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बुधवार, 24 मई 2017

677....संभल जा रे नारी ....फिसलना छोड़ नारी ....


जय मां हाटेशवरी....

अब तक गुजारी जिंदगी, तुम्हारे साथ हंस कर,
बस अब यादे ही रह गयी, जीने का सहारा बनकर....
आप सभी का स्वागत है....
पेश है आज के लिये...कुछ चुनी हुई कड़ियां....

वजह ... बे-वजह जिंदगी की ... -
जिंदगी के अंधेरे कूँवे में फिसलते लोगों के सिवा     
नज़र नहीं आ रही पर ज़मीन मिलेगी पैरों को
अगर इस कशमकश में बचे रहे
फिसलन के इस लंबे सफर में
जानी पहचानी बदहवास शक्लें देख कर
मुस्कुराने को जी चाहता है

माँ को भी जीने का अधिकार दे दो
अन्तिम बात, अब जब हम सारे काम खुद कर सकते हैं तो क्या लड़का और क्या लड़की दोनों को ही पेट भरने के और जीने के सारे ही काम सिखाइये। माँ को अनावश्यक महान मत बनाइये, वह भी जीवित प्राणी है, उसे भी कुछ चाहिये। माँ पर लिखने से पहले यह सोचिये कि क्या किसी माँ ने भी अपने बेटे पर लिखा कि उसने माँ का जीवन धन्य कर दिया हो। जब संतान बड़ी हो जाती है तब माँ का कर्तव्य पूरा हो जाता है, इसलिये परस्पर सम्मान और प्रेम देने की सोचिये ना कि खुद की नाकामी छिपाकर माँ को काम में जोतिए।

दोहे
अधिक मिले पहले मिले, किस्मत वक्त नकार।
इसी लालसा में गये, रविकर के दिन चार।।

हमको सत्ता-धर्म निभाना अच्छा लगता है
आज अदीबों को गरियाना अच्छा लगता है,
कहने को हम कवि की दम हैं बाल्मीकि के वंशज पर
कवि-कुल को गद्दार बताना अच्छा लगता है |

कर्नाटक की काशी – महाकूटा शिव देवालय
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मंदिर परिसर में एक कुआं भी है जिसे लोग पापविनाशन तीर्थ कहते हैं। विष्णु पुष्करिणी के पास ही एक अनूठा शिवलिंगम है जिसमें पांच अलग आकृतियां बनी हुई हैं।
इसे पंचलिंगम कहते हैं।

फिसलना छोड़ नारी ....
मेरी सहपाठी के अनुसार शादी को २० वर्ष हो गए और उसका पति अब उसका व बच्चों का कुछ नहीं करता और साथ ही यह भी कहता है कि यदि मेरे खिलाफ कुछ करोगी तो कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि अगर तुमने मुझे जेल भी भिजवाने की कोशिश की तो देख लेना मैं अगले दिन ही घर आ जाऊंगा .ऐसे में एक अधिवक्ता होने के नाते जो उपाय उसके पति का दिमाग ठीक करने के लिए मैं बता सकती थी मैंने बताये पर देखो इस भारतीय नारी का अपने पति के लिए और वो भी ऐसे पति के लिए जो पति होने का कोई फ़र्ज़ निभाने को तैयार नहीं, उसने वह उपाय मानने से इंकार कर दिया क्योंकि उसे केवल पति से भरण-पोषण चाहिए था और उसके लिए वह कोर्ट के धक्के खाने को भी तैयार नहीं थी

''अभी तक सो रहे हैं जो ,उन्हें आवाज़ तो दे दूँ ,
बिलखते बादलों को मैं कड़कती गाज तो दे दूँ .
जनम भर जो गए जोते, जनम भर जो गए पीसे
उन्हें मैं तख़्त तो दे दूँ ,उन्हें मैं ताज़ तो दे दूँ ''

धन्यवाद।














11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात.....
    सुरम्य रचनाएँ
    सादर

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  2. बेहतरीन सूत्रों से सजी खूबसूरत हलचल ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर हलचल ...
    आभार मुझे शामिल करने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर भजन के साथ सुन्दर हलचल प्रस्तुति हेतु आभार!

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी उम्दा रचनाएं.....
    बहुत ही सुन्दर....

    जवाब देंहटाएं
  6. शानदार प्रस्तुति ,आभार। "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं

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