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शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

882...कृपया एक बार सोचिएगा अवश्य।

मैं सोच-सोचकर परेशान हूँ आखिर उन ३-४-५ साल की 
मासूम बच्चियों ने कैसे भड़काऊ वस्त्र पहने होगें, जो 
अमानवीय कृत्य का शिकार हो गयीं।  कैसी अदाएँ दिखायी 
होंगी जो किसी को वासानात्मक रुप से उकसा गयी। 
जिनको लड़की या लड़का का मतलब भी नहीं पता 
वो मासूम तथाकथित मानसिक रूप से बीमार का 
शिकार बन गयी। आये दिन पढ़ने-सुनने-देखने में 
आने वाली ऐसी शर्मनाक,रोंगटे खड़े करने वाली  घटनाओं 
ने बहुत सारे सवाल खड़े किये हैं। 
आखिर क्यों और कब तक समाज में ऐसे वीभत्स और 
घिनौने चेहरों को बर्दाश्त किया जाता रहेगा???
बड़े-बड़े भाषण देना, आक्रोश व्यक्त करना क्या ऐसी घटनाओं को रोकने में सक्षम है?
कृपया एक बार सोचिएगा अवश्य।

सादर अभिवादन
चलिए आज की रचनाओं की ओर

आदरणीया डॉ. इन्दिरा जी की कलम से बेहद मार्मिक रचना
सिकुड़ कर अखबार के 
एक कॉलम को भर गई 
पुराने अखबार में रात 
एक ज़िंदगी लिपट गई ! 


आदरणीया यशोदा दी की कलम से बेहद खूबसूरत रचना
ठंडी हथेलियों को चूम
चाँदनी महक गयी 
ओढ़ यादों की गरमाहट
लब मुस्कुराये
जैसे हो स्नेहिल स्पर्श तुम्हारा

आदरणीया अनीता जी की कलम से बेहद हृदयस्पर्शी रचना

सोना चाहता हूँ  लंबी नींद ....
अब नहीं  लगती ज़िन्दगी आसान...
ओ बिटिया....! 
कर देना इतना-सा काम....!
टांग देना कोठरी में ...
एक अदना-सी मेरी तस्वीर.....!!!


आदरणीय रवींद्र जी की कलम से बेहद दिलकश रचना

लबों पर तिरती मुस्कराहट 
उतर गयी दिल की गहराइयों में, 
गुज़रने लगी तस्वीर-ए-तसव्वुर 
एहसासों की अंगड़ाइयों में। 

आदरणीय पुरूषोत्तम जी की लाज़वाब अभिव्यक्ति

कोशिशें बार-बार करता हूँ कि,
रत्ती भर भी छू सकूँ अपने मन के आवेग को,
जाल बुन सकूँ अनदेखे सपनों का,
चून लूँ, मन में प्रस्फुटित होते सारे कमल,
अर्थ दे पाऊँ अनियंत्रित लम्हों को,
न हो इंतजार किसी का, न हो हदें हसरतों की....
आदरणीय गगन जी की कलम से रोचक लेख

हर साल यहां 15 जून को विशाल मेला लगता है जिसमें देश-विदेश से  भक्तजन यहां पधारकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते है। कहते है कि यहां पर श्रद्धा एवं विनयपूर्वक की गयी पूजा 
कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है।

आदरणीय विश्वमोहन जी की अद्भुत लेखनी से प्रसवित
समंदर!

उसे बाँहों में भरता।
लोट लोट मरता।
लहरों से सजाता।
सांय सांय की शहनाई बजाता

चलते-चलते भाई अरुण साथी के मुलाकात हो गई
चौथे खंभे के पास ....
कह रहे थे...
एक असुर 

हाथ में कुल्हाड़ी ले 
काटता है 
आदमी को 
फिर जला देता है 
डालकर पेट्रोल 
और बनाता है वीडियो 



आप सभी के बहुमूल्य सुझावों की प्रतीक्षा में

20 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात...
    सटीक प्रश्न...
    बेहतरीन चयन
    और आभार भी
    सादर

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  2. बहुत ही अहम प्रश्न को लेकर प्रारम्भ की गई आज की प्रस्तुति...
    आखिर क्यों और कब तक समाज में ऐसे वीभत्स और
    घिनौने चेहरों को बर्दाश्त किया जाता रहेगा???
    समाजिक/मानसिक/नैतिक अवमुल्यन की पराकाष्ठा पर कुठाराघात करती आज की प्रस्तुति झकझोर गई।
    मुझे तो बस इतना पता है कि यदि आपकी पत्नी भी इंकार करें तो छूना भी नही चाहिए उन्हें। नैतिक रूप से यह बिल्कुल सही नहीं। एक सभ्य समाज की नींव रही है।
    श्वेता जी को मेरी शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत उम्दा संकलन
    सुंदर रचनायें

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया प्रयास...
    बेहतरीन व ज्वलन्त प्रश्न...
    आगे और भी निखरेगी प्रस्तुति आपकी...
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. जो लगे है उधेड़ने में परदे घरों के उन्हे कहाँ कुछ सोचना है
    जो देख रहे हैं उधेड़ते हुऐ हाथों को उन्हे भी कहाँ सोचना है ?

