---

मंगलवार, 17 अक्टूबर 2017

823... पिताजी के बिना पहली दिवाली है....


जय मां हाटेशवरी........


 इस बार दिवाली के आगमन पर मन हर्षित नहीं है....क्योंकि पिताजी के बिना पहली दिवाली है....
मुझे याद है जब बचपन में मैं चंडीगड़ में पढ़ा करता था। दिवाली में हमें दो तीन दिन का अवकाश ही होता था। बस द्वारा 10 से 12 घंटे का लंबा सफर करके पिता जी मुझे लेने अवश्य ही आते थे। वे कहते थे, "दिवाली सब के साथ ही अच्छी लगती है" फिर दिवाली के अगले दिन उन्हे मुझे छोड़ने वोही लंबा सफर झेलना पड़ता था। मुझे याद है, एक बार पिताजी काफी बीमार हो गये थे। मुझे दिवाली पर लेने नहीं आ सके। पर दिवाली से एक दिन पहले मुझे उनकी चिट्ठी व मनी-ऑर्डर मिल गया था। क्या रौनक होती थी उनके साथ दिवाली में।
तुम बिन पिताजी
अब हम कैसे मनाएंगे दिवाली
अपने हाथों से लाई मिठाई
खाने में वो आनंद नहीं आएगा....
पर इस दिवाली पर भी,
हम  जलाएंगे  दीपक
करेंगे  प्रकाश,
तुम्हारे लिये....
हम  जानते हैं
तुम्हे अपने  घर में
फैला हुआ अंधकार
अच्छा नहीं लगेगा...
हम  ये भी जानते हैं
तुम आओगे
किसी न किसी रूप में
हमारे साथ दिवाली मनाने....



ख़ाकी
अफ़सोस कि इस रंग पर ,
रिश्वत ,क्रूरता ,बर्बरता,अमानवीयता,ग़ैर-वाजिब हिंसा ,
विवेकाधिकार का दंभ ,भेदभाव का चश्मा, काला पैसा ,
सत्ता के आगे आत्मसमर्पण ,
पूँजी की चौखट पर तर्पण,
ग़रीब फ़रियादी को दुत्कार ,
आसमां से ऊँचा अहंकार ,
मूल्यों-सिद्धांतों को तिलांजलि !
 दे दी शपथ को  भी   श्रद्धांजलि !!

समझ
-आपके पहले मैं या मेरे पहले आप टिकट कटवाएँगे सासु जी..."
-संग-संग चलेंगे... समय के साथ खाद-पानी-हवा का असर होता है" दोनों की उन्मुक्त हँसी गूंज गई...

एक ख़त
जो तुमने मेरे जन्मदिन पर
बड़े जतन  से
खत के साथ भेजी थी .,
उनका सुर्ख रंग
कुछ  खो सा गया है
हमारे रिश्ते का रंग भी अब
उन पंखुड़ियों की तरह
कुछ और सा गया है

मुक्तक
कभी क्या सत्य छुपता है, अनर्गल झूठ बकने से।
करोगे दान तो थोड़ा, रुपैया खर्च हो जाता।
मगर लक्ष्मी नहीं जाती, अपितु आनन्द-धन आता।।

बात दिल की हमेशा सुना कीजिए
कब बदल जाए नीयत किसी की यहाँ
हर किसी से न  हँस के मिला कीजिए
मैंने अहसास दिल का बयाँ कर दिया
यूँ  न  हैरत से मुझको  तका कीजिए

कौन होगा अब निराला
एक अक्खड़ सादगी थे ।
विषमता के पारखी थे ।।
निगलते तो निगल लो -
कष्ट का सूखा निवाला ।।
कौन होगा अब निराला ?

यह रौशनी का त्यौहार है...
यह रौशनी का त्यौहार है...
दुल्हन सा सजा घर-बाज़ार है
जहां तलक भी नज़र है जाती
दिखता सुंदर प्रकाश ही प्रकाश है

और अंत में....
आज ही जुड़ी हैं श्रीमति श्वेता सिन्हा
हमसे, हमारी सहयोगी चर्चाकार के रूप में
उन्हें फिलहाल छठ पूजा तक कुछ नहीं करना है
सिर्फ हम पर नज़र रखनी है
धन्यवाद।

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपके हौसले औ जज़्बे को नमन करती हूँ असीम शुभकामनाओं के संग

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात भाई कुलदीप जी
    ईश्वर का साथ तो
    सदा से आपके साथ ही है
    और बना रहेगा,,,
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. पिताजी के प्रति आपका असीम आदर भाव मन के कोने कोने तक को भिगो गया .बहुत सुन्दर संकलन संयोजन . पाँच दिवसीय दीपावली महोत्सव के शुभ अवसर पर "पाँच लिंकों का आनन्द‎" के सम्पूर्ण‎ सदस्यों को हार्दिक शुभ‎कामनाएँ .

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात।
    त्यौहार पर बिछड़े स्वजनों की याद इसी तरह भावुकता में डुबोती है भाई कुलदीप जी। आपको ईश्वर धैर्य और परिस्थितियों से मुकाबला करने की शक्ति बराबर देता रहे। भाव विह्वल करती आपकी भूमिका और दीपोत्सव के प्रथम दिन ( धन तेरस ) पर आपकी प्रस्तुति ख़ास हो गयी है। आभार सादर।

    जवाब देंहटाएं
  7. आदरणीय कुलदीप जी,
    शुभप्रभात,
    पिताजी साथ हो न हो उनका आशीष और एहसास सदैव आपके साथ है।
    बहुत सुंदर लिंकों का संयोजन सारी रचनाएँ बहुत अच्छी है।
    सभी पाठकगण को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    मुझे पाँच लिंकों के चर्चाकारों में शामिल करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार।
    विशेष स्नेहिल नमन यशोदा दी के बहुत सारे स्नेह के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय कुलदीपजी, त्योहार के समय अपनों की याद ना आए ये तो संभव ही नहीं । किंतु सामाजिक एवं धार्मिक क्रियाकलाप तो करने ही होते हैं । माता पिता सदैव आशीर्वाद रूप में अपने बच्चों के साथ ही रहते हैं ।
    आज श्वेता जी भी हलचल से जुड़ी हैं, उन्हें ढ़ेर सारी शुभेच्छाएँ ! सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं
  9. पिता हमेशा साथ होते हैं
    रहते हैं तब भी होते हैं
    नहीं रहते हैं तब भी होते हैं
    किसी तारे में होते हैं
    किसी दीपक में होते हैं
    पिता पास होते हैं
    हर रोशनी में होते हैं।

    नमन पिताजी को ।
    सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी ।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति
    सच बार-त्यौहार में अपनों की बड़ी याद आती है

    जवाब देंहटाएं
  11. कुलदीपजी,
    माँ के बिना पहली दीपावली है ! पर हर जगह उनके होने का अहसास हो रहा है !

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आपकी....
    त्योहार औऱ अपनों की याद...ये तो होता ही रहता है....बहुत ही हृदयस्पर्शी प्रस्तुति आपकी.....
    दीपावली की शुभकामनाएं....

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।