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सोमवार, 10 जुलाई 2017

724.....''लेखनी की सार्थकता''

'लेखनी' एक क्रांतिकारी शब्द जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में एक नवचेतना का आह्वाहन किया। साहित्यकारों ने इस स्वतंत्रता के जश्न में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया,कई ने जेलों के दर्शन किए ,कितनों के कलम  रूपी अस्त्र छीन लिए गये ,किन्तु लेखक ! प्रवृत्ति से हठी कहाँ मानने वाला
कलम चली तो नदी की धार बनकर
ये हमारा अतीत !
संभवतः युवा वर्ग से नाता रखने वाला 'लेखक' भूल चुका है
स्वप्नों व जीवन के उधेड़-बुन में फँसा !
आज रचनायें तो अवश्य पढ़ता हूँ किन्तु 'आत्मा' उसी सच्चे 'लेखक' व कवि की तलाश
में भटक रही है।
संभवतः कुछ परछाईयाँ दिख ही जाएं
'मुंशी जी'
  'महाप्राण'
        'दुष्यंत कुमार'
जैसे देश को समर्पित राष्ट्र निर्माताओं की !
यह तलाश आज भी ज़ारी है
''पाँच लिंकों का आनंद'' 
परिवार को, तो चलिये इस क्रांतिकारी अंक का आगाज़ करते हैं
सादर अभिवादन


''बदचलन होती हैं कुछ कलमें चलन के खिलाफ होती हैं''
वर्तमान ब्लॉग जगत में इस लेखक को क्रांतिकारी लेखक की उपमा देना संयोग नहीं ,इनकी प्रबल लेखनी इस कथन का प्रमाण है
आदरणीय ''सुशील कुमार जोशी'' 
कहीं किसी 
किताब में 
नहीं होती हैं 

चलन में 

होती हैं 
कुछ पुरानी 
चवन्नियाँ 

और 

''फिर बसंत आना है''

'कहते हैं,एक कवि अपनी पहचान नहीं खो सकता' परिस्थितियां चाहे जैसी हों, आम जन भले ही उसके बदले स्वरुप को लेखक की छवि से हटकर देखता हो किन्तु कवि मन आज भी उसे वर्तमान की क्रांतिकारी रचनाओं का प्रवर्तक स्वीकार करता है
आदरणीय "कुमार विश्वास'' जी की रचना


पुरवा के दामन पर दाग़ बहुत गहरे हों
सागर के माँझी मत मन को तू हारना
जीवन के क्रम में जो खोया है, पाना है

''बेक़सूर''
कहते हैं कुछ शब्द दिखने में भले ही लघु हों किन्तु उनकी व्याख्या एक बुद्धिजीवी व्यक्ति करे तो उसके अर्थ हमें समस्त ब्रह्माण्ड के दर्शन करा सकते हैं 
आदरणीय "श्याम कोरी 'उदय' जी की रचना


कुछ पुलिस के भेष में थे,
कुछ जज बने बैठे थे,

क्षमा करें,यदि चढ़ा न पायें, अर्ध्य देव को,मेरे गीत - ''सतीश सक्सेना''

आदरणीय "सतीश सक्सेना" जी की रचना


सब कहते, ईश्वर लिखते ,
है,भाग्य सभी इंसानों का !
माता पिता छीन बच्चों से
चित्र बिगाड़ें, बचपन का !
कभी मान्यता दे न सकेंगे,
निर्मम रब को, मेरे गीत !
मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते, सर न झुकाएं मेरे गीत ! 

  ''सूखा पेड़''

एक अनुभवी मनुष्य इस संसार से जाते वक़्त भी समाज को बहुत कुछ देकर जाता है 
आदरणीय ''साधना वैद" जी की रचना 

संकुचित होते विहग भी बैठने में डाल पर 
पड़ न जाए काल की दृष्टि सुखी संसार पर ! 

है झुलाया जिनको वर्षों लोग वो डरने लगे 
टूट ना जाएँ मेरी सूखी भुजा कहने लगे ! 

   श्री  गुरुवै   नमः  --------  गुरु  पूर्णिमा  पर  विशेष---   

न जाने कितनी बार इस प्रतिभा संपन्न  'लेखिका' का ब्लॉग मैंने ढूँढा किन्तु पा न सका ,कितनी बार 'शब्द नगरी' पर इनकी रचनायें पढ़ी, मन प्रसन्न हो गया। आज इनका लेख अपने परिवार में शामिल करने पर अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है ,गुरु की महत्ता पर प्रकाश डालती 
आदरणीय "रेणु बाला" जी का 'लेख'  


 सब्दहिं-सब्द भयो  उजियारो -- सतगुरु  भेद बतायो |
ज्यौ  कुरंग  नाभि  कस्तूरी  , ढूंढत   फिरत   भुलायो ||


  अवलोकन.....
मेरी आदरणीय ''दीदी'' का कथन पूर्णतया सत्य है कभी मैंने भी यह महसूस किया है जब मेरी रचनाओं को कुछ पत्रिकाओं के सम्पादकों ने यह कहते हुए छापने से मना कर दिया कि आपकी रचना किसी विशेष वर्ग को हतोत्साहित करतीं हैं ,जबकि कुछ अन्य लेखक जिन्होंने बड़े-बड़े रचनाकारों के साथ काव्य पाठ किया था ,केवल प्रसिद्ध रचनाकारों की संगति उनके विशिष्ठता का प्रमाण कैसे हो सकता है ? ऐसा दोमुंहा व्यवहार साहित्य जगत को कहाँ ले जायेगा ! आप विचार कर सकते हैं। इस सत्य का अनावरण करती 

आदरणीय ''यशोदा अग्रवाल" जी की रचना  


ढूंढने का भाव, कवि का
पर नहीं आता है समझ
फिर देखता है
उतार-चढ़ाव
शब्द-विन्यास
प्रेम भाव....
और मर्म साथ में
धर्म भी..

