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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

592...अभी इस नाम की पहचान बनाना बाकि है

जय मां हाटेशवरी...

आज फरवरी का अंतिम दिन है...
नव वर्ष भी पुरानी हो गयी...
हमारा ये ब्लौग भी...
600 दिनों का होने वाला है...
पाना है जो मुकाम वो अभी बाकि है,
अभी तो आये है जमी पर ,आसमां की उड़ान  अभी बाकी है…
अभी तो सुना है सिर्फ लोगों ने हमारा  नाम,
अभी इस नाम की पहचान बनाना बाकी है
अब पेश है...आज की कुछ चयनित कड़ियां...


फागुन आते ही-
सांध्य सुन्दरी के आते ही
आदित्य लुकाछिपी खेले 
बालियों के पीछे से
खेले खेल संग उनके
आसमा भी हो जाए सुनहरा
साथ उनके खेलना चाहे
अपनी छाप छोड़ना चाहे

भली करेंगे राम, भाग्य की चाभी थामे-
भली करेंगे राम, भाग्य की चाभी थामे।
निश्चय ही हो जाय, सफलता तेरे नामे।
तू कर सतत प्रयास, कहाँ प्रभु रुकने वाले।
भाग्य कुंजिका डाल, कभी भी खोलें ताले।।

चाहत ...-
आज मरुस्थल का वो फूल भी मुरझा गया
जी रहा था जो तेरी नमी की प्रतीक्षा में
कहाँ होता है चाहत पे किसी का बस ...

अनाथ – सनाथ
सब कुछ अच्छी तरह से चल रहा था ! दिशा छ: वर्ष की हो गयी थी ! तभी उसके जीवन में जैसे भूचाल आ गया ! वत्सला को ब्लड कैंसर हो गया और वह नन्ही दिशा को बिलखता छोड़ भगवान के पास चली गयी ! पत्नी के विछोह में सौरभ दुःख में डूब गया ! दिशा की ओर से भी वह लापरवाह रहने लगा ! नन्ही दिशा सनाथ होते हुए भी एक बार फिर अनाथ हो गयी !
मौके का फ़ायदा उठा सौरभ के ऑफिस की एक सहकर्मी वन्दना सहानुभूति और संवेदना के पांसे चलते हुए सौरभ के दिल में घर बनाने लगी ! हर ओर से बिखरे सौरभ को वन्दना का साथ अच्छा लगने लगा ! और एक दिन उसने वन्दना के सामने विवाह का प्रस्ताव रख दिया ! वन्दना ने हाँ कहने में पल भर की भी देर न लगाई ! उसके सामने रईस खानदान के इकलौते वारिस का प्रस्ताव आया था जिसके पास इंदौर और जबलपुर में अकूत संपत्ति थी ! दिशा से पीछा छुड़ाने का हल उसके पास था कि वह उसे होस्टल भेज देगी और उसने यही शर्त सौरभ के सामने भी रखी थी जिसे सौरभ ने तुरंत स्वीकार कर लिया ! सौरभ ने अपने माता-पिता को बुला कर वन्दना के साथ विवाह करने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी ! न चाहते हुए भी सहमति देने के अलावा उनके पास कोई और विकल्प नहीं था !

कैसी यह मनहूस डगर है
नहीं लौटता जो भी जाता। 
कंकरीट के इस जंगल में,
अपनेपन की छाँव न पायी।
आँखों से कुछ अश्रु ढल गये,
आयी याद थी जब अमराई।
पंख कटे पक्षी के जैसे,
सूने नयन गगन को तकते।
ऐसे फसे जाल में सब हैं,
मुक्ति की है आस न करते।

धक्का
मुझे अपने आप से, अपनों से
किये सारे वादे
जो अधूरे हैं पूरा करना है
दुनियाँ की तवारीख़ में
मौज़ूदगी दर्ज़ करनी है
दुनियाँ के आँसुओं को मायूसी से खींचकर
खुशियों और ख़्वाबों के टब में डुबोना है

औकात...
तभी ,इठलाती
इक ब्रांडेड जूती बोली
यहाँ रहोगे तो ऐसे
ही रहना होगा दबकर
देखो ,हमारी चमक
और एक तुम
पुराने गंदे ...हा....हा....
फिर एक दिन
पुरानी जूतों की शेल्फ
रख दी गई बाहर
रात के अँधेरे में
चुपचाप पुराने चप्पल
निकले और
धुस गए अपनी
पुरानी शेल्फ में
अपनी "औकात"
जान गए थे ।
  

आज बस इतना ही...
धन्यवाद।















सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

591...यूँ कहिये - एक अनकहे भय में गुजरती है

सादर अभिवादन
आज धर्म संकट खड़ा हो गया  था
शनि की रात बारह बजे तक देवी जी जाग गई
रविवार की प्रस्तुति जो बनानी थी
सो सुबह मैंनें कहा कि आराम करिए
और भाई कुलदीप जी को कहा 
कि कुछ रचनाओं के लिंक डेशबोर्ड में रख दें
प्रस्तुति में बना दूँगा
सो देखिए मिली-जुली पसंद....

