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बुधवार, 15 नवंबर 2017
852..पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यों है..
20 टिप्पणियां:
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शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंएक और अच्छा प्रस्तुति
धूल
धुंआ
और
कोहरा
नाक पर
रूमाल बांधे लोग
पर आँखों का क्या
जलन तो उसी में है
सादर
बहुत बढ़िया प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंफूल पत्तियां हरियाली खा गये
जवाब देंहटाएंध्रुम कोहरा तक हम पा गये
होश में हम अभी भी नहीं आ रहे
उम्दा लिंक्स संयोजन बधाई
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंआदरणीया पम्मी जी शानदार अंक।
बधाई आपको।
प्रासंगिक भूमिका।
नामचीन शायर शहरयार साहब की ग़ज़ल (1978 , आर्ट फ़िल्म गमन ) का पहला शेर वर्षों बाद दिल्ली में जीने के लिए दुश्वारियां पैदा करते छाए प्रदूषित स्मोग और असहाय लोगों पर इस तरह फिट बैठेगा कि इसका ज़िक्र लिखने वाले लेख ,कविता, भूमिका या ट्विटर पर भी करेंगे।
दिल्ली में हूँ तो इस आफ़त को सबके साथ महसूस भी कर रहा हूँ।
व्यवस्था दोषारोपण में व्यस्त हैं लेकिन नागरिक बुरी तरह त्रस्त हैं।
कुछ फ़ौरी व्यावसायिक उपाय भी आ गए हैं।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं। आभार सादर।
सुप्रभात पम्मी जी,
जवाब देंहटाएंविचारणीय भूमिका लिखी है आपने,बेहद
गंभीरता से हल करना आवश्यक है इस समस्या को।
हैरान कम परेशान ज्यादा है लोग
घुटी साँस है ज़हर पीने को मजबूर है
ज़िदगी की तलाश में अब कहना पड़ेगा
हवाओं में जहर भरने लगा
आसां मौत के लिए अब कहाँ दिल्ली दूर है
बहुत ही उम्दा संकलन सारी रचनाएँ बेहतरीन है। चयनित रचनाकारों को मेरी बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ।
Nice presentation of beautiful compositions...
जवाब देंहटाएंNice presentation of beautiful compositions...
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंदिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के स्थायी समाधान खोजने होंगे, वरना वर्ष दर वर्ष यह समस्या बढ़ती ही जाएगी. सुंदर सूत्रों का चयन..बधाई इस शानदार प्रस्तुति के लिए..
जवाब देंहटाएंप्रदूषण की मार झेलते हैं परिस्का समाधान नहीं ढूंढना चाहते ....
जवाब देंहटाएंआचे लिंक्स ...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति करण उम्दा लिंक संकलन....
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आप के दिए स्नेह का ....
जवाब देंहटाएंसीने में जलन, आँखों में तूफ़ान सा क्यों है
जवाब देंहटाएंइस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है
दिल है तो, धड़कने का बहाना कोई ढूंढें
पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान सा क्यों है....
सामयिक मुद्दा - प्रदूषण ! सिर्फ चर्चाएँ, ठोस उपाय कुछ नहीं। हर सवाल की तरह ये भी एक सवाल...
एक गीत याद आ रहा है -
"इक सवाल मैं करूँ
इक सवाल तुम करो
हर सवाल का
सवाल ही जवाब हो"
बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय पम्मी जी द्वारा। मेरी रचना को शामिल करने हेतु सादर आभार। सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन आदरणीया । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति। मोहक अंक। सभी रचनाकारों को उनकी शानदार रचनाओं के लिये बधाइयाँ
जवाब देंहटाएंआदरणीया,
जवाब देंहटाएंसार्थक और तथ्यपरक भूमिका के लिए साधुवाद
सुंदर लिंक संयोजन
सभी रचन्काकारों को बधाई
मुझे सम्मलित करने का आभार
सादर