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रविवार, 4 फ़रवरी 2018

933....बोल सखी री....

मारा गया फिर मंझला
मंझला अभिशापित रहा है सदा से....
पितर भी मंझले के हाथ का
पानी ग्रहण नहीं करते...
सरकार भी....सारा काम
मंझले से करवाती है....
जब देने का वक्त आता है तो
पिटता भी मंझला है....
सभी कहते है मंझला समझदार है
जानता है समझौता करना.....
चलिए चलें...खीझने से क्या लाभ...
सादर अभिवादन.....
परम्परा चल पड़ी है...आज फिर एक ही ब्लॉग से....
ब्लॉग के बारे में....ब्लॉग बोल सखी री का बैकग्राउण्ड
डार्क है....बहन अपर्णा को चाहिए कि अक्षरों का रंग
पीला या सफेद रखें और बड़ा रखें...
मात्र सलाह है...


बोल सखी री....

टहनियों की पंहुच
उसके साथ आलिंगनबद्ध होने पर भी,
खींच ही लाती हैं मेरी टहनियां तुम्हे
और वो तकती है मेरी राह
कि कब पंहुचेगे मेरे हाथ उसके तने तक
जानती नहीं
परजीवी हूँ 
जीती हूं तुम्हारा ही रस पीकर

बोल सखी री....

बाकी है अब भी!
जब- जब तुम्हे मिलने निकलती हूँ
बादलों के मेलें में गुम हो जाती हूँ
तुम, चाँद बन इठलाते हो,
खेलते हो छुपंछुपाई
हवा के झूलों पर उड़ती हूँ
दौड़ती हूँ तुम्हे छूने को 
हज़ार कोशिशें करती हूँ 

बोल सखी री....

पीठ या चेहरा.....
सोचती हूँ.... 
कितनी भद्दी हो गयी होगी मेरी  पीठ
तुम्हारी पिटाई से,
लगातार रिसते ख़ून के धब्बे,
नीलशाह, अनगिनत ज़ख्म...........

बोल सखी री....

मरे हुए लोग
मरते हैं रोज-रोज
थोड़ा- थोड़ा,
अपनी निकलती साँसों के साथ
मर जाता है उनका उत्साह,
हंसते नहीं है कभी
न ही बोलते है,
अपनी धड़कनों के साथ
बजता है उनका शरीर

बोल सखी री....

आओ हम थोड़ा सा प्रेम करें
आओ हम थोड़ा सा प्रेम करें
महसूसें एक दूसरे के ख़यालात,
एहसासों की तितलियों को
मडराने दें फूलों पर,
कुछ जुगुनू समेट लें अपनी मुट्ठियों में
और ...... रौशन कर दें


बोल सखी री....

समय उनका है!
वे हमारा सूरज अपनी जेबों में ठूंस लेते हैं 
हम रात की तारीक घाटियों में ज़िंदगी तलाशते हैं,
वे चमन की सारी खुशबुओं को अपने हम्माम में बंद कर लेते हैं 
और हम.... 
सड़ांध में मुस्कानें खोजते हैं,


बोल सखी री....

ख़त
यादों के सिरे थाम कर; 
बहकाना गुनाह है. 
खतों का क्या, 
बिन पता होते हुए भी 
पंहुच ही जाते हैं, 
आज..
अब...
बस....
दिग्विजय ..






10 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    वाह...बेहतरीन कि मारा गया मंझला
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ रविवार..
    आप सब का शुक्रिया...
    आपकी शुभकामनाएँँ हमें
    हर बला से दूर रखेंगी
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय दिग्विजय जी , मेरे ब्लॉग की रचनाओं को पटल पर प्रस्तुत करने के लिए हृदय से आभारी हूँ. ब्लॉगिंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. अभी सीख रही हूँ.ब्लॉग की design, font colour and size kaise बढ़ाते हैं pata नहीं है .आप की सलाह के लिए सादर धन्यवाद । कोशिश करके देखती हूँ शायद कुछ ठीक हो जाए ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत उम्दा रचनायें
    उम्दा संकलन

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया उकेरा गया दर्द मझले का
    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  6. नफासत से प्रस्तुत किया गया सुंदर अंक।
    भुमिका आज पर सटीक व्यंग्य मे प्रवाहह, वाह वाह ।
    सभी रचनाकारों को आंतरिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर चयन
    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  8. बधाई सखी।
    सुंदर प्रस्तुति हलचल की।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन प्रस्तुतिकरण उम्दा लिंक्स...
    बहुत बहुत बधाई, अपर्णा जी !

    जवाब देंहटाएं

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