    ''वीर सपूत''
इस अंक के क्रांतिकारी समापन की ओर बढ़ते हुए 
आदरणीय "विभा ठाकुर" जी की रचना  


 तू अपना पहला वार कर
हिरण सी तुझमे फुर्ती हो
हाथियों का बल हो
भुजा-भुजा फड़क रही

अंत में ''मेरी भावनायें'' आपकी प्रतीक्षा में 

गिरतें हैं, जो अश्रु मेरे 
व्यक्त नहीं कर पाऊँगा 
तेरे मिथ्या शब्दों पे  
रक़्त नहीं बहाऊँगा !
 याद करूँगा ! उनको 
( 'महाप्राण' ,'मुंशी जी' 'दुष्यंत कुमार' ) 
प्रतिक्षण 
सार्थक उन्हें बताऊँगा !

"एकलव्य" 
    

21 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात....
    बेहतरीन प्रस्तुति
    सुंदर व पठनीय रचनाओं का चयन
    आभार
    सादर

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  2. सुंदर प्रस्तुति, पठनीय रचनाएँ और आपके लेखनी की सार्थकता की खोज करते विचार। आपसे पूर्ण सहमत नहीं किंतु आपके विचारों से प्रभावित अवश्य।
    शुभकामनाएँ ।।

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    उत्तर
    1. आदरणीय, श्वेता जी 'मतभेद' एक प्रगतिशील समाज का आवश्यक अंग है जो एक 'स्वस्थ्य राष्ट्र' का निर्माण करता है ,आपके विचारों का हृदय से स्वागत है ,आभार "एकलव्य"

      हटाएं
  3. वाह! एकलव्यजी, कमाल का संकलन ! बधाई!!!

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  4. शुभ प्रभात!
    आज का विशेषांक मंथन के नये आयाम प्रस्तुत कर रहा है. बेहतरीन लिंक संकलन. आभार सादर.

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  5. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...।उम्दा संकलन....

    जवाब देंहटाएं
  6. 'लेखनी' एक क्रांतिकारी शब्द ...इस शब्द को उनवान विशेष में सीमित करना असंभव है..
    आज की प्रस्तुति उम्दा..
    अपने विचारों को बहुत अच्छी तरह ढाला है।
    धन्यवाद।

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  7. लाजवाब लिंक संयोजन ! बहुत सुंदर आदरणीय ।

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  8. आज का संकलन बहुत ही बेहतरीन ।मेरा तो मानना है कि
    एक सच्चा लेखक बड़ा समाज सुधारक होता है
    उसकी लेखनी से क्रांति के भाव स्वतः ही ही फूटते हैं ,लेखक अपने विचारों के प्रवाह को शब्दों के माध्यम से अपने ढंग से समाज के सामने प्रस्तुत करता है ।
    लेखक का हठी होना भी स्वाभाविक हो जाता है ,क्योंकि वह अपनी लेखनी के माध्यम से वो क्रांति लाकर रहता है जिससे एक सभ्य समाज की स्थापना में मददगार हो ।

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  9. बहुत ही सुन्दर सार्थक सारगर्भित सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को भी सम्मिलित किया आपका हृदय से बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार एकलव्य जी !

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  10. आभार के साथ आपको हार्दिक मंगलकामनाएं

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  11. प्रिय एकलव्य जी -- आप्क्के सार्थकता की तलाश में संजोये इस संकलन को पढ़कर और इसका हिस्सा बन कर मन अभिभूत है | आपके उत्साहवर्धन करते शब्दों के लिए मेरे पास प्रतिउत्तरमें शब्द नहीं है फिर भी आपकी इस स्नेहासिक्त भावना का ह्रदय तल से आभार व्यक्त करती हूँ |आपके महत्व ने साधारण लेख को बहुत महत्वपूर्ण बना दिया | मैं बहुत आभारी हूँ उन सभी सुधीजनों की जिन्होंने लेख को पढ़ा और उसका मर्म समझा--

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  12. आदरणीय साधना वैद और यशोदा जी के ब्लॉग पर टिपण्णी नहीं हो पा रही -- अतः पांच लिंक के माध्यम से उन्हें अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करती हूँ |

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  13. सुन्दर प्रस्तुति ध्रुव जी। 'उलूक' की बकबक को बहुत ज्यादा भाव दे दिया आपने। ऐसा कुछ नहीं है। ब्लाग जगत में बहुत से लोग बहुत अच्छा लिख रहे हैं। आभारी हूँ स्थान देने के लिये और आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ पर इतने के लायक भी नहीं हूँ।

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