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शुक्रवार, 21 जुलाई 2017

735..पाठकों की पसंद...पाठिका हैं श्रीमती श्वेता सिन्हा

सादर अभिवादन..
आज फिर से पाठकों की पसंद..
पाठिका हैं श्रीमती श्वेता सिन्हा
वो लिखती भी अच्छा हैं और
पढ़ती भी अच्छा हैं
देखिए देवी श्वेता की पसंदीदा रचनाओं के अंश..

कुछ लोग, कुछ लोग कहते हैं
मुझे मजहब का इल्म नही
कि मै अपने घर में
गीता औ कुरान रखता हूँ

कौन जाने कैसे पूरा करेंगे, वे अपना सफर।
इधर  किश्ती  बदलते हैं, उधर किनारा बदल लेते हैं।। 

रंग बदलना तो कोई गिरगिट, आदमजात से सीखे।
इधर चेहरा बदलते हैं, उधर मोहरा बदल लेते हैं लोग।।

ये नया ब्लॉग है..पहली बार पांच लिंकों का आनन्द में
बादलों के टूटने से
पा गई ये धरा
'जल'
रात के इस बीतने से
पा गई ये सृष्टि
'कल'।
डूबकर सूरज ने दे दी
निशा की शीतल विभा
चोट खा माटी ने जन्मी
फसल की ये हरितमा।।

सोच मत तू है धरा ,पंख तो फैला ज़रा
उड़ जा आसमान में ,विश्वास से भरा -भरा
देख  मत  यूं  मुड़ के  तूं ,  लौटने के वास्ते
क़िस्मत को कर ले तू बुलंद ,कठिन हैं ये रास्ते
बना ले ख़ुद को क़ाबिले ,लोगों के मिसाल की
अमिट लक़ीर खींच दे ,ब्रहमांड में खरा -खरा   

ख़्वाब पहलू से
उठकर चल दिए,
जागती रहेंगी
तमन्नाएँ रातभर सोने के बाद।

एक छोटी सी लम्बी कहानी..
राजेन्द्र, उसकी माँ ललिता हमारे स्कूल में ही आया का काम करती थी। एक दिन वह अपने चार-पांच साल के बच्चे का पहली कक्षा में दाखिला करवा उसे मेरे पास ले कर आई और एक तरह से उसे मुझे सौंप दिया। वक्त गुजरता गया। मेरे सामने वह बच्चा, बालक और फिर युवा हो बारहवीं पास कर महाविद्यालय में दाखिल हो गया। इसी बीच ललिता को तपेदिक की बीमारी ने घेर लिया। पर उसने लाख मुसीबतों के बाद भी राजेन्द्र की पढ़ाई में रुकावट नहीं आने दी। उसकी मेहनत रंग लाई, राजेन्द्र द्वितीय श्रेणी में सनातक की परीक्षा पास कर एक जगह काम भी करने लग गया। वह लड़का कुछ कहता नहीं था,

चलते-चलते राह भटकती हुई ..यहां ठहर गई ये रचना

"अनजान रास्ते "......अर्चना सक्सेना
आँधी भी है तूफान भी है
और आग का दरिया भी है
दुआ है अब खुदा से यही 
इन सबको पार कर सकें
ये कैसे हैं अनजान रास्ते 
जिस ओर हम हैं बढ़े चले


ये आज की अंतिम पसंद....

उसके पन्नों में 
ले जा जाकर 
खबरें अपनी 
विज्ञापन अपने 
अपने धन्धों के 
ना सरे आम करें 

‘उलूक’ 
की आदत है 
दिन के अंधेरे में 
नहीं देखने के 
बहाने लिखना 

काफी उम्दा है श्वेता देवी की पसंद
दाद देती हूँ उनकी पसंद को
सादर..






16 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात....
    क्या ग़ज़ब की पसंद है आपकी
    आभार... और आइएगा
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार दी हृदय से आपका । आपके अपार स्नेह सहयोग और मार्गदर्शन के लिए दी हृदय से सदैव आभारी रहेगे हम।
      सादर आभार दी।

      हटाएं
  2. बेहतरीन प्रस्तुति। श्वेता जी की पसंद में विविधता का समावेश है। पाठकों की पसंद का आज का अंक अपने आप में खास बन चुका है। बेहतर होता आज यहां एक रचना श्वेता जी की भी यहां होती। बधाई सुंदर प्रस्तुतीकरण के लिए। आभार सादर। सभी चयनित रचनाकारों को बधाई। शुभकामनाएं। मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात दीदी
    विभिन्न रंगों से सजी आज पाठकों की
    पसंद एक नई दिशा देती है रचनाकारों को
    कि वे अवसर का लाभ उठायें अपनी पसंद की रचनायें
    भेजकर। यह मंच उन्हें एक नई दिशा देती है
    आदरणीय श्वेता जी को हार्दिक बधाई इस सराहनीय प्रयास हेतु।
    आभार ,"एकलव्य"


    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!क्या बात है..
    बढिया लिकों के साथ सुंदर प्रस्तुति
    श्वेता जी को हार्दिक बधाई
    धन्यवाद..

    जवाब देंहटाएं
  5. आनंद ही आनंद....
    बहुत खूब....
    आभार....

    जवाब देंहटाएं
  6. श्वेता जी आप हमारे ब्लाब तक आयी, और मेरी रचना को हलचल में स्थान दिया , आपका बहुत आभार।
    वैसे मेरा नाम अपर्णा है, अनुपमा नही, फिर भी नाम गौण और स्नेह प्रमुख है। धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी,बहुत स्वागत है आपका अपर्णा जी,माफी चाहेगे स्पेलिंग मिस्टेक के लिए, अब वो त्रुटि दूर कर दी गयी है।
      जी धन्यवाद आपका बहुत।

      हटाएं
  7. सुन्दर प्रस्तुति है बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति श्वेता जी और आभार भी 'उलूक' के सूत्र को जगह देने के लिये । कल ब्लॉगर काम नहीं कर रहा था इसलिये नहीं आ पाया ।

    जवाब देंहटाएं
  9. चुनिंदा रचनायें
    बहुत सुंदर संकलन

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सुन्दर संकलन ,बढिया प्रस्तुतिकरण...

    जवाब देंहटाएं

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