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बुधवार, 21 दिसंबर 2016

523....सरकारी आदेश तैयार शिकार और कुछ तीरंदाज अखबारी शिकारी

सादर अभिवादन
पिछले दो दिनों से ठण्ड बहुत थी
आज कुछ कम है...
उन्होंनें कुछ प्रस्तुतियां बनाई 
आभार..उनको...
...
कभी जिन्दगी का ये हुनर भी आजमाना चाहिए,
जब अपनों से जंग हो, तो हार जाना चाहिए

आज की यायावरी में जो कुछ दिखा.....


बक बक बूम बूम ...रश्मि प्रभा
बर्फ के फाहे जैसी उड़ती 
छोटी छोटी रूइयाँ 
नाक,कान,आँख,सर पर 
पड़ी होती थीं 
जितनी हल्की होती रूइयाँ 
उतनी बेहतर रजाई !




हमारी बेटी को अपने सीने पर लिटाकर उसने प्यार किया और एक पोटली में से उसके लिए वही अपनी चिर-परिचित चाँदी की भारी-भरकम पाज़ेब निकालकर उसके नन्हें से पाँवों में पहना दीं। दुर्गारानी को कन्धा देकर और उसका अंतिम संस्कार करके इन्होने उसकी ख्वाहिश पूरी की.

सच कहना 
गुनाह तो नहीं है 
रूठते लोग।

मन भारी था,
शब्द मौन।
क़ाश, कोई तारा टूटता तारा
इसी वक़्त मेरी झोली में आ गिरे
कैसे गिरता!
ईश्वर आज भी हड़ताल पर था...!!

बन्दे का काम घेर, उसूलों ने ले लिया 
है गलतियाँ रहस्य, बहानों ले लिया |

वो बात जो थी कैद तेरे दिल की जेल में 
आज़ाद करना काम अदाओं ने ले लिया |


कैसे इनके जाल से बच पायेगा देश... साधना वैद
झूठे हैं नेता सभी, उथली इनकी सोच
लोकतंत्र के पैर में, इसीलिये है मोच !

जैसे उगते सूर्य का, होता है अवसान
नेता जी के तेज का, अंत निकट लो जान !




आज का शीर्षक.. सुशील जोशी
पहले दिन की खबर 
दूसरे दिन मिर्च मसाले 
धनिये से सजा कर 
परोसी गई होती है 
‘उलूक’ से होना 
कुछ नहीं होता है 
हमेशा की तरह 
उसके पेट में 
गुड़ गुड़ हो रही होती है 
बस ये देख कर कि
किसी को मतलब 
ही नहीं होता है 

आज्ञा दे यशोदा को
फिर मिलते हैं

सादर






5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात यशोदा जी ! बहुत सुन्दर सूत्र चुने हैं आज ! आज की हलचल में 'नेताजी' भी विराजमान हैं देख कर प्रसन्नता हुई ! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति । आभार यशोदा जी 'उलूक' के सूत्र को भी स्थान देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी कहानी 'दुर्गा रानी' को आज के 'हलचल'के अंक में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद यशोदाजी. 32 साल पहले लिखी गयी इस कहानी से मैं आज भी भावनात्मक रूप से जुड़ा हूँ. प्रीति अज्ञात की कविता 'ईश्वर आज भी हड़ताल पर था, अच्छी लगी. साधना वैद के दोहे सटीक हैं. उलूक की पेट की गुड़-गुड़ रोज़ कुछ न कुछ गुल खिलाती है. जिस दिन ये गुड़-गुड़ न हो लगता है कि उसकी तबियत कुछ नासाज़ है.

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