बोलने से घबराहट होती है
किस शब्द को कैच किया जाएगा
किसका पोस्टमार्टम होगा
कोई ठिकाना नहीं
न चुप्पी में चैन
न बोलने में चैन
पूरी उम्र समझौते में
यूँ कहिये -
एक अनकहे भय में गुजरती है
यदि आप ज़रा सा भी
दूसरों का ख्याल करते हैं तो  ....


केन्द्र में मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने में अभी तीन महीने बाकी हैं। अभी से सन 2019 के चुनाव को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं। राष्ट्रीय सवाल दो तरह के हैं। एक, राजनीतिक गठबंधन के स्तर पर और दूसरा मुद्दों को लेकर। सबसे बड़ा सवाल है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ क्या कहता है? लोकप्रियता बढ़ी है या घटी?

सुनने में आपको भले ही यह बहुत अजीब लगे कि आखिर फेसबुक के द्वारा हमे लोन कैसे मिल सकता है. फेसबुक कोई बैंक थोड़े ही ना है जो हमे लोन देगा। फेसबुक भले ही बैंक ना हो लेकिन ऑनलाईन लोन  दिलाने में फेसबुक आपकी पूरी हेल्प करेगा। आइये अब देखते है कि आखिर हमे किस तरह फेसबुक के द्वारा ऑनलाईन लोन मिलेगा

सर्वत्र धन का, पद का, पशु का
साम्राज्य है,
यह कैसा स्वराज्य है?
धन, पद, पशु
भारत-भाग्य-विधाता हैं,


अपने बुनियादी अधिकारों के लिये नहीं लड़ सकते ? सबसे होशियार माने जाने वाले इंसान की सोच इतनी तंग और छोटी क्यों होती है माँ ? 
तुम बताओ माँ क्या कहीं कोई जगह ऐसी है जहाँ हम इस आतंकी इंसान के अत्याचारों से बच कर सुकून से रह सकें ? जहाँ यह स्वार्थी 
इंसान अपनी ज़रूरतों के लिये हमारी शांत सुकून भरी ज़िन्दगी में
खलल न डाल सके और मैं चैन से तुम्हारी गोद में सो सकूँ ?

बूझती अली अली उरि चलि गली गली सखी कलियाँ सँवार के होली में..,
कहँ छुपे मनहरिया  केसरिया साँवरिया  दुअरिया ढार के होरी में..,
अहो चाले है मराल कनक केसरी करताल,
स्याम राग संग धरे रंग थाल थाल,

दें इज़ाज़त दिग्विजय को
चलते- चलते एक अश़आर पेश है

एक मोअम्मा है, समझने का न समझाने का








रविवार, 26 फ़रवरी 2017

590.....कुछ लोग लोगों को उनके बारे में सब कुछ बताते हैं

सादर अभिवादन
आज की ताजा खबर
विरमसिंह शादी के कार्यक्रम मे फसे हैं
तो.....मैं हूँ न..
चलिए चलते हैं आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर...

शब्द
आख़िर लौट कर आएँगे
ये मेरे पास एक दिन
आएँगे
मेरे कवि-मन के आँगन में
मरूस्थल बनी
मेरे मन की धरा पर
बरसेंगे रिमझिम

जब तुम खुद को बिल्कुल खाली समझना,
जब तुम्हे लगे कि जैसे,
कुछ है ही नही तुम्हारे लिये..
तब तुम मुझे पढ़ना,

बरसों से जो साथ थे, अचानक बिछड़ गए,
जाने कहाँ से आए थे, कहाँ चले गए.

आसां नहीं होता दिल की बात कह देना,
मैं सोचता ही रह गया,वे उठकर चले गए.

तुझे चाहा था.. मैंने उम्र भर ! 
ये हौसला भी तो कम न था ​!!​ ​
ए​क तेरे गम के.. सिवा मुझे ! 
मुझे ​​ ​ और कोई भी गम न था !! 


