आज प्रस्तुत की जाएँगी हमारे चर्चाकारों की
सबसे पहले हम दोनों की पसंद...
नव प्रवेश..
..बिटिया रक्षा हमारे परिवार के सदस्य की सुकन्या है
इंसान हूँ मैं.....रक्षा सिंह "ज्योति"
इंसान हूँ मैं लेकिन
फिर भी क्यों निर्मम बन जाता हूँ,
नफ़रत के सागर में
न जाने कितने गोते लगाता हूँ।
ये अक्सर मिलती कम टकराती.....पम्मी सिंह
कई मर्तबा हमनें जिन्दगी को ताकिद की,
”बाज..आ.. अपनी चुगलखोरी से..”
पर "नहीं.. "
ये अक्सर मिलती कम टकराती ज्यादा है..
बस एक मैं ..घास की तरह हर दफा उग आते हैं
क्षणिकाएँ.....सुखमंगल सिंह
विश्व को मैं समेटे जी रहा,
चीथड़े ग़रीबी के सी रहा।
तन-वदन है कर रहा मनमानियां
ख़ुशनुमा मौसम है थोड़ा पी रहा।।
किताबों की दुनिया....नीरज गोस्वामी
बाकी सब सच्चे हो गये
मतलब हम झूठे हो गये
सब को अलहदा रहना था
देख लो घर महँगे हो गये
कहाँ रहे तुम इतने साल
आईने शीशे हो गये
अब सखी पम्मी सिंह की पसंद
समय साक्षी रहना तुम.....रेणु बाला
उस पल के- जो हो सत्य सा अटल ,
ठहर गया है भीतर कहीं गहरे ;
रूठे सपनों से मिलवा जो -
भर गया पलकों में रंग सुनहरे ;
यदा -कदा बैठ साथ मेरे -
उन यादों के हार पिरोना तुम
अहबाब की नज़र.....कालीपद 'प्रसाद'
जिंदगी में है विरल मेरे निराले न्यारे’ दोस्त
हो गए नाराज़ देखो जो है’ मेरे प्यारे’ दोस्त |
एक जैसे सब नहीं बे-पीर सारी दोस्ती
किन्तु जिसने खाया’ धोखा किसको’ माने प्यारे’ दोस्त |
अब प्रातःस्मरणीय विभा दीदी
नवान्न...प्रेम रंजन अनिमेष
नयी है मेरी कलम
इसकी रोशनाई
नया यह कोरा पन्ना
नया है नयी आँखों के नये पानी में तिरता सपना
नये पंखों में भरी नयी हवा
नये तिनके सजावट इनकी नयी
नया वर्ष......योगेन्द्र कृष्ण
इसे ऐसे भी विदा मत करो
जैसे कभी यह समय
तुम्हारा था ही नहीं...
यह थोड़ा थोड़ा हमेशा से
तुम्हारे हर समय में मौजूद था
समय के नैरंतर्य को तुम
इस तरह मत तोड़ो...
जैसे 31 दिसंबर को 1 जनवरी से तोड़ते हो
सखी श्वेता सिन्हा की पसंद
ख़्वाहिशें सुलगती है इश्तेहार में....गौतम ऋषिराज
ख़्वाब भर चली रातें थक के
जब निकल जायें सुबह के दरीचों से
अनमने-से दिन लिक्खे दफ्तरों में
टेबल पर फाइलों के अफ़साने
वादों का मफ़लर....ज्योति खरे
उम्मीद थी
कि, बर्फ़ीली हवाओं में
ओढ़ कर बैठेंगें
और जाती हुई नमी को
एक दूसरे की साँसों से गर्म करेंगे
भाई रवीन्द्र सिंह जी की पसंद...
एक ही थाल में....दीदी कविता रावत
48 स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद
भरा है 'ख्याल' में.....
“ये जो एक लफ्ज है ’हाँ’
ये अगर मुख्तसर नहीं होता
तो जरा सोचिये कि क्या होता?
अलबेली ये शीत लहर है.....शालिनी कौशिक
अमरावती सी अर्णवनेमी पुलकित करती है मन मन को ,
अरुणाभ रवि उदित हुए हैं खड़े सभी हैं हम वंदन को .
अलबेली ये शीत लहर है संग तुहिन को लेकर आये ,
घिर घिर कर अर्नोद छा रहे कंपित करने सबके तन को .
भाई कुलदीप जी शहर से बाहर हैं ....सो उनकी
पसंद की रचना नहीं है....उन्हें पेनाल्टी देनी होगी...
अब बारी है सुशील भैय्या की...
