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मंगलवार, 10 जनवरी 2017

543...ज़िन्दगी एक भूल है शायद

जय मां हाटेशवरी...
आज वर्ष 10वें दिन में प्रवेश कर चुका है...
आज राजेन्द्र टोकी जी का जन्म दिवस भी हैं...
इस लिये इन की लिखी गज़ल से...
आज की प्रस्तुति का आरंभ कर रहा हूं...
सोचना ही फ़ज़ूल है शायद
ज़िन्दगी एक भूल है शायद
हर नज़ारा दिखाई दे धुँधला
मेरी आँखों पे धूल है शायद
इक अजब -सा सुकून है दिल में
आपका ग़म क़ुबूल है शायद
दिस्ती प्यार दुश्मनी नफ़रत
यूँ लगे सब फ़ज़ूल है शायद
किस क़दर चुभ रहा हूँ मैं सबको
मेरे दामन में फूल है शायद





एक बार स्वामी विवेकानन्द के आश्रम में एक व्यक्ति आया जो देखने में बहुत दुखी लग रहा था । वह व्यक्ति आते ही स्वामी जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला कि महाराज मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूँ मैं अपने दैनिक जीवन में बहुत मेहनत करता हूँ , काफी लगन से भी काम करता हूँ लेकिन कभी भी सफल नहीं हो पाया । भगवान ने मुझे ऐसा नसीब क्यों दिया है कि मैं पढ़ा लिखा और मेहनती होते हुए भी कभी कामयाब नहीं हो पाया हूँ,धनवान नहीं हो पाया हूँ ।

वर्ष नया मंगलमय कहने
आज तूलिका निरुत्साह है उदासीनता के पट पहने
नहीं चाहती बाहर निकले, वर्ष नया मंगलमय कहने
विगत वर्ष के आने पर कितनी मन्नतें मनायीं  थीं
फलीभूत  हो सकी न कोई कितने कष्ट पड़े सहने
सद्भाव आपसी नष्ट हो गया कैसे फिर आगे बढ़ पाते
उड़ने के पहले काट दिए हों  जैसे पंखी के पखने
सदा सत्य पथ पर चलकर घनघोर तिमिर से लड़ने का
संकल्प ह्रदय जो बांधा था, लगा तीव्रता से ढहने

प्राचीनकाल की ओर देखें तब भारत में ज्ञान प्रदान करने वाले गुरु थे, अब शिक्षक हैं। शिक्षक और गुरु में भिन्नता है। गुरु के लिए शिक्षण धंधा नहीं, बल्कि आनंद है, सुख माना जाता था शिक्षण संस्थाए कर्तव्योंन्मुख होती थी ।गुणवतापुर्ण शिक्षा तभी सम्भव है जब कि युवाओं को भारतीय दर्शन की अनिवार्य शिक्षा दिया जाय। बच्चों को कम से. कम गीता का कर्म विज्ञानं और बौध. दर्शन की शिक्षा दिया जाय ताकि मानव का निर्माण हो सके। आशा नहीं विशुद्ध प्रयास न होने के कारण समाज मे हिंसा और भ्रष्टाचार का बोलबाला रहता है।

‘उलूक’
सब इसी
तरह से
ही चलेगा
तुझे मिला
तो है काम
दीवारें
पोतने
का यहाँ
तू भी
दो चार
लाईनेंं
काली
सफेद
खींचते हुए
पागलों
की तरह

स्वर्ग की अप्सरा सी परी बेटियां
सृष्टि के चक्र की हैं धुरी बेटियां ।।
बेटियां साधना तो पिता संत है
ये पुरुष के अहंकार का अंत है
हर पुरुष वृक्ष तो बेटियां छाँव हैं
है पुरुष शीश तो बेटियां पाँव हैं

4. प्रोडक्ट हमेशा प्रचलित वेबसाइट्स से ही  और सेलर के  रिव्यु भी पढ़ें, क्योंकि आजकल कई सेलर्स ऑनलाइन धोखाधड़ी भी कर रहें हैं।
5. प्रोडक्ट खरीदने का सबसे अच्छा वक़्त होता है सेल। आजकल लगभग हर छोटे-बड़े त्योहारो पर इ- कॉमर्स कंपनियां सेल दे रही हैं। और सेल में सामान्यतः प्रोडक्ट अपनी रोज की कीमतों से सस्ते बिक रहे है, तो आप इन ऑफर्स का फायदा उठा सकतें हैं।

1960 के दशक में खुराना ने नीरबर्ग की इस खोज की पुष्टि की कि डी.एन.ए.  अणु के घुमावदार ‘सोपान’ पर चार विभिन्न प्रकार के न्यूक्लिओटाइड्स के विन्यास का तरीका नई कोशिका की रासायनिक संरचना और कार्य को निर्धारित करता है। डी.एन.ए. के एक तंतु पर इच्छित अमीनोअम्ल उत्पादित करने के लिए न्यूक्लिओटाइड्स के 64 संभावित संयोजन पढ़े गए हैं, जो  प्रोटीन  के निर्माण के खंड हैं। खुराना ने इस बारे में आगे जानकारी दी कि न्यूक्लिओटाइड्स का कौन सा क्रमिक संयोजन किस विशेष अमीनो अम्ल को बनाता है। उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि न्यूक्लिओटाइड्स कूट कोशिका को हमेशा तीन के समूह में प्रेषित किया जाता है, जिन्हें प्रकूट (कोडोन) कहा जाता है। उन्होंने यह भी पता लगाया कि कुछ प्रकूट कोशिका को प्रोटीन का निर्माण शुरू या बंद करने के लिए प्रेरित करते हैं।



आज बस इतना ही...
धन्यवाद।














4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर हलचल कुलदीप जी । आभार 'उलूक' के सूत्र 'शुरु हो गया मौसम होने का भ्रम अन्धों के हाथों और बटेरों के फंसने की आदत को लेकर' को आज की हलचल में जगह देने के लिये।

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