इंसानों से अलग 
कुछ अलग तरह 
के लोग सब कुछ होते हैं 
‘उलूक’ भगवान की पूजा 
करने से नहीं मिलता है मोक्ष 
कुछ लोगों की 
शरण में जाना पड़ता है 
आज के जमाने में 
भगवान भी उन्ही 
लोगों से पूछने 
कुछ ना कुछ आते हैं । 








शनिवार, 25 फ़रवरी 2017

589 ... माँ


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


स्त्री
ढ़ली
सूत्राली
स्नेह उर
खूँट आशीष
कर बलशाली
माँ की विरुदावली


  हेलो फ्रेंड्स


माँ पर नहीं लिखी जा सकती कविता



चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या और लोेग  मिशन समृद्धि



माँ मेरी माँ  Image result for माता पर कविता



   लंबे अंतराल के बाद




फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए

आखरी सलाम


विभा रानी श्रीवास्तव



शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

588...........देश प्रेम देश भक्ति और देश

सादर अभिवादन
आज महा शिवरात्रि है
पर  शिवालय नही है आज इस पन्ने में 
हाँ,  सचित्र राम लीला जरूर है..
वो भी विदेशी
आप भी देखिए....



बाली में रामलीला....हर्षवर्धन जोग
बड़ी हिन्दू जनसँख्या और लम्बे समय तक हिन्दू राज रहने के कारण बाली में बहुत से मंदिर हैं और रामलीला का भी चलन है. निचले नक़्शे पर नज़र मारें तो समझ में आता है की भारत से बर्मा, थाईलैंड, इंडोनेशिया और आसपास के देशों में काफी व्यापार चलता होगा. इसी व्यापार के साथ साथ रामायण और महाभारत भी पहुँच गई होगी. रामायण यहाँ 'केचक रामायण' के नाम से प्रचलित है.
( इस ब्लॉग में काफी से अधिक चित्र हैं कृपया ब्लॉक का अवलोकन करें)


फ़िराक गोरखपुरी से क्षमायाचना के साथ,,,गोपेश जायसवाल
गरज़ कि काट दिए ज़िन्दगी के दिन ऐ दोस्त,
वो तलुए चाट के गुज़रे, कि दुम हिलाने में.



मोहब्‍बत के अशआर.... ऱश्मि शर्मा
चूमकर पेशानी एक रात कहा था उसने
जैसी जिंदगी वैसी तू भी अजीज है मुझको
दस्‍तूर-ए-दुनि‍या से नावाकि‍फ़ ए दि‍ल
खाकर हजार ठोकरें अब भी सच समझता है इसे।।



प्यार..........डॉ छवि निगम
हाँ भूल चुकी हूँ तुम्हें
पूरी तरह से
वैसे ही
जैसे भूल जाया करते हैं बारहखड़ी
तेरह का पहाड़ा
जैसे पहली गुल्लक फूटने पर रोना
फिर मुस्काना


भटकने का सुख मामूली नहीं होता...प्रतिभा कटियार
नींदे किसी गठरी में कैद हैं कि 
नींदों की कीमत पर जाग मिली है, 
दोस्तों का साथ मिला है, 
प्यार मिला है... 
सुबह पर मेरा 
कोई अख्तियार नहीं, 
रात पर है... 


शब्दों में कैसे ढल पाए 
मधुर रागिनी तू जो गाए,
होने से बनने के मध्य 
गागर दूर छिटक ही जाए ! 

बात पते की..डॉ. सुशील जोशी

माफ करियेगा ’उलूक’ 
जानता है तेरे शहर में 
तेरे मोहल्ले में तेरे घर में 
इस तरह के जलवे 
हो भी और नहीं भी 
हो रहे होते हैं 
लिखने दे बबाल ना कर 
मत बता मुझे मेरे हाल 
मुझे पता है तेरे जैसे 
ना हो सकते हैं ना होंगे 

आज्ञा दें यशोदा को

















गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

587...वो मेरी गलतियां भूल जाते है... और मै उनकी मेहरबानियों को.."

जय मां हाटेशवरी...
"मैं और मेरे भोलेनाथ...
हम तो दोनों ही भुलक्कड़  है...
वो मेरी गलतियां भूल जाते है...
 और मै उनकी मेहरबानियों को.."
आप सभी को...
पावन शिवरात्री की अग्रिम शुभकामनाएं...
अब देखिये...मेरी पसंद...

