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शनिवार, 20 जनवरी 2018
918... क्षणभंगुर
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9 टिप्पणियां:
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शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसाद की तरह
एक विषयक प्रस्तुति
बेहतरीन
सादर
शुभ प्रभात दीदी
जवाब देंहटाएंसदा की तरह
एक विषयक प्रस्तुति
बेहतरीन
सादर
सुप्रभात विभा दी,
जवाब देंहटाएं"क्षणभंगुर" विचारणीय रचनाएँ है,हमेशा की तरह निराली प्रस्तुति दी।सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी।
आभार आपका दी।
वाह आध्यात्मिक चितन देती प्रस्तुति दीदी जी नमस्कार।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात शुभ दिवस।
क्य करता बंदे मेरा मेरा
ना तेरा ना मेरा
जीवन है माटी का ढेरा
क्षण भर मे ये बिखर मिलेगा
ना घर तेरा ना घर मेरा।
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंक्षणभंगुर से सम्बंधित सुंंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंतेरा बाबा
जवाब देंहटाएंबूढे बाबा का जब चश्मा टूटा
बोला बेटा कुछ धुंधला धुंधला है
तूं मेरा चश्मां बनवा दे,
मोबाइल में मशगूल
गर्दन मोड़े बिना में बोला
ठीक है बाबा कल बनवा दुंगा,
बेटा आज ही बनवा दे
देख सकूं हसीं दुनियां
ना रहूं कल तक शायद जिंदा,
जिद ना करो बाबा
आज थोड़ा काम है
वेसे भी बूढी आंखों से एक दिन में
अब क्या देख लोगे दुनिया,
आंखों में दो मोती चमके
लहजे में शहद मिला के
बाबा बोले बेठो बेटा
छोड़ो यह चश्मा वस्मा
बचपन का इक किस्सा सुनलो
उस दिन तेरी साईकल टूटी थी
शायद तेरी स्कूल की छुट्टी थी
तूं चीखा था चिल्लाया था
घर में तूफान मचाया था
में थका हारा काम से आया था
तूं तुतला कर बोला था
बाबा मेरी गाड़ी टूट गई
अभी दूसरी ला दो
या फिर इसको ही चला दो
मेने कहा था बेटा कल ला दुंगा
तेरी आंखों में आंसू थे
तूने जिद पकड़ ली थी
तेरी जिद के आगे में हार गया था
उसी वक्त में बाजार गया था
उस दिन जो कुछ कमाया था
उसी से तेरी साईकल ले आया था
तेरा बाबा था ना
तेरी आंखों में आंसू केसे सहता
उछल कूद को देखकर
में अपनी थकान भूल गया था
तूं जितना खुश था उस दिन
में भी उतना खुश था
आखिर "तेरा बाबा था ना"