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  6. सम सामयिक समय मे मूल्यों का ह्रास, कुत्सित भावनाओं का विकास, असंयमित नशे मे धूत्त निकृष्ट व्यक्तित्व समाजिक और संस्कारों की धज्जियां उडाते जा रहे हैं और बाकि करोड़ों बस लकीर पीट रहें हैं।

    श्वेता सटीक मर्मस्पर्शी भुमिका के साथ शुरू कर के आज की प्रस्तुति बहु आयामी विषयों को समेटे अद्भुत है साधुवाद और सभी चयनित रचनाकारों को सादर बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुप्रभात प्रिय सखी श्वेता
    बहुत ही गंभीर विषय चुना है आप ने पर जब तक स्वयम को श्रेष्ठ समझने वाले पुरुष प्रधान समाज की सोच नहीं बदलती परिवर्तन असंभव है। जिनकी आत्मा मर चुकी है उनसे नैतिकता की उम्मीद बेकार है। आज का पुरुष माँ को तो इज्जत दे नहीं पाता वो दूसरों की बहू बेटियों की इज्जत की क्या रखवाली करेगा। शिकारी कभी नहीं सोचता शिकार पर क्या गुजरेगी। बस नारी ही अपनी रक्षा स्वयम कर सकती है क्यों की बलि बकरे की चढ़ाई जाती है शेर की नहीं। बहुत ही सुंदर रचनाओं से सजी शानदार प्रस्तुति।

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  8. नमन यशोदा दी अतुल्य आभार पाँच लिँक में मेरी काव्य रचना को स्थान दे सम्मनित करने का !
    आप जैसे सुपाठक और समालोचक ही काव्य विधा को सक्रियता प्रदान करते है और लेखको की लेखनी को सतत प्रवाह देते है !
    नमन

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  9. सुप्रभात यशोदा दी .🙏
    बेजोड़ चयन , बेजोड़ भाव
    बेजोड़ अल्फाज़ प्रवाहित है
    इस बेजोड़ संकलन मै
    बेजोड़ काव्य समाहित है !

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  10. सुप्रभात स्वेता जी,
    सही कहा सोचने वाली ही बात है,क्या पहना होगा उन छोटी बच्चियों ने कौन सी मासुम खिलखिलाहट तैरी होंगी उनके होंठों पर ..जिसे देख चंद कुत्सित मानसिकता वाले बीमार लोग इन बच्चियों के कोमल मन को ठेस पहुंचा देते हैं,कुछ विकट परिस्थितियों में हम बड़े खुद को बचा भी ले पर बॉबी डॉल सी मासुम इन गुड़ियों को तो ये भी पता नहीं होता की ..सामने वाले के चाकलेट देने के पीछे क्या मंशा हो सकती है। मैं बस यही कह सकती हुं .. ऐसे धृणित कार्य करने वालों के लिए सख्त सजा का प्रावधान हो..तो शायद स्थितियां कुछ संभले... चर्चा के लिए समाजिक सरोकार से जुड़े विषय को आपने मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ पेश किया ..जो हर पढ़ने वाले को पलभर के लिए ठिठका जाएगी... सभी चयनित रचनाकारों की प्रस्तुति कमाल की है ... मुझे भी शामिल करने के लिए ह्रादिक आभार...

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  11. नरपिचास मानवीयता से कोसो दूर होते हैं, उन्हें उन्हीं की भाषा सुहाती हैं
    गंभीर विचारणीय प्रस्तुति के साथ सार्थक हलचल प्रस्तुति

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  12. सटीक मर्मस्पर्शी भूमिका के साथ सराहनीय प्रस्तुति
    नैतिकता का ह्रास और कुत्सित भावना का विचार समाज को कहां लिए जा रहा है..
    समाजिक सरोकार से जुड़े विषय सार्थक..
    सभी रचनाएँ एक से बढ कर एक है..
    .

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  13. बहुत ही सटीक प्रश्न....
    बेचारी बच्चियां जो मानव के रूप में दानवों का ऐसा क्रूर प्रहार सह रही है....उन पर क्या गुजरती होगी, ये तो कल्पना से भी बाहर है....मैं सोचता हूं ऐसे कुकृत्य कोई भी मानव तो कर ही नहीं सकता....अवश्य ही ऐसे लोग कोई पिसाच होते होंगे....जिन्हे बिना देर किये ऐसा भयानक दंड मिलना चाहिये, जिससे अन्य दुर्आत्मा भी ऐसा कुकृत्य करने से पहले भय से मृत्यु पा जाए।

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  14. बहुत सार्थक और समीचीन सन्दर्भ का स्पर्श किया आपने. मेरा प्रश्न तो महिलाओं और मात्र उन महिलाओं से भी है जिनके घर के नरव्याघ्र और नौनिहाल ऐसे 'वीरोचित' कुकृत्य करते हैं! परवरिश, लालन पालन और माता पिता के आरोपित संस्कार ही social animal और animal के बीच की विभाजक रेखा होती है. मुझे लगता है कि आदिम वस्त्रहीन समाज से आधुनिक सभ्य जमात ज्यादा निर्वस्त्र हो गयी है. जरुरत है जमात को समाज में बदलने की! सुन्दर संकलन का साधुवाद और आभार!!!