इस बार गधों का लीडर था रामप्यारे जो कि महाराज धृतराष्ट्र की संगत में रहकर आरपार हो चुका था. रामप्यारे ने घोडों के लीडर से कहा - घोडों के लीडर जी.. ये सही
है कि हम गधे कभी घोडे नही बन सकते पर क्या तुममें से कोई एक भी गधा बन कर दिखा सकता है?
अब तो घोडों के अस्तबल में खामोशी पसर गई...सब हैरान परेशान...ऐसे घोडे क्या काम के? जो कभी वापस गधे  ही नही बन सकें? घोडों ने गधा बनने के लिये तुरंत अपनी
इमरजेंसी मीटिंग आहुत कर ली है जो शीघ्र ही होने वाली है.
इधर गधों के लीडर रामप्यारे की जय जय कार होने लगी....और इस जीत के शुभ अवसर पर गधों ने भी एक प्रीतिभोज का आयोजन कर डाला जिसमे खूब गुलाब जामुन, रसमलाई और
समोसे  खाये गये.
वो मेरी समुन्दर पी जाने की चाह थी 
जो ज़ख्म भरने का इंतज़ार भी न कर सकी
रेत को मुट्ठी में रख लेने का वहशीपन
जो समय को भी अपने साथ न रख सका 
भूल गया था की पंखों का नैसर्गिक विकास
लंबे समय तक की उड़ान का आत्म-विश्वास है
क्या समय लौटेगा मेरे पास ...

चूम लूं अंति‍म बार
अपने प्रि‍य का गरदन
और कह जाऊं
जी न पाएंगे तुम बि‍न
कि‍ वजूद सारा
डूबा है प्रेम में
और कुछ बचा नहीं मेरे अख्‍़ति‍यार में
अब तुम हो...चंद सांसे हैं
अधरों पर अंकि‍त है
एक सुहाना अहसास
मोगरे के फूलों सा महकता
मन का आंगन
बस तेरी याद....तेरी याद
फिर कुछ भी
कहने लिखने
के लिये नहीं सूझा

बेवकूफ
आक्टोपस
आठ हाथ पैरों
को लेकर तैरता
रहा जिंदगी
भर अपनी

क्या फायदा
जब बिना
कुछ लपेटे
इधर से उधर
और
उधर से इधर
कूदता रहा
यह औरत ही है जो अपने गर्भ मैं ९ महीने अपने बच्चे को रखती है और जन्म होने पे उस बच्चे को दूध पिलाना होता है| ऐसे मैं बच्चा अपनी माँ से लगा रहता है और वो
जैसी  परवरिश करती है वैसा बनता चला जाता है. यह दोनों काम किसी मर्द के लिए करना संभव नहीं यह सभी जानते हैं.ऐसे मैं इस बात कि जिद करना कि हम घर को नहीं संभालेंगे
,बस बाहर जा के धन कमायेंगे कहाँ तक उचित है?

मर्द को ना गर्भ मैं बच्चे रखने हैं, ना दूध पिलाना है|  मर्द शारीरिक रूप से भी अधिक मज़बूत है तो यदि वो बाहर के काम करे, मजदूरी करे, नौकरी करे ,व्यापार करे
तो इसे  ना इंसाफी तो नहीं कहा जा सकता? यहाँ ना तो किसी गुलामी की बात है और ना ही किसी ज़ुल्म कि बात है. यह बात   है पति और पत्नी के समझोते की जिसके नतीजे
मैं दोनों पारिवारिक सुख का अनुभव करते हुई सुखी जीवन व्यतीत करते हैं |
अब अंत में...
भूले-बिसरे पल
 ------


धन्यवाद।


बुधवार, 22 फ़रवरी 2017

586...ताकि नौ दिन तक तो उसका बेटा  भरपेट खा सकें...!!

जय मां हाटेशवरी...

"एक बेबस माँ ने नवरात्रों के उपवास रखे थे.......!
ताकि नौ दिन तक तो उसका बेटा  भरपेट खा सकें...!!"
रविवार से मन बहुत उदास है...
हमारे पास के गांव में...
एक शराबी बेटे ने...
कुलाहड़ी के तेज वार से...
अपनी बूहड़ी   मां की हत्या...
इस लिये कर दी की...
...मां ने उसे शराब के लिये पैसे न दिये...
अजात्मृतमूर्खेभ्यो मृताजातौ सुतौ वरम् ।
यतः तौ स्वल्प दुखाय, जावज्जीवं जडो दहेत् ॥
( अजात् ( जो पैदा ही नहीं हुआ ) , मृत और मूर्ख – इन तीन तरह के पुत्रों मे से अजात और मृत पुत्र अधिक श्रेष्ठ हैं , क्योंकि अजात और मृत पुत्र अल्प दुख ही
देते हैं । किन्तु मूर्ख पुत्र जब तक जीवन है तब तक जलाता रहता है । )
अब पेश है...आज के लिये...मेरी पसंद...


