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शनिवार, 10 दिसंबर 2016

512 .... मोहितपन





सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष


भटकन को ब्रेक लगाते हुए
एक ब्लॉग पर टहलते हैं 
पढ़ते हैं


कुछ लोगो को तो पब्लिक मे आना ही चाहिये.
दुनिया का दर्द उनके लिए नहीं बना है.
 जब वो दुनिया देखते है या तो 
वो सच्चाई को नकार कर आगे बढ़ जाते है





बेटा जब बड़े हो जाओगे ना...
...और कभी दुख का पहाड़ टूट पड़े,
तो कड़ी धूप में कूकती कोयल में उम्मीद सुन लेना। 
जब सामने कोई बड़ी चुनौती मिले,
तो युद्ध में घायल सैनिक से साँसों की कीमत जांच लेना।





उसके दिमाग में चल रहा था...
"काश कई साल पहले उस दिन, 
मेरी छोटी सोच और परिवार के दबाव में 
तीव्र ऑटिज़्म से पीड़ित अपने बच्चे को 
मैं स्टेशन पर सोता छोड़ कर न आती।"




 "मानवता की तरक्की के लिए कुछ कुरबनियां तो देनी पड़ती है।"





उलट-सुलट उच्चारण के तेरे मंत्र-आरती चल गए,
रह गए हम प्रकांड पंडित फीके... 
दुनियादारी ने चेहरों को झुलसा दिया,
उनमे उजले लगें नज़र के टीके। 

समाप्त!


फिर मिलेंगे ..... तब तक के लिए

आखरी सलाम 


विभा रानी श्रीवास्तव




5 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    एक ही विषय
    के महारथी
    ढेरों सलाम
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. 5 के 5 लिंक्स मेरे ब्लॉग से! इतना सम्मान-स्नेह देने और उत्साहवर्धन करने के लिए हृदय से धन्यवाद! :)

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति सुन्दर अन्दाज विभा जी।

    जवाब देंहटाएं

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