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सोमवार, 5 दिसंबर 2016

507....हर तरफ फकीर हैं फकीर ही फकीर

सादर अभिवादन
दो रोज से परेशान थी
उँगलियाँ तवे को छू गई थी
आज ठीक है...

आज की पसंद........

किसी की प्रस्तुति नहीं पर डिज़िटल भारत की शुरुआत



काँपती उँगलियों से,
थरथराते शब्दो को लिख रही हूँ....
धुंध में तुम्हे ढूंढती अपनी आँखों की बेचैनियां,
इस बार राजाई में छुप कर,
तुम्हारी पढूंगी,और तुम्हे लिखूंगी,
मैं भी तुम्हे सर्दी की चिठ्ठियां...


अकेलापन........अनीता 
उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक
धरा के इस छोर से उस छोर तक
कोई दस्तक सुनाई नहीं देती


अपना बचपन.......जीतेन्द्र पाराशर
बेचैनी से ढूढ़ रहा था वो
अपना बचपन
अरसे बाद आया अपने गाँव
भाग चला पकड़ने
पीपल को
जो करते करते इन्तजार
मर चुका था



ये लोग पागल हो गए हैं..... नासिर काज़मी
उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहां जो हादिसे कल हो गए हैं, 

जिन्हें हम देख कर जीते थे 'नासिर' 
वो लोग आँखों से ओझल हो गए हैं



४० पार..... रेवा टिबड़ेवाल
आईने के सामने खड़े हो 
आज खुद से 
बात करने की कोशिश करी ....... 
जब गौर से देखा तो 
समझ ही नहीं आया की 
ये मैं हूँ !!



आज के शीर्षक में ताजी खबर..

फकीरों 
के देश में 
खुश 
रह कर 
हमेशा 
की तरह 
बैठ कर 
पीटता 
चला चल 
अपनी 
लकीर 
दर 
लकीर । 

इसी के साथ आज्ञा दें यशोदा को
चलते-चलते एक छोटा सा पंच और




5 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया वीडियो सुन्दर प्रस्तुति। आभार 'उलूक' के सूत्र 'हर तरफ फकीर हैं फकीर ही फकीर' को आज की हलचल शीर्षक देने के लिये यशोदा जी ।

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  2. बढिया बीडियो और अति सुन्दर रचनाएं

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  3. बढिया बीडियो और अति सुन्दर रचनाएं

    जवाब देंहटाएं

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