पौराणिक दृष्टि से लिंग के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और ऊपर प्रणवाख्य महादेव स्थित हैं । केवल लिंग की पूजा करने मात्र से समस्त देवी देवताओं की पूजा
हो जाती है । लिंग पूजन परमात्मा के प्रमाण स्वरूप सूक्ष्म शरीर का पूजन है । शिव और शक्ति का पूर्ण स्वरूप है शिवलिंग ।शिव के निराकार स्वरूप में ध्यान-मग्न
आत्मा सद्गति को प्राप्त होती है, उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है तात्पर्य यह है कि हमारी आत्मा का मिलन परमात्मा के साथ कराने का माध्यम-स्वरूप है,शिवलिंग
। शिवलिंग साकार एवं निराकार ईश्वर का ‘प्रतीक’ मात्र है, जो परमात्मा- आत्म-लिंग का द्योतक है । शिवलिंग का अर्थ है शिव का आदि-अनादी स्वरूप । शून्य, आकाश,
अनन्त, ब्रह्माण्ड व निराकार परमपुरुष का प्रतीक । स्कन्दपुराण अनुसार आकाश स्वयं लिंग है । धरती उसका आधार है व सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने
के कारण इसे लिंग कहा है । शिवलिंग हमें बताता है कि संसार मात्र पौरुष व प्रकृति का वर्चस्व है तथा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । शिव पुराण अनुसार शिवलिंग
की पूजा करके जो भक्त भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हैं उन्हें प्रातः काल से लेकर दोपहर से पहले ही इनकी पूजा कर लेनी चाहिए । इसकी पूजा से मनुष्य को भोग
और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
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प्रवीण गुप्ता - PRAVEEN GUPTA
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 बस फिर क्या था जो शुरू हुआ लेखन का दूसरा दौर तो लगभग रोज लिखने लगी ।डायरियां भरने लगी जो पढा और जिया था सब धीरे धीरे व्यक्त होने लगा ।
अब मदर्स डे पर डायरी पेन नही देते मेरे बच्चे
आज बिटिया का जन्मदिन है । सुबह से उसे याद ही कर रही हूँ । मेरे भीतर जो भी रचनात्मकता बची रह गयी या पुनसृजित हुई सब तुम्हारे नाम बिट्टो । खूब खुश रहो ।
प्रसन्नता के सातों आसमान तुम दोनों के नाम ।
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मृदुला शुक्ला
---और याद आ रही है
माँ की बातें
हर रिश्ता विश्वास का नहीं
जड़ काट देता है
अब सूख गयी है जड़
लाल हुयी धरती के साथ
लाल हुयी हूँ मैं भी।
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 दीप्ति शर्मा
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कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी की कही बात फौरन समझ में नहीं आती। जब समझानेवाला ही समझाने में मुश्किल अनुभव करे तो भला समझनेवाला कैसे समझे? स्थिति तब और तनिक
कठिन हो जाती है जब, समझनेवाला लिहाज के मारे दूसरी बार पूछ भी न सके। तब, वह पल टल तो जाता है किन्तु दोनों ही उलझन में बने रह जाते हैं।
ऐसा ही एक बार हम दोनों भाइयों के बीच हो गया। न मैं समझ सका, न वे समझा पाए। लेकिन उस पल को टालने के लिए उन्होंने जो कहा था वह अब, लगभग सैंतालीस बरस बाद
मुझ पर हकीकत बन कर गुजर गया।
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विष्णु बैरागी
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मधु की समझ में नहीं आ रहा था कि सब मम्मियॉं झूठ क्यों बोलती हैं । कल मम्मी सेल में दोसौ रूपये की ड्रैस लेकर आई और बारह सौ की बता रही थीं । अनू तो कह रही
थी हम बड़े होटलों में शाउी ही में जाते हैं पर उसकी मम्म्ी कभी किसी होटल का कभी किसी होटल का नाम लेकर कहती हैं कि  डिनर वहॉं किया । पर जब कि खाली चाट खाकर
वापस आ जाते हैं ।ऊपर से यह फर्स्ट आने की बात खूब रही ।यहॉं तो सबके बच्चे फर्स्ट आते हैं । अपने गाल को सहलाती हुई भी वह हंस पड़ी । तभी चलने के लिये नेहा
की मम्मी ने आवाज लगाई तो झूला छोड़ सब अंदर आ गईं
   तभी एक महिला बोली, ‘मधु रिजल्ट दिखाना अपना।’
