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शुक्रवार, 12 मई 2017

665....जमीन पर ना कर अब सारे बबाल सोच को ऊँचा उड़ा सौ फीट पर एक डंडा निकाल

सादर अभिवादन

ज्येष्ठ मास का दूसरा दिन
ऋतु वर्षा का आगमन 
बस कुछ ही दिनों में
ऊमस के दिन..
सारा बदन चिपचिपा फिर भी
कहीं चिपकने का मन न करे

                        .............मन की उपज

चलिए इस अंक की पसंदीदा रचनाओं की ओर...

जाने किस मोड़ पे
हाथ छोड़ गयी,
शरारतें वो बदमाशियाँ
जाने कहाँ मुँह मोड़ गयी,
सतरंगी ख्वाब आँखों के,
आईने की परछाईयाँ,
अज़नबी सी हो गयी,

बीती रात, 
झकझोर दिया इक ख्याल ने 
उठ बैठी
अंधेरी काली रात में 
चहुँ ओर सिर्फ अन्धकार, 
बुझ गये सारे दीये, 
अरे, कोई टिमटिमा भी नहीं रहा, 


दुख का कारण....लघु कथा
नौकर ने अपनी ओढ़ी हुई चादर चोर को दे दी और बोला, इसमें बांध लो। उसे जगा देखकर चोर सामान छोड़कर भागने लगा। किन्तु नौकर ने उसे रोककर हाथ जोड़कर कहा, भागो मत, इस सामान को ले जाओ ताकि मैं चैन से सो सकूँ। इसी ने मेरे मालिक की नींद उड़ा रखी थी और अब मेरी। उसकी बातें सुन चोर की भी आंखें खुल गईं।


तू मेरे ब्लाग पे आ.....आनन्द पाठक
तू क्या लिखता रहता है , ये  बात ख़ुदा ही जाने 
मैने तुमको माना है  , दुनिया  माने ना माने 
तू इक ’अज़ीम शायर’ है ,मैं इक ’सशक्त हस्ताक्षर 
यह बात अलग है ,भ्राते ! हमको न कोई पहचाने



लहरा सोच 
को हवा में 
कहीं दूर 
बहुत दूर 
बहुत ऊँचे 

खींचता 
चल डोर 
दूर की 
सोच की 
बैठ कर 
उसी डन्डे 
के नीचे 
अपनी 
आँखें मींचे । 

आज्ञा दें यशोदा को..
सादर






9 टिप्‍पणियां:

  1. ढ़ेरों आशीष व असीम शुभकामनाओं के संग शुभ दिवस छोटी बहना 💐😍
    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  2. तार्किक संकलन एवं बहुत सुन्दर । आभार। "एकलव्य"

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति यशोदा जी आभार 'उलूक' के सूत्र को जगह देने के लिये। 'उलूक' का डंडा वो नहीं हैं जो आपने चित्र में दिखा दिया है। 100 फीट का जमीन पर गड़ा सीधा और खड़ा है :) समझिये जरा ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय भैय्या जी
      थोड़ा समझ का फेर हो गया
      सो पुलिसिया डण्डा लगा दी
      वो झण्डे वाला खम्भा है...
      बदल देती हूँ

      हटाएं
  4. और दूसरी बात जो मैं कहना चाह रहा था वो थी आनन्द पाठक जी की पोस्ट के बारे में।मैं सोच रहा था आपको लिंक भेजने की पर आपने मेरे मन की बात पढ़ ली :)

    जवाब देंहटाएं

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