उनको प्रणाम.....बाबा नागार्जुन प्रस्तुतिः अशोक पाण्डेय
कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए;
रण की समाप्ति के पहले ही
जो वीर रिक्त तूणीर हुए!
उनको प्रणाम!
हल्द्वानी के किस्से...अशोक पाण्डेय
उधर बचेसिंह ने कुत्ते अर्थात टॉमी की जीवनगाथा बताना चालू कर दिया. टॉमी के बाप गब्ब्बर को गाँव के एक सज्जन का फ़ौजी बेटा जीतसिंह उर्फ़ जितुवा हौलदार बागेश्वर से लाया था. हट्टे-कट्टे गब्बर ने फकत साल भर में रोमांस के ऐसे रेकॉर्ड कायम किये कि आसपास के पच्चीस-तीस गाँवों में उस साल पैदा हुए सारे पिल्लों पर उसकी छाप स्पष्ट देखी जा सकती थी. जिस रात झिंगेड़ी गाँव में जितुवा हौलदार के पड़ोसी के घर टॉमी अपने चार अन्य भाई-बहनों के साथ दुनिया में आया था, उसी रात गब्बर को बाघ उठाकर ले गया.
इति श्री नौसौवीं प्रस्तुति
कल मिलिएगा सखी पम्मी जी से..
यशोदा ..
इस अंक में एक गीत सुनिए
1955 में फिल्माई गई बारादरी का मनभावन गीत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ऐसी कि वास्तव में नहीं भुला सकते. मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुप्रभातम् दी:),
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार विशेषांक तैयार हुआ है दी,सारी रचनाएँ उम्दा हैं। परिवर के सभी सदस्यों को ९००वें अंक की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ है।
सभी रचनाकारों को भी बधाई एवं शुभकामनाएँ मेरी।
ढ़ेरों आशीष व अक्षय शुभकामनाओं के संग शुभ दिवस छोटी बहना 🌹😍
जवाब देंहटाएंसंग्रहनीय प्रस्तुतीकरण
शानदार हैं आपके विचार
सच..आज मजा आ गया😊
जवाब देंहटाएंविविधताओं से भरी प्रस्तुति बहुत अच्छी बन पड़ी
परिवार के सभी सदस्यों को ९००वें अंक की हार्दिक बधाई
सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ
धन्यवाद।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया दीदी..💐
हटाएंबहुत बढ़िया पसंद मेरे पसंदीदा कलमकारों की। बहुत बधाई इतनी सुंदर प्रस्तुति परोसने की!!!
जवाब देंहटाएंसुप्रभात।
जवाब देंहटाएंसम्मिलित प्रयास का रंग कुछ अलग ही होता है सचमुच बड़ा लुभावना बड़ा आकर्षक। सबको बधाई।
आज 900 वा अंक एक विशेषण के रूप में पेश किया गया है। आज हम अपने समस्त सहयोगियों समर्थकों और आदरणीय सुधि पाठकों का धन्यवाद करते हैं। उनके असीम सहयोग से ही हमें यह मक़ाम हासिल हुआ है।
उत्कृष्ट रचनाओं से निखरा अंक वास्तव में विशेशांक कहलाने के सभी मानदंड पूरे करता है।
अंत में 62 वर्ष पुराना फिल्मी गीत हमें यह बखूबी बताने में सक्षम है कि हम कितना बदल गए हैं। तकनीक अभिव्यक्ति साधन भाषा लहजा लिबास और हमारा मनोरंजन का नज़रिया सभी में बड़ा परिवर्तन दिखाई देता है।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।
वाह....
जवाब देंहटाएंप्यारा विशेषांक
नौ सौवाँ अंक..
काफी दिन घूमते रहे हम
कल ही लौटे हैं
बेहतरीन अंक
आदर सहित
900वें मील के पत्थर को स्थापित करने के लिये हलचल टीम को बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंसभी अनदेखे अपनों को नव-वर्ष की शुभकामनाएं, आने वाला समय मंगलमय हो
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुतिकरण एवं उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंसभी को नववर्ष की शुभकामनाएं...
परिवार के सभी सम्मानित सदस्यों को 900 प्रस्तुतियों की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंहलचल की यह सृजनात्मक भूमिका रचनाकारों के लिए एक जमीन तैयार करती है और नयो पीढ़ी का मार्ग खोलती है जिससे रचनाकारों में नई चेतना का संचार होता है.
यह काम सहज नही है.
समूचे परिवार को साधुवाद
संग्रहणीय लिंक संयोजन की सुंदर प्रस्तुति
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर
bahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोष्ट
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