 ‘रिजल्ट ’भरे हुए गले से मधु जोर से बोली, ‘मैं नहीं दिखाऊँगी अपना रिजल्ट। मैं नेहा क्षिप्रा कोई भी फर्स्ट नहीं आता। मैं तो अर्थमेटिक में फेल हो गई हूँ।
फर्स्ट तो हर साल दीपा आती है। ओर बताऊँ छुट्टियों में मम्मी कहीं पहाड़ वहाड़ नहीं जाती बस नानी घर रहकर आ जाती है।’
 ‘नहीं मैं सब बताऊँगी। सब मम्मियाँ झूठ बोली है ? झूठ क्यों बोलती है यह मेरी फ्राक ़़़़’  ‘ मधु ज्यादा बड़ों के बीच नहीं बोलते ’ मम्मी चकी तीखी आवाज से रोती
हुई मधु अपने कमरे में जाकर चादर ओढ़ कर लेट गई। मन ही मन डर से कि आज अभी और पिटाई होगी। लेकिन फिर भी उसे बहुत अच्छा लग रहा था कि वह सब कह आई।  
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shashi goyal
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ब्‍लॉग बनानें के बाद आपको उस पर अच्‍छे अच्‍छे आर्टिकल्‍स लिखनें होगें और अपने ब्‍लाॅॅग का सोशल मीडिया में प्रमोशन करना होगा। आप का ब्‍लॅाग पर जब अच्‍छे
खासे पाठक आनें लगें तो आप गूगल एडसेन्‍स के लिये अप्‍लाई कर सकते हैं। यदि गूगल आपको अप्रूवल नही देता है तो आप किसी अन्‍य एडवर्डटाइजिंग कम्‍पनी से कॉन्‍टेक्‍ट
कर सकते हो। एक बार अप्रूवल मिलनें के बाद आप अपनें ब्‍लॉग पर विज्ञापन लगा सकते हो। आपको पास जितनें ज्‍यादा पाठक होंंगे आपकी उतनी इनकम होगी। आप सीधे किसी
कम्‍पनी से विज्ञापन ले सकते हो।
आप एडवर्डटाइजिंग के अलावा किसी खास कम्‍पनी के प्रोडक्‍ट का रिव्‍यू के बदले पैसे ले सकते हैं। इसके अलावा किसी भी कम्‍पनी के एफिलियेट प्रोग्राम से जुुड कर
लाखों रूपये महीना कमा सकते हैैं। अगर आप एक अच्‍छे ब्‍लॉगर हैं तो आप पैसे के साथ साथ नाम भी कमा सकते हो।
ब्‍लॉगर बननें के लिये आपके पास 3 चीजें होना जरूरी हैं
1- कम्‍प्‍यूटर
2- इण्‍टरनेट कनेक्‍शन
3- किसी विषय में कौशलता
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farruq Abbas farruq Abbas
मातॄभाषा हो तो विषय को आसानी समझा जा सकता है किन्तु आज हमारे देश में मातृभाषा को किस तरह जबान से, चलन से, गायब कर अंग्रेजी को मातृभाषा बना दिये जाने की
पूरी कोशिश की जा रही है।
आज यह सिध्द हो चुका है कि मातृभाषा में शिक्षा बालक के विकास में ज्यादा सहयोगी है। अलग-अलग आर्थिक और सामाजिक परिवेश से आये विघार्थियों में किसी भी विषय
को समझने की क्षमता समान नहीं होती। अंग्रेजी में पढ़ाए जाने पर उनके लिये यह एक अतिरिक्त समस्या बन जाती है – विषय ज्ञान के साथ भाषा का ज्ञान। भाषा सीखना
अच्छी बात है और लाभदायक भी है। भाषा हमें नये समाज और संसार से जोडती है। लेकिन मातृभाषा की उपेक्षा कर शिक्षा के माध्यम से बलपूर्वक हटा कर अन्य भाषाओं को
विशेष स्थान देना निश्चित ही उचित नही।
जापान, रूस जर्मनी जैसे देश आज हम सबके लिये उदाहरण है जिन्होने भाषा की शक्ति से ही स्वयं को विश्व पटल पर स्थापित किया। अक्सर देखा जा सकता है छात्र छत्तीस
नहीं समझते मगर थर्टीसिक्स बोलो तो समझ जाते हैं। नवासी और उन्यासी में तो बडे बडे लोग अक्सर सोच में पड जाते हैं। किसी भी भाषा से शब्दों का लेन देन कोई गलत
नही। हिन्दी में उर्दू, फारसी, संस्कृत सहित कई लोकभाषाओं के बहुत सारे शब्द हैं जिनका बहुत से जानकार भी आज विभेद नही कर पाते उदाहरण के लिये – आवाज, शुरुआत,
दौरा इत्यादि। अंग्रेजी के भी ढेरों शब्द हैं। डेली, रेलगाड़ी, रोड, टाईम शब्द हिन्दी के हो गए हैं। ई-मेल, इंटरनेट, कम्प्यूटर, लैपटॉप, फेसबुक आदि शब्द हिन्दी
में चल निकले।  धन अर्जन के लिये यदि हम दूसरे प्रान्त या देश जाते हैं तो वहाँ के लोगो के साथ सम्बन्ध पूर्वक जीने के लिये उनकी भाषा को सीखना हमारी प्राथमिकता
होनी चाहिये। लेकिन उसके लिये अपनी मातृभाषा को छोड देना किसी भी परिस्थिति में सम्मान जनक नही।
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अपर्णा त्रिपाठी
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आज बस इतना ही...
धन्यवाद।












