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मंगलवार, 29 नवंबर 2016

501...बदल जा या बदलाव ला दे। 

जय मां हाटेशवरी...


आज के ही दिन...यानी 29 नवंबर 1901 को...
 सरदार सोभा सिंह....जी का जन्म हुआ था...
आज की प्रस्तुति का....शुभारंभ उनकी कुछ पंक्तियों से....
यह तन आत्मा का मंदिर
सब कुछ इसके भीतर
सिख ,गुरु, देवता, भगवान
कवि ,लेखक, चित्रकार
अरे कोई रूह
कभी तो आए बाहर
मृत हुई तूलिका
मुर्दा रंग
शीत बुढ़ापा
जीने की उमंग
मैं बनाता हूँ चित्र
जिन्हें जीवित आत्माएँ
देती हैं प्राण
मेरी तमन्ना?
कोई न जाने.

पूछने में लगा है जमाना वही सब जिसे अच्छी तरह से सबने समझ लिया है-
कुछ
पहेलियों
को
समझने
सुलझाने
के लिये
जोड़ तोड़
कर
एकत्रित
की गई
कड़ियाँ हैं

मानव नाग...
*******   नाग जाति का अपमान  
करते हो क्यों  
नाग बेवजह नहीं डँसता  
पर तुम?
धोखे से कबतक  
धोखा दोगे  
बिल से बाहर आकर  
पृथक होना ही होगा

नहीं रहे क्यूबा की क्रांति के जनक और वामपंथ के स्तम्भ फिडेल कास्त्रो-
एक ऐसा कम्युनिष्ट तानाशाह जिसके विरोधियों के पास दो ही रास्ते होते थे या तो वो मारे जायेंगे या क्यूबा छोड़ देंगे...फिडेल कास्त्रो एक ऐसा कम्युनिष्ट तानाशाह जिसे अमरीका समेत कई ख़ुफ़िया एजेंसिया मिल कर भी नहीं मार पाई..CIA ने फिडेल कास्त्रो को मारने के लिए 650 से ज्यादा बार प्रयास किये मगर अमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी हर बार विफल रही..
एक बार नास्तिक वामपंथी फिडेल कास्त्रो ने कहा था की मैं भगवान को नहीं मानता था मगर CIA और अमरीका द्वारा कई दशको तक मुझे मारने के सैकड़ो प्रयास के बाद भी मैं जीवित बचा हूँ,इससे मुझे लगने लगा है की भगवान होता है... खैर आज फिडेल कास्त्रो इस दुनिया में नहीं है और शोक के साथ साथ एक बड़ा हिस्सा हवाना में जश्न भी मना रहा है..आने वाला समय और क्यूबा की अगली पीढी इस वामपंथी कम्युनिष्ट तानाशाह का क्यूबा के निर्माण (या विध्वंस) में योगदान को तय करेगी..

 अगर बदलाव लाना है तो कानून नहीं सोच बदलनी होगी
जब किसी भी कार्य अथवा फैसले पर विचार किया जाता है तो सर्वप्रथम उस कार्य अथवा फैसले को लागू करने में निहित लक्ष्य देखा जाना चाहिए यदि नीयत सही हो तो फैसले का विरोध बेमानी हो जाता है।
यहाँ बात हो रही थी नोटबंदी के फैसले की  । इस बात से तो शायद सभी सहमत होंगे कि सरकार के इस कदम का लक्ष्य देश की जड़ों को खोखला करने वाले भ्रष्टाचार एवं कालेधन पर लगाम लगाना था।
यह सच है कि फैसला लागू करने में देश का अव्यवस्थाओं से सामना हुआ

वक्त के साथ हर सोच बदल जाती है...
सबसे बड़ा बदलाव जो मुझे दिखाई पड़ रहा है वो इस बात में कि जब कहीं से ये फुसफुसाहट सुनाई देती थी कि ठिकाने लगा आये.. तो सीधे दिमाग में कौंधता था कि जरुर किसी लाश को ठिकाने लगा कर आया है बंदा..आज लाश की जगह १००० और ५०० के अमान्य नोट विराजमान हो गये हैं...उन्हें ही ठिकाने लगा कर आदमी ऐसी चैन की सांस भरता है मानो लाश ठिकाने लगा अया हो.. हालांकि लाश ठिकाने लगा आनें में भी कम ही चांस था कि पुलिस से बच पाते और वही हाल अब इन्कम टैक्स वालों से इस नोट ठिकाने लगा आने में है मगर तात्कालिक सुकून तो मिल ही जाता है..मानो कि आज रात इसबगोल खाकर सो जाये तो जीवन भर के लिए कब्जियत से निजात मिल जायेगी...यह तय है कि कल कब्जियत से आराम तो लगेगा मगर जो कल इसबगोल नहीं खाया तो परसों फिर वही हाल... देखना अब यह है कि इस बड़े बदलाव से जिसने बातों के मायने बदल डाले...वो और क्या क्या बदलता है और कब तक के लिए...

आज के पांच लिंक पूरे हुए....
चलते-चलते...
बन जा पतंगा, जल जा
या बन लौ और सबको जला दे।
बन राहों का पत्थर, खा ठोकरें
या बन मूरत सबको झुका दे।
ले फैसला, कुछ तो कर
बदल जा
या बदलाव ला दे।





4 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात
    उम्दा प्रस्तुति
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर प्रस्तुति कुलदीप जी । आभार 'उलूक' के सूत्र 'पूछने में लगा है जमाना वही सब जिसे अच्छी तरह से सबने समझ लिया है' को जगह देने के लिये ।

    जवाब देंहटाएं
  3. जब से देश में नोटबंदी हो गई
    सियासत और भी गंदी हो गई

    हल्की हल्की सांसे ले रही है इंसानियत
    सुना है मजदूर की आवाज मंदी हो गई

    लंम्बी लंम्बी यह जो कातर कतारें है
    बेबस चेहरे देख आह भी ठंडी हो गई

    चीखकर मांग रहे हैं हिसाब गरीब का
    पसीने की कमाई भी अब रद्दी हो गई

    कोसती थी एक दूसरे को हर आंख
    सुना है नेताऔं मे रजामंदी हो गई

    क्यों ? दिखता नहीं दर्द रहनुमाओं को
    लाचार को हराने सियायत अंधी हो गई

    जवाब देंहटाएं

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