहुत- बहुत बधाई | सादर --

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत सुन्दर संकलन!
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए अनेक धन्यवाद यादव जी:)

    जवाब देंहटाएं

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