मंगलवार, 21 फ़रवरी 2017

585...आसान नहीं लिख लेना चंद लफ्जों में उनकी शर्म और खुद की बेशर्मी को

सादर अभिवादन
आज के मौसम का हाल
उत्तराखण्ड में कल शाम से भारी बारिश हो रही है 
जन-जीवन अस्त-व्यस्त है

पर अंक को तो आना ही है.....

पहली बार पदार्पण
जहां 
मृत्युभोज में 
परोसे जाते है 
हिन्दू खिचड़ी 
और 
मुस्लिम रायता 

हर काबिल 
हर कातिल तक 
अपनी महक 
अपना हरापन 
फैलाते वसंत 
स्वागत है तुम्हारा....
मधुमास लिखी 
धरती पर देख रही हूँ 
एक कवि बो रहा है 
सपनों के बीज । 
किसके सपने है 
महाकवि मैं पूछती हूं 



फोन रखने वाले दो लोग अपने-अपने कार्यक्षेत्र के अधि‍कारी नहीं, बल्‍ि‍क वो दो छोटे स्‍कूली बच्‍चे थे जो हर शाम खेल कर घर जाने से पहले बि‍छड़ते वक्‍त एक दूसरे से पूछते थे। कल खेलने आओगी न गुड़ि‍या। हां पार्थ...आऊंगी। तुम देर न करना।

गाये बहुत है गीत मिलकर  प्यार में चहके सजन 
आओ चलें दोनों सफर यह प्यार का महके  सजन 

हसरत  रही  है  प्यार  में  हम  तुम  रहें साथी सदा 
मुश्किल बहुत है यह डगर इस पर रहें मिलके सजन 

मुझे ताज़्ज़ुब होता है 
कि बात क्या थी
हालात क्या थे 
फ़िक्र क्या थी 
हौसले क्या थे 
उम्र क्या थी 
ज़ज़्बात क्या थे 
बहरहाल जो भी था 
बालपन की सुबह थी 


करना है तो कर्म करना
घमंड ना करना
आया है मुट्ठी बाँधकर
खुले हाथ ही जाना

बहुत दिन हो गये 
कलम भी कब तक 
बेशर्मी को छान कर 
शर्माती हुई बस 
शर्म ही लिखे 
अच्छा है उनकी
बेशर्मी बनी रहे 
जवान रहे 
पर्दे में रहे जहाँ रहे 








सोमवार, 20 फ़रवरी 2017

584....रात का गंजा दिन का अंधा ‘उलूक’ बस रायता फैला रखा है

सादर अभिवादन
आज से ठीक सोलहवें दिन
यानि कि छः सौवीं प्रस्तुति
आपको आश्चर्यचकित कर देगी
राज़ को राज़ ही रहने देती हूँ अभी

फिलहाल चलिए चलते हैं आज के अंक की ओर..



