---

रविवार, 1 अक्टूबर 2017

807....रात का बहाना करके आँख नये ख्वाब रखता है

सादर अभिवादन
इस्तेकबाल करते हैं 
माह-ए-अक्टूबर का....
ये महीना इस्लामिक नव वर्ष का महीना कहलाता है
और बहुत ही पवित्र महीना मना जाता है... 
इसी पाक मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को
'आशुरा' कहते है। आशुरा के दिन हजरत रसूल के 
नवासे हजरत इमाम हुसैन को और उनके बेटे घरवाले और उनके सथियों (परिवार वालो) को करबला के मैदान में शहीद कर दिया गया था। और तभी से तमाम दुनिया के ना सिर्फ़ मुसलमान बल्कि दूसरी क़ौमों के लोग भी इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का ग़म मनाकर उनकी याद करते हैं। और ग्यारहवें दिन
बड़े दुखी मन से उन्हें पहले से नियत तालाबों में विसर्जित करते हैँ..
......
 मुलाहिज़ा फरमाएँ आज की चुनिन्दा रचनाओं के अंश...



छुपाकर गुलाब रखता है....श्वेता सिन्हा
खत्म नही होगा इनके सवालो का सिलसिला
वक्त पे छोड़ दो वही वाजिब हिसाब रखता है

फडफड़ाते है जब भी तेरे यादों के हसीन पन्ने
लफ्ज़ बोलते है जेहन कोई किताब रखता है


रो रोकर जीते है गैरों की महफिल में.....प्रीती श्रीवास्तव
हाथ जो बढ़ाया हमने खफा हो गये!
महफिल से हुई रूखसत बारात आधी!!

नजरे उठायी जो बहकने लगे कदम!
खता हो गई थी चांदनी रात आधी!!

कमबख्त निगाहों की इज़हार ए गुफ़्तगू थी या बस....पुष्पेन्द्र द्विवेदी
कमबख्त निगाहों की इज़हार ए गुफ़्तगू थी या बस ,
बिना इंकार किये उँगलियों में दुपट्टा घुमाते निकल गए ।

जुज़बी ही निगाहों में इज़हार हुए ,
रात चाँद तारों में कटी न ख़्वाबों के तलबगार हुए ।


नर्म कली बेटियाँ......अनहद गुंजन "गूँज"
शब्द-शब्द दर्द हार, सुनो मात ये गुहार,
गर्भ में पुकारती हैं, नर्म कली बेटियाँ॥

रोम-रोम अनुलोम, हो न जाए श्वाँस होम,
टूटे न कभी ये स्वप्न, चुलबुली बेटियाँ॥


नई सुबह.....रवीन्द्र सिंह यादव
नई  सुबह  का  इंतज़ार  है
जब  कुछ  न  हो  अखरने  के  लिये
प्यास  बुझ  जायेगी  अब
आई  है  बदली ज़मीं पर उतरने  के  लिये।


मैं तुम्हारी अर्धांगिनी.....#ये मोहब्बतें (अभी)
अब तक 
तुम्हारी परछाईं बनकर 
जिया है हर लम्हा,
तुम्हारे पास मगर दूर रहकर
तय किया है हर सफर।
तुम्हारी तन्हाइयों से लिपटकर

अनुत्तरित प्रश्न सा.....मनीष के.सिंह
कभी मैं किसी की जिन्दगी का अनिवार्य प्रश्न नहीं रहा 
जिसका का उत्तर लिखना जरूरी ही होता है
हालाकि बहुत जगह मैं वैकल्पिक प्रश्न सा रहा



अब बस...
आदेश दें यशोदा को









8 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात..
    एक और सुगठित संकलन
    सादर....

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात।
    सुन्दर भूमिका के साथ तरोताज़ा करती रचनाओं से सजा ख़ूबसूरत रविवारीय अंक।
    बधाई। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  3. उषा स्वस्ति..
    बढिया हलचल, सभी रचनाकारों को बधाई..
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा लिंक संकलन सुन्दर प्रस्तुतिकरण....

    जवाब देंहटाएं
  5. शुभ संध्या दीदी
    नमन..
    कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं आप
    सारे काँटे चुनती जा रही हैं मेरी राह के
    आभार..
    आदर सहित

    जवाब देंहटाएं
  6. Waahhh। बहुत ही मोहक हलचल। ख़ूबसूरत प्रस्तुतियां। सभी रचनाकारों को बधाइयाँ।

    जवाब देंहटाएं
  7. बेहतरीन रचनाओं से सजा अंक हलचल का । सादर धन्यवाद यशोदा दीदी । हार्दिक बधाई सभी रचनाकारों को।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।