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शुक्रवार, 5 मई 2017

658....समय, समय की कद्र करने वालों का साथ देता है

सादर अभिवादन
पिछले पन्ने पर हिन्दू-मुसलमान की बात की गई
सही की गई...

मैंनें भी कहीं पढ़ा है....

इंसानियत बची रही
तो नष्ट हो जाएगा धर्म
इसलिए घोंप दें छुरा
इंसानियत की पीठ पर
ताकि दोबारा सिर ना उठा सके इंसानियत
शैतानियत की ज़मीन पर

चलिए आज की चुनिन्दा रचनाओं पर एक नज़र...

सभी को चाहिए कहीं न कहीं कुछ पल 
सुकून भरा, कुछ महकते हुए दिन 
कुछ खिलती हुईं रातें, कुछ 
ख़ालिस अपनापन, कुछ 
ख़ामोश निगाहों की 
बातें। 

आज़ाद हैं यहाँ सभी’ उल्फत ही’ क्यूँ न हो 
पावंदी’ भी को’ई नहीं’ तुहमत ही’ क्यूँ न हो |

मिलते सभी गले ही’ अदावत ही’ क्यूँ न हो 
दिल से नहीं हबीब मुहब्बत ही’ क्यूँ न हो | 


तुम बिन...श्वेता सिन्हा
जलते दोपहर का मौन
अनायास ही उतर आया
भर गया कोना कोना
मन के शांत गलियारे का
कसकर बंद तो किये थे
दरवाज़े मन के,


कॉपी राईट....वन्दना गुप्ता
इंतज़ार पर हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है 
कह, नहीं सिद्ध किया जा सकता कुछ भी 
हाँ , कह सकें गर इंतज़ार पर हमारा कॉपी राईट है 
तो वजन बढ़ता है 
एक तीर से कई शिकार करता है 


तुम्हारी बज़्म में मेरी अब जगह ही नहीं....स्वप्नेश चौहान
तुम्हारी बज़्म में मेरी अब जगह ही नहीं,
अदब में झुकने का मतलब नहीं, कि अना ही नहीं...

शिकवे भी बहुत थे, बहुत थी तारीफ़ें
खामोशियाँ चीखती रहीं पर तूने कभी सुना ही नहीं..




दृष्टिकोण - रहस्यमय भविष्य....रश्मि प्रभा
शाहजहाँ कहाँ कैद था
इस बात से अधिक महत्वपूर्ण है
वह किस तरह निहारता था वहाँ से
ताजमहल को !
इंसान की फितरत
अतीत वर्तमान से परे
एक अनोखा रहस्यमय भविष्य है
जिस पर अनुसन्धान ज़रूरी है  !!!  ...

समय सम्हाल कर....डॉ. सुशील कुमार जोशी


गुरु मत बनो 
‘उलूक’ 
समय का 

अपनी 
घड़ी सुधारो 
आगे बड़ो 
या पीछे लौट लो 

किसी को 
कोई फर्क 
नहीं पड़ता है 

आज्ञा दें यशोदा को
सादर





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