मेरी छत की छोटी सी मुंडेर पर.....अर्चना
हर सुबह
महफ़िल है 
जुड़ जाती 
दाने खाने की
खातिर परिंदों
की जब टोलियाँ  
हैं आती
चिड़ियाँ आातीं 
दाना खातीं
फुदक -फुदक 
फिर गाना भी
गातीं लगती हैं 



क्वांरेपन से शेर है, रविकर अति खूंखार ।
किन्तु हुआ अब पालतू, दुर्गा हुई सवार।।

जब मैं काफी दिमाग लगाकर खुद से यह उत्तर पाने की कोशिश करती हूं कि आखिर नए कपड़ों को पुराने करने की जुर्रत मैं क्यों करती हूं तो एक ही जवाब मिलता है –ताकि मैं चिकोटी काटने वालों या-अच्छा जी आज नए कपड़े क्या बात है-कहकर बगल से गुजर जाने वालों को पेट दर्द जैसा अपना चेहरा बनाकर कह सकूं-नए कहां हैं, पुराने ही तो हैं। जाने क्यों बड़ी लाज आती है जी नए कपड़ो में।



माँ मुझको तुम अंक में ले लो
स्नेह फुहार से मुझे भिंगो दो
जब भी मुझको भूख लगे माँ
सीने से मुझको लगा लो

मेरा खून धरती से मिल गया है
और सफेद रंग 
गर्भ में ठहर गया है,
शोषण के गर्भ में
उभार आते
मैं धँसती जा रही हूँ
भींगी जमीन में,
और याद आ रही है
माँ की बातें

लेकिन
अज़ल से अबद तक
यही रिवायत है-
ज़िन्दगी की हथेली पर 
मौत की लकीरें हैं...
और 
सतरंगी ख़्वाबों की
स्याह ताबीरें हैं


जोर से 
खींचना 
ठीक नहीं 
गालियाँ 
खायेंगे 
गालियाँ 
खाने वाले 
कह कर 
दिन की 
अंधी एक 
रात की 
चिड़िया को 
सरे आम 
गंजा बना 
रखा है। 









रविवार, 19 फ़रवरी 2017

583.....ले रही हूँ विदा

सुप्रभात  दोस्तो 

नमस्कार दोस्तो  स्वामी  विवेकानन्द  ने कहा था कि
"सफलता का रहस्य है दृढ़ संकल्प, मेहनत और साहस." इसलिए  यदि आप सफलता चाहते है तो दृढ संकल्प के साथ साथ मेहनत और साहस का होना बहुत जरूरी है ।
आइए अब चलते है आज की पाँच बेहतरीन लिंको की  ओर. . . 

शादी पर अनमोल वचन

ऐसे इन्सान से शादी न करें जिसके साथ आप जिंदगीभर रह सकें; बल्कि सिर्फ उस इन्सान से शादी करें जिसके बिना आप एक पल भी नहीं रह न सकते।

ले रही हूँ विदा

हां!!
ले रही हूँ विदा
अपनों से सपनों से
सच से झूठ से
आज से अतीत से
रस्मों से रीत से
नफरत से प्यार से
झगडे से प्रहार से
शक से यकीन से
रात से दिन से
अपेक्षा से उपेक्षा से

मौसम की वर्दी

*

तुम बार-बार क्यों लौट  रही हो सर्दी ,
कोहरा तो भाग गया , दे अपनी अर्जी.
*
गद्दे रजाइयाँ सभी खा चुके धूपें ,
बक्से में जाने से बस थोड़ा चूके
हमने भी अपनी जाकेट धो कर धर दी,
तुमने यों आकर कैसी मुश्किल कर दी.
*

कविता : रे सिपाही मत चिल्ला


(मेरी यह कविता उन सभी पुलिसवाले भाइयों को समर्पित है जो आए दिन अफसरों के जुल्म का शिकार होते रहते हैं।)
थप्पड़ खा, घूँसे खा
रे सिपाही मत चिल्ला
जूते खा, डंडे खा
रे सिपाही मत चिल्ला
गाली खाके रोता जा
रे सिपाही मत चिल्ला...

अच्छी पत्नी

अच्छी पत्नियाँ वे होती हैं,
जो अपने पतियों के 
पीछे-पीछे चलती हैं,
जैसा वे कहें, वैसा करती हैं,
उनकी पसंद का पकाती हैं,
घर में सब खा लेते हैं,
तब खाती हैं.

अब दीजिए आज्ञा 
धन्यवाद 
विरम सिंह
ज्ञान द्रष्टा