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  15. श्वेता जी, मार्मिक पृष्ठभूमि और इस मार्मिक विषय से हम मुँह नहीं मोड़ सकते है और इस विषय के मूल में है हमारी नैतिक पतन, पारिवारिक एवं समाजिक मूल्यों का अभाव और खुद को इस तरह की समस्याओं से दूर रखना। किसी को कोसने भर से इस समस्या का समाधान नहीं है। सार्थक प्रस्तुति।

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  16. प्रिय श्वेता जी -- आज के लिंक में विचारणीय भूमिका मर्मस्पर्शी है |ये एक अनुत्तरित प्रश्न है कि ऐसी विकृति आती कहाँ से है कि दुनिया के प्राकृतिक सत्यों से अभी अनजान मासूम अविकसित अंगों वाली लड़की में भी व्यभिचारियों को एक पूरी औरत नजर आती है | कथित सभ्य और शिक्षित समाज का ये विद्रूपतम चेहरा है | रोज़ ऐसी रौगटें खड़े करने वाली खबरे आती है कि कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में अनेक बच्चियां ऐसे अमानवीय कृत्यों का शिकार हो रहीं हैं | यूँ तो से इस अनहोनी से बचने का एक सरल उपाय सजगता भी है दुसरे ऐसे लोगों की पहचान जरूरी है जो संदिग्ध चरित्र वाले हैं | अपने आस -पास के लोग भी छद्म रूप में ऐसे कुकृत्यों को अंजाम देने से बाज नहीं आते | इन मासूम कलियों की सुरक्षा बहुत जरूरी है | इसके लिए दृढ संकल्प की जरूरत है | धन्यवाद आपका जो आपने इस ज्वलंत विषय पर ब्लॉग जगत का ध्यान दिलाया | आज के लिंक की सभी रचनाओं का अवलोकन किया सभी बहुत ही उम्दा रचनाएँ है और सराहनीय हैं सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई | आज के लिंकों के सफल संयोजन पर आपको बधाई |
    1m

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  17. श्वेता जी ने हमारे बीच जलता हुआ सवाल रखा है. दरअसल आज भारत में आज़ादी का मतलब ही कुछ और हो गया है. आपराधिक मानसिकता अपने वीभत्स रूप में हमारे सामने आ खड़ी हुई है और हमसे पूछ रही है अनेक सवाल जिनमे से एक सवाल उन मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी का भी है अत्यंत कोमल मन के साथ संसार को उत्सुकता से समझने में खिलखिलाती हुई हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती हैं. आंकड़े बताते हैं कि स्त्री किसी भी उम्र में पुरुष की कुदृष्टि से सुरक्षित नहीं है.
    हम स्त्रियों को ही समस्या का दोषी मानकर तरह्-तरह् के आरोप उन पर मढ़ने लगते हैं जबकि पुरुषों की आपराधिक मानसिकता पर चुप्पी साध लेते हैं . परिवारों में बेटों को महिलाओं की गरिमा के प्रति सकारात्मक भाव और संस्कार विकसित करना ज़रूरी है . सख़्त क़ानून को लागू करने के लिये राजनैतिक इच्छाशक्ति चाहिये. न्याय -व्यवस्था संसाधनों के अभाव में समय पर न्याय मुहैया नहीं करा पाती है जिससे समाज में नकारात्मक संदेश जाता है. अनेक पेचीदगियों के चलते लोग क़ानून की मदद लेने से कतराते हैं जिससे अपराधियों के हौसले बुलंद रहते हैं.
    आज के अंक में सबरंग अनुभव का ख़्याल रखा है सभी बेहतरीन रचनाओं का ख़ूबसूरत संकलन. मेरी रचना को भी स्थान मिलने से अभिभूत हूँ. सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनायें. आभार सादर.

    जवाब देंहटाएं
  18. विचारणीय विषय से आरंभ..... सही कहा आखिर कब तक.....कब होगा इस सबका अंत....
    सुन्दर लिंक संकलन उम्दा प्रस्तुतिकरण...

    जवाब देंहटाएं
  19. आभार

    खासकर इसके लिए

    सोंचियेगा जरूर...सोंचने पे विवश कर दिया

    जवाब देंहटाएं

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